20150318

नाट्य सम्राट का किरदार करियर का सबसे कठिन किरदार : नाना


 नाना पाटेकर फिल्मों का चयन यंू ही नहीं करते. उनके लिए फिल्म की कहानी सबसे ज्यादा अहम रखती है. ग्लैमर की इस दुनिया में पिछले कई दशक से सक्रिय रहने के बावजूद वे अपने मिजाज के इकलौते कलाकार हैं, जिनके लिए सिर्फ और सिर्फ अभिनय महत्वपूर्ण है. जल्द ही वे दर्शकों से अब तक छप्पन से रूबरू होने जा रहे हैं. 
अब तक छप्पन 2 के बारे में बताएं?
इस फिल्म को मैं अपनी फिल्म मानता हूं. इसका पहला हिस्सा लोगों को पसंद आया. उम्मीद करता हूं इस बार भी फिल्म पसंद आये. फिल्म के पहले हिस्से में मैंने जैसा किरदार निभाया था. इस फिल्म में भी मैं वैसा ही किरदार निभा रहा हूं. अंदाज अलग होगा मगर.
आपने जब पहली बार अब तक छप्पन की थी तो उसके निर्देशक शिमित अमिन थे. उस वक्त वे भी नये थे. इस बार फिर से आप ऐजाज गुलाब के साथ काम कर रहे हैं.तो क्या नये लोगों के साथ काम करने में आपको मजा आता है?
हां, बिल्कुल मजा आता है. नये लोग हैं तो मैं उन्हें अपनी तरफ से बहुत सारी बातें कह सकता. जो मुझे सीन में पसंद न आये. मैं उन्हें डांट कर कह सकता. वैसे भी मैं निर्देशक का एक्टर बिल्कुल नहीं हूं. मैं बहुत ज्यादा दखल देता हूं. जो सीन मुझे पसंद नहीं. आप मेरे निर्देशक से पूछ सकते हैं कि मुझसे वह कितने परेशान रहते हैं कितने नहीं. लेकिन अभिनय मेरी रोजी रोटी है तो उसके साथ बेईमानी नहीं. जो मैं बेहतर तरीके से कर सकता. वह जरूर करूंगा. जो नहीं कर सकता. वह नहीं करूंगा. मुझे लगा है कि नये लोगों में ज्यादा जुनून होता है. पहली फिल्म में वह अपनी पूरी मेहनत को झकझोर देते हैं. इसलिए मुझे पसंद है ऐसे लोगों के साथ काम करना. उनके आइडियाज अलग होते हैं. पहले जमाने में जैसे एक ही कैमरा रहता था. लेकिन इस फिल्म में मैंने एक साथ कई कैमरों में शूटिंग की है तो नया सीखने को भी मिलता है. अब तक छप्पन 2 चूंकि एक् शन फिल्म है तो उसे रोचक बनाना ज्यादा कठिन होता है. लेकिन ऐजाज ने अच्छा काम किया है.
नाना, आप कई दशकों से सिनेमा से जुड़े हैं. ऐसे कोई किरदार जिन्हें आप आज भी निभाना चाहते हों या आपकी पसंदीदा रही हो.
वैसे तो सारे किरदार अच्छे लगते हैं. लेकिन एक अभिनेता हूं कैसे कह दूं कि क्या बेस्ट किया क्या नहीं. हां, मगर बहुत जल्द मराठी में मेरी एक फिल्म आयेल्गी नाट्य सम्राट मुझे लगता है कि वह मेरे कठिन किरदारों में से एक है. क्योंकि इसमें मैंने जो किरदार निभाया है. वह अब तक सारी मेहनत से ज्यादा है. मुझसे बहुत निचोड़ रहा है यह किरदार. मैं काफी मेहनत भी कर रहा हूं और डर भी रहा हूं कि इतना महान किरदार निभा पाऊंगा की नहीं. वैसे सच कहूं तो लोगों को लगता है कि मैं इंटेंस कलाकार हूं तो किरदारों को अपने साथ रखता हूं फिल्मों के खत्म होने पर भी. लेकिन इस मामले में मैं बिल्कुल अलग हूं. मैं अपनी फिल्में भी नहीं देखता. मैं कोई फिल्म ही नहीं देखता. काम किया और फिर खत्म. मैं तुरंत किरदार से बाहर आ जाता हूं. तभी मैं एक्टर हूं. किसी किरदार के साथ जीने लगा तो मुश्किलें खड़ी हो जायेंगी.
सेंसर बोर्ड लगातार सिनेमा पर अपनी कमान कस रहा. आपकी इस पर क्या प्रतिक्रिया है?
मुझे सेंसर बोर्ड से सिर्फ और सिर्फ एक सवाल पूछना है कि वे यह सब करके किसको क्या दिखान चाहते हैं क्या साबित करना चाहते हैं. आज कल यूटयूब है, इंटरनेट है. कई चीजें हैं. जिस पर हर युवा कुछ भी देख सकता. कुछ भी कर सकता. आप कैसे उन्हें रोक सकते. गंदा क्या है क्या नहीं. इसके बीच एक पतली सी लकीर है. जिसे देखना समझना जरूरी है. सिनेमा को हमेशा हिट किया जा रहा है. संस्कृति के नाम पर. यह सही नहीं.
क्या आप मानते हैं कि अब फिल्में बिल्कुल इंस्टेंट खुशी के लिए बन रही हैं. फिल्में आती हैं. चली जाती हैं. फिल्मों से एक इमोशनल अटेचमेंट नहीं रह गया, फिल्म के कलाकारों का भी और दर्शकों का भी.
देखिए मेरा मानना है कि जैसे जैसे समाज बदला है. फिल्में भी बदली हैं. पॉटिटिकल, सोशल माहौल बदलेगा तो फिल्में भी बदलेंगी. जेनरेशन बदला है. उनकी सोच बदली है. उनका नजरिया बदला है. माध्यम बदले हैं. उनकी चाहत बदली है तो बदलाव हो होंगे ही. हां, लेकिन अगर आपने खुद को उस लिहाज से अपडेट किया है तो आप आगामी जेनरेशन के साथ कदमताल कर सकते हो. वरना, आपको वह सब बोझ लगेगा. मैं किसी सोशल साइट पर नहीं हूं. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मैं अपडेट नहीं हूं. मेरे यहां अपडेट शब्द कहने का मतलब है कि आपको अपने आस पास की दिन दुनिया, तकनीक व समाज की जानकारी होनी ही चाहिए.
फिल्मों को चुनने में अब भी क्या बातें महत्व रखती हैं?
मुझे फिल्म की कहानी, फिल्म का निर्देशक और फिल्म का ब्रांड यानी कौन निर्माता है. इन चीजों से मतलब होता है. बाकी मैं कुछ भी नहीं सोचता 

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