भारतीय सिनेमा के रचयिता दादा साहेब फाल्के की फिल्म कालिया मर्दान मुंबई के दीपक बुटिक सिनेमा में दिखाई जा रही है. यह फिल्म 1919 में रिलीज हुई थी. मुंबई में लगभग एक हफ्ते तक इस फिल्म का प्रदर्शन किया जा रहा है. वर्ष 1918 में फाल्के ने श्री कृष्णा का निर्माण किया था. यह पहली फिल्म थी जिसका निर्माण हिंदुस्तान सिनेमा फिल्म कंपनी के तहत हुआ था. इस फिल्म की कामयाबी के बार कालिया मर्दान का निर्माण किया गया था. चूंकि उस दौर में ज्यादातर माइथॉलॉजिकल फिल्मों का ही निर्माण हुआ करता था. इस फिल्म में कुछ ड्रीम सीक्वेंस हैं. जिन्हें फिल्म का रूप देने में उस वक्त निश्चित तौर पर फाल्के को कठिनाईयों का सामना करना पड़ा होगा. कुछ दिनों पहले अपने पिताजी के साथ पुराने फिल्मी गीत देख रही थी. पिताजी ने कहा कि पहले के दौर में पेड़ पौधे बिल्कुल वास्तविक नजर आते थे. अब नजर नहीं आते. इस पर मेरे दोस्त जो कि एनिमेशन की दुनिया से जुड़े हैं. उन्होंने बताया कि इन दिनों फिल्मों के दृश्य में सही तरीके से बादल भी दर्शा पाना कठिन है. सारे पहाड़, बादल कृत्रिम ही तैयार किये जाते हैं. इसलिए वे वास्तविक नजर नहीं आते. जरा गौर करें कि कैसे उस दौर में बिना किसी इफेक्ट्स के फाल्के साहब ने अपनी बुद्धिमता से वैसे दृश्यों का निर्माण किया होगा. यह देखना वाकई दिलचस्प है. कालिया एक काला सांप है, जो हिंदु पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना नदी में रहता है. कल्पना कीजिए इसे कृत्रिम रूप से तैयार करना उस वक्त कितना कठिन रहा होगा. फाल्के ने कालिया मर्दान में ही अपनी बेटी को फिल्म में लांच भी किया. उस दौर में फिल्में आपसी सहयोग, और संसाधनों के इस्तेमाल जिसे कबाड़ से जुगाड़ कहा जाता है. उसी अंदाज में बनती थीं और वाकई उस दौर में लोग सिनेमा को जीते थे. चूंकि वे उसमें अपने प्राण फूंकते थे.
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20150318
फाल्के की कालिया मर्दान
भारतीय सिनेमा के रचयिता दादा साहेब फाल्के की फिल्म कालिया मर्दान मुंबई के दीपक बुटिक सिनेमा में दिखाई जा रही है. यह फिल्म 1919 में रिलीज हुई थी. मुंबई में लगभग एक हफ्ते तक इस फिल्म का प्रदर्शन किया जा रहा है. वर्ष 1918 में फाल्के ने श्री कृष्णा का निर्माण किया था. यह पहली फिल्म थी जिसका निर्माण हिंदुस्तान सिनेमा फिल्म कंपनी के तहत हुआ था. इस फिल्म की कामयाबी के बार कालिया मर्दान का निर्माण किया गया था. चूंकि उस दौर में ज्यादातर माइथॉलॉजिकल फिल्मों का ही निर्माण हुआ करता था. इस फिल्म में कुछ ड्रीम सीक्वेंस हैं. जिन्हें फिल्म का रूप देने में उस वक्त निश्चित तौर पर फाल्के को कठिनाईयों का सामना करना पड़ा होगा. कुछ दिनों पहले अपने पिताजी के साथ पुराने फिल्मी गीत देख रही थी. पिताजी ने कहा कि पहले के दौर में पेड़ पौधे बिल्कुल वास्तविक नजर आते थे. अब नजर नहीं आते. इस पर मेरे दोस्त जो कि एनिमेशन की दुनिया से जुड़े हैं. उन्होंने बताया कि इन दिनों फिल्मों के दृश्य में सही तरीके से बादल भी दर्शा पाना कठिन है. सारे पहाड़, बादल कृत्रिम ही तैयार किये जाते हैं. इसलिए वे वास्तविक नजर नहीं आते. जरा गौर करें कि कैसे उस दौर में बिना किसी इफेक्ट्स के फाल्के साहब ने अपनी बुद्धिमता से वैसे दृश्यों का निर्माण किया होगा. यह देखना वाकई दिलचस्प है. कालिया एक काला सांप है, जो हिंदु पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना नदी में रहता है. कल्पना कीजिए इसे कृत्रिम रूप से तैयार करना उस वक्त कितना कठिन रहा होगा. फाल्के ने कालिया मर्दान में ही अपनी बेटी को फिल्म में लांच भी किया. उस दौर में फिल्में आपसी सहयोग, और संसाधनों के इस्तेमाल जिसे कबाड़ से जुगाड़ कहा जाता है. उसी अंदाज में बनती थीं और वाकई उस दौर में लोग सिनेमा को जीते थे. चूंकि वे उसमें अपने प्राण फूंकते थे.
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