शिवनेंद्र सिंह डुंगारपुर ने पिछले साल ही यह घोषणा की थी कि वे फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन का निर्माण करेंगे और उन्होंने अपनी मेहनत से इसे पूरा भी कर लिया है. आगामी 22 फरवरी को इस फाउंडेशन का लोकार्पण होने जा रहा है. खास बात यह है कि इसका लोकार्पण अमिताभ बच्चन कर रहे हैं. शिवनेंद्र ने इससे पहले सेल्योलाइड मैन नामक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई थी. फिल्म पीके नायर पर भी, जिन्होंने पुणे के फिल्म इंस्टीटयूट में फिल्मों के संरक्षण के लिए कदम उठाये. शिवनेंद्र ने एक नयी पहल की है. उन्होंने इस जरूरत को समझा है कि भारत में फिल्मों के संरक्षण की कितनी जरूरत है. आज आलम आरा के प्रिंट्स उपलब्ध नहीं हैं, कई फिल्में विलुत्प हो चुकी हैं. मगर अब तक यह कार्य शुरू नहीं हुआ था. शिवनेंद्र ने अपनी मेहनत और सोच से यह पहल की है, जिसकी सराहना होनी चाहिए. खास बात यह है कि यह सिर्फ फिल्म के संरक्षण तक सीमित फाउंडेशन नहीं होगा. इसके तहत भारत, नेपाल, श्रीलंका जैसे शहरों से विद्यार्थियों को बुलाकार फिल्म संरक्षण पर कई वर्कशॉप भी कराये जायेंगे. अमिताभ भी यह स्वीकारते हैं कि भारत ने सिनेमा के कई धरोहर को खो दिया. कम से कम अब भी लोगों की आंखें खुलें और वे इसे संजोने की कोशिश करें. सिनेमा के लिए क्रांति लाना सिर्फ फिल्में बनाने से ही नहीं आती. इन प्रयासों से भी सिनेमा के लिए क्रांति की जा सकती है. शिवनेंद्र इन बातों को न सिर्फ समझ रहे हैं, बल्कि वे अपनी ऊर्जा उसमें डाल रहे हैं. आज जहां कई फिल्में शुक्रवार को आकर चली जा रही हैं. उनकी सूध लेना वाला कोई नहीं. ऐसे में इस फाउंडेशन की मदद से वैसी फिल्में जो काफी समृद्ध हैं और उन्हें सहेजा जाना चाहिए था. ताकि आगे आने वाली पीढ़ी उससे रूबरू हो पायें. आवश्यक था. शिवनेंद्र के साथ पूरी फिल्म फर्टिनिटी को आगे बढ़ना ही चाहिए.
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20150318
शिवनेंद्र की अनोखी पहल
शिवनेंद्र सिंह डुंगारपुर ने पिछले साल ही यह घोषणा की थी कि वे फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन का निर्माण करेंगे और उन्होंने अपनी मेहनत से इसे पूरा भी कर लिया है. आगामी 22 फरवरी को इस फाउंडेशन का लोकार्पण होने जा रहा है. खास बात यह है कि इसका लोकार्पण अमिताभ बच्चन कर रहे हैं. शिवनेंद्र ने इससे पहले सेल्योलाइड मैन नामक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई थी. फिल्म पीके नायर पर भी, जिन्होंने पुणे के फिल्म इंस्टीटयूट में फिल्मों के संरक्षण के लिए कदम उठाये. शिवनेंद्र ने एक नयी पहल की है. उन्होंने इस जरूरत को समझा है कि भारत में फिल्मों के संरक्षण की कितनी जरूरत है. आज आलम आरा के प्रिंट्स उपलब्ध नहीं हैं, कई फिल्में विलुत्प हो चुकी हैं. मगर अब तक यह कार्य शुरू नहीं हुआ था. शिवनेंद्र ने अपनी मेहनत और सोच से यह पहल की है, जिसकी सराहना होनी चाहिए. खास बात यह है कि यह सिर्फ फिल्म के संरक्षण तक सीमित फाउंडेशन नहीं होगा. इसके तहत भारत, नेपाल, श्रीलंका जैसे शहरों से विद्यार्थियों को बुलाकार फिल्म संरक्षण पर कई वर्कशॉप भी कराये जायेंगे. अमिताभ भी यह स्वीकारते हैं कि भारत ने सिनेमा के कई धरोहर को खो दिया. कम से कम अब भी लोगों की आंखें खुलें और वे इसे संजोने की कोशिश करें. सिनेमा के लिए क्रांति लाना सिर्फ फिल्में बनाने से ही नहीं आती. इन प्रयासों से भी सिनेमा के लिए क्रांति की जा सकती है. शिवनेंद्र इन बातों को न सिर्फ समझ रहे हैं, बल्कि वे अपनी ऊर्जा उसमें डाल रहे हैं. आज जहां कई फिल्में शुक्रवार को आकर चली जा रही हैं. उनकी सूध लेना वाला कोई नहीं. ऐसे में इस फाउंडेशन की मदद से वैसी फिल्में जो काफी समृद्ध हैं और उन्हें सहेजा जाना चाहिए था. ताकि आगे आने वाली पीढ़ी उससे रूबरू हो पायें. आवश्यक था. शिवनेंद्र के साथ पूरी फिल्म फर्टिनिटी को आगे बढ़ना ही चाहिए.
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