लोग जब उनके काली कलुठी कह कर चिढ़ाते तो वह सबको यही कहा करती कि ये काला रंग ही उनके लिए सफलता की सीढ़ी है. वे जो कुछ भी हैं. इस काले रंग की वजह से ही. उनका मानना था शायद अगर वह गोरी चिट्टी रहतीं तो जिस तरह के किरदार उन्होंने निभाया वह नहीं निभा पातीं. वे अपने श्याम रंंग को अपनी बाधा नहीं, बल्कि वरदान मानती थीं. उन्हें नाच गानेवाले किरदार पसंद नहीं थे. जब उन्हें अमिताभ बच्चन के साथ बारिश में फिल्माया गीत आज रपटÞ... जायें फिल्माना था. वे काफी नर्वस थीं. दरअसल, स्मिता पाटील जैसी अभिनेत्रियां वाकई अभिनय शब्द को परिभाषित करती हैं. स्मिता जैसी समर्पित अदाकाराओं की वजह से ही हिंदी सिनेमा समृद्ध हुआ. स्मिता ने जिस तरह के किरदारों को निभाया है. उन्होंने दरअसल, अभिनय को पूरी तरह से जिया है. यह उनके अभिनय का ही कमाल था कि लोगों ने कभी उनके रंग या सामान्य से चेहरे पर ध्यान ही नहीं दिया. वे अभिनय करतीं तो लोगों की नजर उनके अभिनय से ही नहीं हटती थी. वे कला की प्रेमी थीं और सिनेमा के साथ साथ थियेटर से हमेशा जुड़ी रहीं. श्याम बेनेगल की खोज स्मिता ने फिल्मों में प्रवेश चरणदास चोर से किया था. अपनी पहली ही फिल्म से उन्होंने साबित कर दिया था कि सशक्त अभिनय के लिए कई फिल्में करने की जरूरत नहीं. अगर आप वाकई अभिनेत्री हैं तो आपके कैमरे के पहले टेक से ही यह बात दर्शकों तक पहुंच जायेगी और हुआ भी ऐसा ही. चरणदासचोर के बाद लगातार स्मिता को समांतार फिल्मों के किरदार मिलते गये. स्मिता को भी कभी ग्लैमरस कहलाने, सौंर्द्य की देवी कहलाने में कोई दिलचस्पी नहीं रही. उनके करीबी दोस्त बताते हैं कि वे फिल्म के निर्माताओं से कभी मेहताना के लिए बात भी नहीं करती थीं. उन्हें शोहरत का मोह नहीं था. बल्कि वे कलाकार के रूप में ही विख्यात होना चाहती थीं. शायद यही वजह है कि बाद के दौर में कमर्शियल फिल्में करने के बावजूद वे पैरलल सिनेमा की सबसे पसंदीदा अभिनेत्री में से एक रहीं. निशांत, भूमिका, मंडी, मंथन फिल्में स्मिता के करियर के लिए ही नहीं, बल्कि श्याम बेनेगल के करियर की भी सबसे महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ फिल्में रहीं. साथ ही हिंदी सिनेमा के इतिहास में भी ये सारी फिल्में स्मरणीय बन गयीं. फिल्म मंथन हिंदी फिल्म की कालजयी फिल्म बनी. गुजरात के दूध व्यापारियों पर आधारित इस फिल्म का निर्माण वहां के किसानों द्वारा जमा की गयी राशि से हुआ था. फिल्म को सफल कराने में मुख्य योगदान स्मिता का ही रहा था. एक गांव की महिला का किरदार उन्होंने इस फिल्म में बिल्कुल वास्तविकता के साथ निभाया था. चूंकि इस फिल्म में जिस तरह के मुद्दे उठाये गये थे और स्मिता ने जिस अंदाज में इसमें अभिनय किया था. वह उल्लेखनीय था. अभिनेता नाना पाटेकर को फिल्मों में लाने का श्रेय भी स्मिता को ही जाता है. उन्होंने ही अपनी जिद से नाना को थियेटर से सिनेमा की तरफ रुख करने को कहा, क्योंकि स्मिता ने उनके कई नाटक देखे थे और उन्हें विश्वास था कि नाना पाटेकर बेहतरीन अभिनेता हैं. पुणे में जन्मी स्मिता का पहला सामना कैमरे से एक टीवी समाचार वाचक के रूप में हुआ था. वे हमेशा से विद्रोही रहीं. बचपन में भी उन्हें चुप रहना पसंद नहीं था. वे गलत बातों पर हमेशा अपनी आवाज उठाती थीं. उन्हें स्कूल में लोग टॉम ब्वॉय कह कर ही बुलाते थे. स्मिता को उनके योगदान के लिए दो बार राष्टÑीय पुरस्कारों से नवाजा गया. वे पदमश्री भी रहीं. वर्ष 1977 स्मिता के करियर का सबसे अहम वर्ष रहा. चूंकि इसी वर्ष भूमिका और मंथन दोनों फिल्में आयीं. और इन दोनों ही फिल्मों में स्मिता ने दो अलग अलग किरदार निभाये थे. बकौल श्याम बेनेगल स्मिता जब बिंदी लगाती थी. तो ऐसा गलता था कि चांद काली रात में भी चांदनी बिखेर रहा है. हर फिल्म में वह कुछ अलग करने की कोशिश किया करती थीं. फिल्म भूमिका की सफलता के बाद स्मिता कलात्मक फिल्मों की शीर्ष अभिनेत्री बन गयीं. महेश भट्ट के शब्दों में स्मिता जैसी अभिनेत्री न कभी हुई न होगी. वह जिस तरह अपने हर किरदार को जीती थी. और कैसे वह अपने किरदारों की तैयारी करती थी. यह हमेशा रहस्यमय ही रहेगा. चूंकि स्मिता सेट पर आने के साथ बहुत मस्ती किया करती थी. होमवर्क करनेवालों में से वह नहीं थी. लेकिन कैमरा आॅन होते ही स्मिता बेहद सशक्त और सतर्क हो जाती थी. स्मिता ने इस दुनिया को महज 31 वर्ष में अलविदा कह दिया था. लेकिन उन्होंने कम समय में ही अपनी जो पहचान स्थापित की और जिस तरह की भूमिकाएं निभायी. आज भी वे स्मरणीय हैं. उन्होंने कम वक्त में ही सिनेमा की पूरी सदी को जी लिया और सिनेमा को अमर कर दिया. आज के दौर के दर्शक भी स्मिता पाटिल की फिल्मों से वाकिफ हैं. चूंकि पुराने दौर के लोगों ने उनका इतना गुणगान किया है कि वर्तमान दौर के दर्शक भी उनकी फिल्में देखना पसंद करते हैं. फिल्म चक्र में स्मिता ने झुग्गी झोपड़ी में रहनेवाली महिला के किरदार को रुपहले परदे पर जीवंत कर दिया था. स्मिता अपनी निजी जिंदगी में बेहद सामान्य सी रहनेवाली लड़की थीं. वे अजनबियों से बात नहीं करती थी. लेकिन जिनसे वह घुलमिल जातीं. वे उनके दोस्त बन जाते. उन्हें निजी तौर पर भड़कीले कपड़े पहनना पसंद नहीं था. स्मिता अपनी सोच में बोल्ड थीं. उनके लिए बोल्डनेस का मतलब उनका अंग प्रदर्शन नहीं था. वे अंग प्रदर्शन करती थीं. लेकिन लिहज के साथ. उनका मानना था कि अगर अंग प्रदर्शन से फिल्मों में काम मिल जाता तो हर लड़की हीरोइन होती. स्मिता अंग प्रदर्शन को गलत नहीं मानती थीं. अगर स्क्रिप्ट की जरूरत हो और वे कोई ऐसा किरदार निभा रही हैं, जहां उन्हें अपने किरदार को स्थापित ही अंग प्रदर्शन से करना हो तो वह इसे जायज मानती थीं. शायद यही वजह थी कि वे उस दौर में काफी विवादित अभिनेत्री भी रहीं. खासतौर से राज बब्बर के प्रेम प्रसंग के कारण उनका नाम सबसे ज्यादा मीडिया में बदनाम हुआ. अमिताभ के शब्दों में स्मिता के पास जबरदस्त सिक्स सेंस था. वे जो घटनाएं होनेवाली होती थीं. उनका अनुमान स्मिता को पहले ही हो जाया करता था. अमिताभ बताते हैं कि जब फिल्म कुली के दौरान उनका बहुत बड़ा एक्सीडेंट हुआ था. स्मिता ने एक्सीडेंट से एक दिन पहले अमिताभ को फोन करके पूछा था कि तुम ठीक तो हो न. मुझे ऐसा लगा कि तुम्हारे साथ कुछ बुरा होनेवाला है और अगले ही दिन अमिताभ दुघर्टना ग्रसित हुए. स्मिता को अपने बारे में भी यह अंदेशा होता था कि वह बहुत लंबी उम्र नहीं जी पायेंगी औैर शायद इसलिए उन्होंने अपने जीवन के सारे निर्णय बहुत ज्यादा दिमाग से नहीं दिल से लिये. वह अफसोस नहीं किया करती थीं. स्मिता नहीं हैं. लेकिन उनकी फिल्में अर्थ, मंथन, अमृत, अर्धसत्य, आक्रोश, आखिर क्यों, आनंद और आनंद, मंडी, निशांत जैसी फिल्में हमेशा उनकी यादें ताजा करती रहेंगी. स्मिता आज भी कई अभिनेत्रियों की प्रेरणा हैं. लेकिन उन-सा बनने की जुररत आज तक किसी अभिनेत्री ने नहीं किया है. खुद शबाना आजिमी, जया बच्चन स्मिता की फैन हैं.
अनुप्रिया अनंत
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