आज 3 मई है और आज ही के दिन वर्ष 1913 में पहली बार भारतीय सिनेमा का शंखनाद हुआ. दादा साहेब फाल्के सिनेमा के पितामाह कहलाये. जिस वक्त दादा साहेब ने यह नींव रखी थी, वे शायद ही इस बात से वाकिफ थे कि उनकी यह पहल 100 साल का इतिहास बनायेगी. यह सच है कि भारतीय सिनेमा अपने आप में इतनी विस्तृत है कि आप इसको किसी सीमा में नहीं बांध सकते. आप इसके तिलिस्म को कभी नहीं समझ सकते. 100 साल के सिनेमा पर कई तरह के आयोजन हो रहे हैं. लेकिन सिर्फ इसे बॉलीवुड के 100 साल कहना उचित नहीं. चूंकि यह भारतीय सिनेमा का शंखनाद है. और भारतीय सिनेमा का मतलब सिर्फ हिंदी सिनेमा नहीं. इसमें कन्नड़, तमिल, तेलुगु, बांग्ला, गुजराती, मराठी और भोजपुरी समेत मणिपुरी व उत्तर पूर्व की कई भाषाओं की फिल्में आती हैं. इन सभी भाषाओं की फिल्मों ने भी खुद को साबित किया है और इन सभी भाषाओं की फिल्मों को भी उतना ही महत्व दिया जाना चाहिए जितना की हिंदी को मिलता है. अफसोस तो तब होता है जब एक हिंदी सिनेमा में काम करनेवाला व्यक्ति यह कहता है कि वह हिंदी में ठीक से बात नहीं कर सकता. कम से कम भारत की अन्य भाषाओं की फिल्मों के साथ ऐसा तो नहीं होता. ये सभी क्षेत्रीय फिल्में अपनी भाषा का मान करते हैं और एक से बढ़ कर एक फिल्मों का निर्माण भी कर रहे हैं.भारतीय सिनेमा को बड़े परिपेक्ष्य में देखा जाये और सिनेमा की सदी को श्रद्धांजलि देते वक्त इन सभी भाषाओं में बनी बेहतरीन फिल्मों का भी उल्लेख किया जाये. साथ ही उन लोगों को भी याद किया जाये. जिन्होंने योगदान तो दिया लेकिन कभी दर्शकों के सामने नहीं आये. भारतीय सिनेमा ने एक इतिहास पूरा किया है. लेकिन हकीकत यह है कि सिनेमा को हर दिन अपने आपमें एक इतिहास बनता है. सिलसिला जारी रहेगा.
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20130513
भारतीय सिनेमा के 100 साल
आज 3 मई है और आज ही के दिन वर्ष 1913 में पहली बार भारतीय सिनेमा का शंखनाद हुआ. दादा साहेब फाल्के सिनेमा के पितामाह कहलाये. जिस वक्त दादा साहेब ने यह नींव रखी थी, वे शायद ही इस बात से वाकिफ थे कि उनकी यह पहल 100 साल का इतिहास बनायेगी. यह सच है कि भारतीय सिनेमा अपने आप में इतनी विस्तृत है कि आप इसको किसी सीमा में नहीं बांध सकते. आप इसके तिलिस्म को कभी नहीं समझ सकते. 100 साल के सिनेमा पर कई तरह के आयोजन हो रहे हैं. लेकिन सिर्फ इसे बॉलीवुड के 100 साल कहना उचित नहीं. चूंकि यह भारतीय सिनेमा का शंखनाद है. और भारतीय सिनेमा का मतलब सिर्फ हिंदी सिनेमा नहीं. इसमें कन्नड़, तमिल, तेलुगु, बांग्ला, गुजराती, मराठी और भोजपुरी समेत मणिपुरी व उत्तर पूर्व की कई भाषाओं की फिल्में आती हैं. इन सभी भाषाओं की फिल्मों ने भी खुद को साबित किया है और इन सभी भाषाओं की फिल्मों को भी उतना ही महत्व दिया जाना चाहिए जितना की हिंदी को मिलता है. अफसोस तो तब होता है जब एक हिंदी सिनेमा में काम करनेवाला व्यक्ति यह कहता है कि वह हिंदी में ठीक से बात नहीं कर सकता. कम से कम भारत की अन्य भाषाओं की फिल्मों के साथ ऐसा तो नहीं होता. ये सभी क्षेत्रीय फिल्में अपनी भाषा का मान करते हैं और एक से बढ़ कर एक फिल्मों का निर्माण भी कर रहे हैं.भारतीय सिनेमा को बड़े परिपेक्ष्य में देखा जाये और सिनेमा की सदी को श्रद्धांजलि देते वक्त इन सभी भाषाओं में बनी बेहतरीन फिल्मों का भी उल्लेख किया जाये. साथ ही उन लोगों को भी याद किया जाये. जिन्होंने योगदान तो दिया लेकिन कभी दर्शकों के सामने नहीं आये. भारतीय सिनेमा ने एक इतिहास पूरा किया है. लेकिन हकीकत यह है कि सिनेमा को हर दिन अपने आपमें एक इतिहास बनता है. सिलसिला जारी रहेगा.
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