20130513

बाल यौन शोषण व सिनेमा



 हाल ही में दिल्ली में एक पांच साल की लड़की के साथ हुए बलात्कार के बाद निर्देशक ओनिर ने अपनी भड़ास सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर निकाली है. उन्होंने अपने स्टेट्स में लिखा है कि सारे न्यूज चैनल सरकार को खरी खोटी सुनाते रहते हैं कि वे क्यों नहीं कोई ठोस कदम उठा रही है. लेकिन ऐसे विषयों पर जब फिल्में बनती हैं तो वह दर्शकों तक नहीं पहुंचती और इसके लिए किसी चैनल की तरफ से कोई सवाल भी नहीं उठाया जाता है. वाकई ओनिर की यह भड़ास जायज है. ओनिर ंने कुछ सालों पहले आइएम नामक फिल्म का निर्देशन निर्माण किया था, जिसमें उन्होंने बाल यौन शोषण के मुद्दे को गंभीरता से दर्शाया था. लेकिन यह फिल्म बड़े स्तर पर दर्शकों से वंचित रही. चूंकि यह सिताराविहीन फिल्म थी. फिल्म को राष्टÑीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया. लेकिन दर्शकों तक यह पहुंच नहीं पायी. मसलन फिल्म का जो उद्देश्य था. वह पूरा नहीं हो पाया. 24 घंटे न्यूज चैनलों में बड़े सितारों से संबंधित गॉसिप का प्रसारण होता है. किसी सेलिब्रिटी का कुत्ता खो गया तो वह भी हेडलाइन बनती है. लेकिन उस वक्त चैनल कहां होते हैं? जब उन्हें वाकई आइएम जैसी फिल्में दिखाने की मुहिम करनी चाहिए. फिल्म बैंडिट क्वीन के भी शुरुआती दृश्य में बाल शोषण के कुछ सीन दिखाये गये हैं. आमिर खान जब सत्यमेव जयते में बाल यौन शोषण की बात करते हैं तो पूरा भारत इसे स्वीकारता है. लेकिन फिल्में बनती हैं तो निर्माता के अभाव में व बड़े बैनर के अभाव में वे दर्शकों तक पहुंच नहीं पाती. फिल्मों में आयटम सांग न हो. इस पर बहस होती है चैनल में. तो फिर इस पर क्यों नहीं कि कुछ जरूरी फिल्में हैं जो जरूर दिखाई जानी चाहिए. ओनिर की तरह अन्य निर्देशकों को भी ऐसी फिल्में बनानी चाहिए. और सरकार को चाहिए कि वे अनिवार्य रूप से इन फिल्मों को दिखाये.

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