20130513

शमशाद का जाना



 शमशाद बेगम ने इस दुनिया को 23 अप्रेल की रात अलविदा कह दिया. वे मुंबई के हीरानंदानी में अपनी बेटी उषा के साथ कई वर्षों से रह रही थीं. शमशाद बेगम के व्यक्तित्व की खास बात यह थी कि वे उम्रदराज होकर भी निराशावादी नहीं थीं. उन्होंने कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की. उनके मन में किसी तरह की कोई दुर्वभावना नहीं थी. उनसे जब भी यह बात पूछी जाती कि क्या वह वर्तमान के संगीत को पसंद करती हैं. वे खुशी खुशी कहतीं कि हर संगीत का अपना दौर रहा है. दौर बदला. संगीत बदला. इसमें बुरा मानने की क्या बात है. शमशाद बेगम जैसी कम ही शख्सीयत ही हैं हिंदी सिने जगत में, जो नये जेनरेशन को देख कर आंख तरेरने की बजाय उनके साथ कदमताल करने को तैयार रहती हैं. शमशाद बेगम ने अपने जमाने में हर तरह के गाने गाये. फिर चाहे वह मेरे पिया गये रंगून हो..., कजरा मोहब्बतवाला हो...तेरी मेहफिल में किस्मत आजमा... हो. वे अपनी गायिकी को कभी सीमित नहीं रखता चाहती थीं. बजाय इसके कि वे जिस घराने से संबंध रखती थीं, उस घराने में गायिकी में भी कई तरह से पाबंदियां थी. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हर तरह के गाने गाये. उन्हें शुरुआती दौर में अपने गानों के लिए महज 12 रुपये मिलते थे. लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस नहीं था. चूंकि उन्हें अपने गायन से बेहद प्यार था और वे गा कर ही संतुष्ट रहती थीं. उनके लिए भौतिकवादी सुख सुविधाओं का कोई महत्व नहीं था. आज भी वे भले ही मुंबई के सबसे महंगे इलाके में रहती थीं. लेकिन आज भी उनके परिधान आम होते थे. वे प्राय: सलवार कुर्ते में होती थीं और प्राय: हल्के रंग के कपड़े पहनना पसंद करती थीं. शमशाद को अपने संगीत निर्देशकों में नौशाद सबसे प्रिय थे. वे आज भी जब भी मौका मिलता था नौशाद के गीत सुना करती थीं.

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