20130513

मैं रहूं न रहूं लोग मेरे नगमों को याद रखेंगे : शमशाद


 उर्मिला कोरी

सबहेड : पति की मृत्यु पर भी गाया था गाना
- फिल्म मदर इंडिया का गाना छोड़ बाबुल का घर मोहे पी के नगर आज जाना पड़ा शमसाद जी ने उस वक्त गाया था जब उनके पति को मरे हुए कुछ दिन ही हुए थे. ये गाना नयी नवेली दुल्हन ( नरगिस) े पर फिल्माया गया था. अपनी जिंदगी की इतनी बड़ी त्रासदी के बावजूद उन्होंने अपना दुख इस गाने पर हावी नहीं होने दिया था.
-ओपी नय्यर उनकी आवाज की तुलना मंदिर के घंटी से की थी. चूंकि मंदिर की घंटी जिस तरह पवित्र होती है शमशाद जी की आवाज भी उतनी ही पवित्र थी.

आज से कुछ सालों पहले मुंबई के हीरानंदानी स्थित उनके घर पर मुझे उनसे मिलने का मौका मिला था. उनके घर पर पहुंचने से पहले मेरे जेहन में उनकी व्यक्तिव की संजीदा छवि उभरी थी क्योंकि वह हिंदी सिनेमा की उन चुनिंदा शख्सियतों में से हैं जिन्होंने गायकी का इतिहास खुद में समेट रखा था. लेकिन जब वह व्हीलचेयर से कमरे में दाखिल हुई तो उनकी बच्चों की तरह खिलखिलाती मुस्कुराहट ने एक अलग ही छवि जेहन में बस गयी. मुझे देखकर उनकी जो पहली प्रतिक्रिया थी वह यह कि अरे आप तो अभी बच्ची हो. खुशबख्त हो जो आज के दौर में हो वरना हमारे जमाने में बहुत पाबंदिया थी. अच्छा लगता है जब लड़कियो ंको उनके मन का करते देखती हूं. शमशाद  जी से मिले अभी बस दो मिनट ही हुए थे. लेकिन ऐसा लग रहा था मानो वे हमें और हम उन्हें बरसों से जानते हों. उन्होंने तहे दिल से न सिर्फ मेरा स्वागत किया, बल्कि किसी अभिभावक की तरह ही फिल्मों से इतर की भी दुनिया के बारे में बातचीत की. शमशाद मशहूर गायिका हैं. यह उनकी जगजाहिर छवि है. लेकिन उनके व्यक्तित्व के और भी कई पहलू थें, जो उनसे मिल कर ही आप जान सकते थे. वे खुशमिजाज, नये लोगों की तारीफ करनेवाली महिला थीं. वे लोगों की हौंसलाअफजाई करने में विश्वास रखती थीं और जिंदगी से वे बेहद संतुष्ट थीं. यही वे तत्व हैं जो उन्हें औरों से जुदा करते हैं. बिना शिकवा शिकायत के उन्होंने एक बेहतरीन जिंदगी जी और संतुष्टि से उन्होंने 23 अप्रेल को हमसे विदा लिया. शमशाद नहीं रहीं. लेकिन उनकी गायिकी और उनका खुशमिजाज दिल हमेशा हमारे जेहन में जिंदा रहेगा. उस वक्त उन्होंने अपनी जिंदगी की कई बातें सांझा की थी. यहां प्रस्तुत है शमशाद बेगम से हुई बातचीत के मुख्य अंश उनके ही शब्दों में.

शमशाद रुढ़िवादी मिजाज की नहीं थीं और न ही वह दिखावे में विश्वास करती थीं. उन्हें आज के दौर की फिल्में देखना पसंद था. खासतौर से टीवी की उन्हें लत थीं. वे जम कर रियलिटी शोज देखती थीं और उनकी प्रशंसक भी थी.

१२ साल की उम्र में शुरुआत
 महज १२ साल की उम्र में जेनोफोन कंपनी में मैंने अपने कैरियर की शुरुआत की थी. मेरे चाचाजी मेरे लिए मेरे प्रेरणास्त्रोत थे. उन्हें गाने का शौक था. उनसे यही यह गुण मुझमे आ गया था. मेरे चाचाजी को मेरी आवाज बहुत पसंद थी इसलिए जेनोफोन(लाहौर) द्वारा आयोजित प्रतिस्पर्धा में वे मुझे ले गए.जहां मैंने बिना किसी संगीत के एक मुखड़ा गाकर संगीतकार उस्ताद गुलाम हैदर का मन जीत लिया. मैं विजेता चुनी गयी और जेनोफोन कंपनी के साथ १२ गानों का कॉट्रैक्ट मिला. एक गाने के लिए उस वक्त बारह रुपये मिलते थे. इससे पहले मेरी विधिवत ट्रेनिंग नहीं हुई थी लेकिन उस्ताद गुलाम हैदर ने मुझे संगीत की औपचारिक शिक्षा दी वहीं मेरे लिए मेरे पहले और आखिरी गुरू थे. उस वक्त धार्मिक कट्टरता भी काफी हावी थी मुझे याद है जेनोफोन कंपनी ने एक आरती जय जगदीश रिकॉर्ड करवायी थी मगर धर्मिक कट्टरता की आशंका के डर से मेरे जगह उमा देवी का नाम दिया गया था.

आसान नहीं था प्लेबैक सिगिंग का सफर
जेनोफोन कंपनी में तो मैं गाने लगी थी लेकिन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मेरे लिए बतौर गायिका शुरुआत करना आसान नहीं था. अम्मी गुलाम ए फातिमा जितनी नर्म मिजाज की थी. अब्बा हुसैन बक्श उतने ही सख्त मिजाज, गुस्सैल और दकियानूसी विचारों के थे. महिलाएं उस वक्त परदे में रहती थी और गैर मर्द के सामने बेनकाब नहीं आ सकती थी. उन दिनों प्लेबैक का जमाना नहीं था. अभिनेत्रियां अभिनय के साथ -साथ परदे पर गाती भी थी इसलिए लाहौर के पंचोली स्टूडियो ने मेरी आवाज सुनकर मुझे स्क्रीन टेस्ट के लिए पहले बुलाया  था. आपको विश्वास नहीं होगा मैं चुन ली गयी. स्क्रीन टेस्ट तो मैं अब्बाजान से छिपकर देने गयी थी लेकिन जैसे ही शूटिंग की बात आयी, अब्बा से इजाजत लेना जरूरी हो गया था. जैसे ही अभिनय के लिए मैंने उनसे बात की उन्होंने फरमान सुना दिया कि अगर मैंने अभिनय के लिए जिद किया तो वे मेरा गाना भी बंद करवा देंगे. मेरे सपने चूर-चूर हो गए. मैंने आॅल इंडिया में रेडियो प्रोग्राम कर अपने अंदर की गायिका को जिंदा रखा था लेकिन अल्लाह को मुझ पर तरस आ गया और दो साल बाद प्लेबैक सिगिंग का दौर शुरु हो गया और एक बार फिर पंचोली स्टूडियो ने मुझे बुलाया और बतौर गायिका  अपनी फिल्म खजांची में मुझे ब्रेक दिया. सो इस तरह से मुझे मेरी पहली फिल्म मिल गयी.


महबूब खान की वजह से मुंबई आयी: खजांची फिल्म के गीत सभी को इतने पसंद आए कि पाकिस्तान से हिंदुस्तान तक सभी मेरे प्रशंसक बन गए . इन्ही में से एक फिल्मकार महबूब खान भी थे. मुझे मुंबई लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है. वे मुझसे मिलने लाहौर आए और मेरे अब्बा को मनाया. अब मान गए लेकिन उन्होंने एक शर्त्त रखी कि मुंबई जाने के बाद भी मैं परदा करूंगी और अभिनय में कभी नहीं आऊंगी. मैंने हां कर दिया.  जिसके बाद मैं मुंबई आ गयी. महबूब खान की फिल्म तकदीर में मैं नर्गिस दत्त की मैं आवाज बनी थी. जिसके बाद सी रामचंद्रन,पंडित गोविंद , अनिल विश्वास जैसे संगीतकारों की जैसे लाइन लग गयी. एक के बाद एक  फिल्मो में सुपरहिट गीत और मैं मुंबई की होकर ही रह गयी लेकिन अपने अब्बा से किया वादा हमेशा निभाया.अपने कैरियर में मैंने हमेशा खुद को लाइम लाइट से दूर रखा. मेरी गिनी चुनी तस्वीरे ही होगी. मैं सिर्फ गाना गाती फिर घर आ जाती थी. यही वजह है कि इंडस्ट्री में मेरा कभी कोई दोस्त नहीं था.

मैंने कभी काम नहीं मांगा: शुरुआत में नवोदित संगीतकार मेरे पास आकर कहते थे कि आप मेरी फिल्म में एक गाना गा दीजिए लेकिन गाना हिट हो जाने के बाद वे मुझे पहचानते नहीं थे. मैं हमेशा से यही सोचती थी कि जो गीत मेरे लिए बना है वह मुझे ही मिलेगा. नूरजहां, सुरैया, जौहराबाई अंबावाली, अमीर बाई कर्नाटकी, उमादेवी ये उस दौर में मेरी प्रतिद्वंदी थी. जो गायकी के साथ-साथ अभिनय भी करती थी लोग इन्हे आवाज और अभिनय दोनों से पहचानते थे लेकिन मेरी आवाज ही काफी थी. दर्शकों ने मेरी आवाज को हमेशा ही पसंद किया और मुझे काम मिलता गया. मैंने कभी भी किसी संगीतकार से काम नहीं मांगा. यही वजह है कि जब इंडस्ट्री मे ंग्रुपिज्म बढ़ गया तो मैंने इंडस्ट्री छोड़ दी. मुझे खुशी थी कि जब मैंने इंडस्ट्री छोड़ी उस वक्त मैं टॉप पर थी. फिल्म किस्मत का हाय मैं तेरे कुर्बान मेरा आखिरी गीत था. जो बहुत बडा हिट हुआ था. उस गीत के बाद मैंने कभी माइक नहीं पकड़ा.

 संगीत से लगाव कायम: मौजूदा दौर में मुझे सोनू निगम की आवाज बहुत पसंद है. मुझे रिमिक्स गानों से कोई परहेज नहीं है. मेरे द्वारा गाए गए गीत सैंय्या दिल में आना , लेके पहला पहला प्यार और मेरी पिया गए रंगून जैसे अपने गीतों के रिमिक्स वर्जन मैं चाव से सुनती हूं. मुझे खुशी है कि कम से कम रिमिक्स गानों की वजह से आज की पीढ़ी पुराने गानों से रुबरू हैं.

इस पीढ़ी की परेशानी: इस पीढ़ी की मुझे सिर्फ एक परेशानी नजर आती है वह यह कि यह अपने बड़े बुजुर्गो का इतना सम्मान नहीं देती जितना हमारे वक्त में था. मुझे याद है मैं मोहम्मद रफी के साथ फिल्म रेल का डिब्बा का गीत ला दे मुझे बालमा हरी हर चूडियां गीत गा रही थी. बिना सांस लिए गाना गाने की बात भले ही आज चर्चा में हो लेकिन हमारे वक्त में भी हम ऐसे ही कई गीत गाते थे. ऐसे ही रेल का डिब्बा का गीत था. गाते हुए रफी की सांस टूट जा रही थी लेकिन मेरी नहीं टूट रही थी फिर क्या था रफी साहब ने आकर मेरे पैरों को छू लिया और कहा कि आपा कैसे आप एक सांस में गा ले रही हैं. उस वक्त अपने से बड़ों का इस कदर सम्मान किया जाता था. किशोर कुमार कोरस में वायलन बजाता था. अक्सर गाने की रिकॉडिंग के बाद मेरे कुर्सी के पास आकर बैठ जाता और कहता कि मेरे भाई( अशोक कुमार) मुझसे कितने आगे हैं और मैं कहीं भी नहीं हूं तब मैंने उससे कहा था कि वो दिन ज्यादा दूर नहीं जब तू सबसे आगे निकल जाएगा. वाकई ऐसा ही हुआ. उसमें संगीत को लेकर जबरदस्त जुड़ाव था. संगीत उस वक्त के लोगों के लिए सिर्फ व्यवसाय या आय का साधन नहीं था बल्कि इबादत थी. मुझे याद है राजकपूर को अपनी फिल्म अवारा में मुझसे एक गाना गवाना था लेकिन मेरे पास बिल्कुल भी समय नहीं था.  चूंकि उस वक्त एक बार में ही गाने की रिकॉडिंग करनी पड़ती थी इसलिए पहले ही मैं संगीतकार के साथ रियाज कर लेती थी तब जाकर स्टूडियो में गाना गाती थी मगर राज साहब के लिए मेरे पास डेट्स ही नहीं थी. मैंने उन्हें परेशानी बतायी और कहा कि अगर मैं मुश्किल से गाने के लिए एक दिन का समय निकाल लूंगी लेकिन रिर्हसल के लिए समय कहां से लाऊं तब राज जी ने मुझसे कहा कि आप उसके लिए परेशान न होए. शंकर जयकिशन आपके घर आकर रिर्हसल करवाएंगे. वाकई हर सुबह गाने की रिकॉडिंग में जाने से पहले शंकर जयकिशन और राज मेरे घर पर पहुंच जाते और रिर्हसल करवाते थे.

 कोई शिकवा नहीं: आखिर में मुझे किसी से कोई शिकवा नहीं है. इंडस्ट्री ने मेरी कभी खबर नहीं ली है. मुझे किसी से शिकायत नहीं है. गायकी मेरा जुनून है और मैंने उसे शिद्दत से जिया. उससे ज्यादा मुझे किसी से कोई उम्मीद नहीं थी. मुझे उस वक्त भी दुख नहीं हुआ था जब अभिनेत्री सायरा बानो की दादी शमसाद बेगम के मरने पर सभी ने सोचा कि मैं मर गयी हूं. कई प्रतिष्ठित अखबार और चैनलों ने मेरी ही तस्वीर दिखायी थी. मेरी बेटी उषा ने कहा भी हमें इन पर केस करना चाहिए लेकिन मैंने मना कर दिया. आखिरकार सच्चाई सामने आ गयी. मैं एक बात जानती हूं कि मैं रहूं या न रहूं लेकिन मेरी आवाज फिल्मों के माध्यम से हमेशा जिंदा रहेगी.

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