20130513

मुर्दापरस्त है इंडस्ट्री



अपने जमाने की मशहूर अदाकारा बेबी तब्बसुम से हाल ही में बातचीत हुई. उन्होंने अपनी बातचीत के दौरान कई बार इस बात का जिक्र किया कि उन्हें बेहद तकलीफ कि हम हिंदी सिनेमा के 100 साल का जश्न मना रहे हैं. लेकिन हिंदी सिनेमा की यह रीत रही है कि वह जिंदा लोगों की इज्जत नहीं करता. मरने पर उन्हीं के तराने गाये जाते हैं. 23 अप्रेल को मशूहर गायिका लीजेंडरी शमशाद बेगम ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. कुछ दिनों पहले तब्बसुम और शमशाद की मुलाकात किसी कार्यक्रम में हुई थी. जहां शमशाद ने तब्बसुम से कहा था कि यह इंडस्ट्री मुर्दापरस्त है. यहां मुर्दों की इज्जत है. जीते जागते की नहीं. साथ ही उन्होंने यह भी अफसोस जताया कि इस इंडस्ट्री में लोगों को दौलत शोहरत तो मिल जाती है. लेकिन सुकून नहीं मिलता. दरअसल, हकीकत यही है कि ये दुनिया ही अजीब है. हम जिंदगी पर जिस दौलत शोहरत की तलाश में रहते हैं. उसे हासिल करने के बाद सबकुछ होता है सुकून नहीं होता. 100 साल के हिंदी सिनेमा के इतिहास की यह भी एक सच्चाई है कि यहां कई ऐसे सुपरस्टार्स हैं, जिन्हें दुनिया की सारी खुशियां मिलीं. लेकिन सुकून नहीं मिला. फिर चाहे वह सुरैया हो, राजेश खन्ना हो या फिर मधुबाला जैसी हस्तियां, सभी ने जिंदगी तन्हाई में गुजारी. परबीन बॉबी जैसी कई अभिनेत्रियों को तो अंतिम समय में भी किसी का साथ नहीं मिला. दरअसल,कुछ फिल्मी सितारें इसके जिम्मेदार खुद होते हैं. वे कई बार दौलत शोहरत की आड़ में अपनों का साथ खोते जाते हैं. जैसा राजेश खन्ना ने किया. सफलता ने उन्हें ऐसा गुमान दे दिया कि वे खुद को शीर्ष समझने लगे. लेकिन कुछ कहानियां सुरैया जैसी भी रहीं, जिन्होंने अधूरे प्रेम की वजह से अपनी जिंदगी जीनी छोड़ दी और अंतिम समय में भी चैन की सांस न ले सके.

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