20130513

अमिताभ बच्चन ेसमाज में अब सिनेमा को इज्जत की नजर से देखते हैं



मुझे भारतीय फिल्म इंडस्ट्री पर बहुत गर्व है.इस बात से कि जब से यह शुरू हुई. शुरू के जो साल थे. उसमें फिल्मों को ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती थी. जो भी अच्छे घर के बच्चे होते थे. उन्हें फिल्मों में नहीं आने दिया जाता था. लेकिन मुझे खुशी है कि मेरा  परिवार कभी इसके खिलाफ नहीं था. हां, यह जरूर था कि जब मैं भी छोटा था तो मेरे माता पिता भी पहले खुद जाकर उस फिल्म को देख कर आते थे. फिर वह अनुमान लगाते थे कि क्या ये बच्चों को दिखाने लायक फिल्म है या नहीं. तभी फिर वे हमें जाने देते थे. हालांकि आज देखिए आज हम कहां आ चुके हैं. समाज का जो सिनेमा को लेकर नेगेटिव प्वाइंट था अब वह बदला है . हां आज भी कुछ जगह हैं जहां आज भी सिनेमा को गलत दृष्टिकोण से देखा जाता है. हेय दृष्टि से देखा जाता है.  जबकि सिनेमा तो हमारे जीवन का अहम हिस्सा है. और सिनेमा की वजह से ही हम देश दुनिया के लोगों से वाकिफ होते हैं. वर्ल्ड सिनेमा हमें दुनिया की सैर ही नहीं कराती. इतिहास को भी बताती है और मुझे लगता है कि सिनेमा से बेहतरीन कुछ नहीं क्योंकि जो चीजें किताब में होती हैं कई बार बंद रह जाती हैं लेकिन हमारी आंखों ने जो देखा होता है. वह उन्हें याद रखता है तो मुझे तो लगता है कि संस्कृति को जिंदा रखने में फिल्मों का योगदान रहा है.मुझे लगता है कि अब लोगों के बीच जो यह अवधारणा थी कि  जो लोग सिनेमा से जुड़े हैं. वह गलत लोग हैं. अब यह सोच बदल चुकी है.आप चाहे माने या न माने चाहे देश माने या न माने लेकिन हमारी फिल्म इं्डस्ट्री आज समाज का पैरलल कल्चर बन चुकी है और न केवल हमारे देश है. बल्कि विदेश में भी जहां भी हम जाते हैं. फिल्म इंडस्ट्री का नाम होता है और उन्हें अब सम्मान की नजर से देखा जाता है. और इसलिए मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूं कि मुझे आज भी दर्शकों का प्यार मिल रहा है. और मैं 100 सालों के इस सफर का अब भी हिस्सा हूं. मैं महसूस करता हूं कि मैं एक छोटा अंश हूं इस हिंदी सिनेमा जगत का. जिस तरह से यह प्रगति कर रही है. इस पर मुझे बहुत गर्व है. 100 वर्ष बीत गये हैं और इन 100 सालों में हमें देश विदेश में लगातार पहचान मिल रही है. अभी कान फिल्मोत्सव में भी हमारी कई फिल्में जा रही हैं. अनुराग कश्यप, जोया, फरहान नये दौर के बच्चे अच्छा काम कर रहे हैं और ये सभी मेहनत से लगे हुए हैं कि हमारी फिल्मों को नाम मिले. इसका मान बढ़े. मैं अभी हाल ही में कई एक जगहों पर जा रहा हूं, अभी हाल ही में मोरक्को गया था.वहां की फिल्म इंडस्ट्री ने हमारे 100 साल पूरे होने पर ज्श्न मनाया. यह दिखाता है कि वे भी हमारी फिल्मों का सम्मान करते हैं. बाहर के भी निर्माता निर्देशकों की भी अवधारणा बदली है. अभी स्पीलबर्ग आये थे. उनका बड़ा गर्व हुआ हमारी फिल्म इंडस्ट्री पर. ऐसा सुनने में आ रहा है कि हर बड़े फिल्मोत्सव में भारतीय सिनेमा की फिल्मों को दिखाया जायेगा. उन्हें स्थान दिया जायेगा. इससे हमें तसल्ली मिलती है कि हमारी मेहनत बेकार नहीं गयी है. तो मैं चाहूंगा कि इन 100 वर्ष में हम सोचें कि हम सभी ने बहुत प्रगति की है. कम से कम समाज में इज्जत बनायी है. पहले जो समाज हमें नीची नजर से देखता था. अब वह हमें सम्मान की नजर से देखने लगा है. अब एक ऐसा स्तर आ गया है कि फिल्मों का डिस्कशन होता है. अच्छे अच्छे घरों के बच्चे फिल्में बनाने आ रहे हैं. बकायदा ट्रेनिंग ले कर आ रहे हैं. पढ़ कर आ रहे हैं तो सम्मान तो हासिल किया है हमने. मुझे बहुत अच्छा लगता है जब नयी पीढ़ी से मिलता हूं. एनर्जी मिलती है. वे काफी एक्टिव हैं. उनके पास उनकी दिशा है. वे मेहनत करते हैं और वे बहुत सुंदर काम कर रहे हैं और अपनी पहली ही फिल्म में आजकल कलाकार और निर्देशक ऐसे ऐसे एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं कि उनका कोई सानी नहीं. हमेनं तो वक्त लग जाया करता था. वे अपना हुनर दिखाते हैं. जो हम नहीं कर पाते थे. तो मैं मानता हूं कि भारतीय सिनेमा ने बहुत कुछ पाया है. और मैं धन्यवाद देना चाहूंगा उन सभी लोगों को जिन्होंने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाने में मदद की. देव आनंद साहब, राजेश खन्ना,. धमेभर््ंद्र जी सबको मैं सादर प्रणाम करता हूं. यह सभी मेरे गुरु रहे और मैं हमेशा इनका आभारी रहूंगा. इन सभी का योगदान भी भारतीय सिनेमा कभी नहीं भूलेगी. मैं महमूद साहब को भी धन्यवाद कहना चाहूंगा. हिंदी सिनेमा ने ही मुझे मेरे होने का मतलब दिया. एक बड़ा प्लैटफॉर्म दिया. अगर हिंदी सिनेमा जगत न होता तो शायद कई बेहतरीन ुहनर लोगों के सामने नहीं आ पाता. विदेशों में लोग हमारी फिल्मों के स्टार्स के नाम जानते हैं. भले ही यहां के पॉलिटिक्स से वाकिफ हो कि नहीं. इससे समझ में आता है कि आपने कुछ तो पहचान बनायी है.मुझे लगता है कि हमारी इनडस्ट्री ने कई बार बुरे हालातों में भी काम किया. खुद को बुरे हालातों में भी संभाला और यही हमारा आत्मविश्वास है. मुझे लगता है कि भारतीय सिनेमा आज जहां भी है. हमारे आत्मविश्वास की वजह से है. यहां हर किसी ने अपनी पहचान बनायी है. मुझे लगता है कि पिछले कुछ सालों में फिल्म की तकनीक काफी अच्छी हो गयी है. साथ ही साथ मैं यह भी कहना चाहूंगा कि ज्यादा से ज्यादा चैनल आने की वजह से भी फिल्मों का विस्तार बढ़ा है. अब हर चैनल पर फिल्मों के बारे में सारी जानकारी दी जाती है तो आम लोगों के बीच अब अधिक रीच हो गयी है हमारी. मुझे लगता है कि हिंदी सिनेमा के साथ साथ भारत की अन्य भाषा की फिल्मों को भी दर्शकों तक पहुंचाया जाना चाहिए. ताकि भारतीय सिनेमा पूरी तरह से समृद्ध हो.
 प्रस्तुति : अनुप्रिया अनंत

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