धर्मेंद्र
मोहब्बत खुदा है.
खुदा है मोहब्बत.
खुदा की मोहब्बत का ही तो फरमान हूं मैं.
प्यार, मोहब्बत आपकी सींचती हैं
मुझे इसलिए शायद जवान हूं मैं
भारतीय सिनेमा के 100 साल के पूरे होने के अवसर पर मैं बस यही कहना चाहूंगा कि अभी तो बस 100 ही बसंत देखे हैं अभी 101 बसंत देखना तो बाकी ही है. सबसे पहले तो सभी साथियों को और भारतीय सिनेमा के हर शख्स और सबसे अहम हमारे दर्शकों का धन्यवाद और उन्हें 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में बहुत बहुत बधाई.भारतीय सिनेमा ने ही मुझे सबकुछ दिया है. यह मेरी रोजी रोटी भी बनी और मेरी मां भी. और मैं खुश हूं कि इस मां के लिए मैंने अपनी तरफ से कुछ योगदान करने की कोशिश की. निस्संदेह इन 100 सालों में दर्शकों ने मुझे बहुत प्यार दिया और शायद आज मैं इस मुकाम पर हूं. एक बात की खुशी है कि इन 100 सालों में कभी किसी ने हमसे बैर नहीं की और न ही हमने किसी से बैर किया. यह इंडस्ट्री आज भी मेरे लिए परिवार सा ही है और मैं हमेशा उन्हें अपने परिवार की तरह ही मानता हूं. अच्छा लगता है सीनियर प्यार लुटाते हैं और शाहरुख़, सलमान जैसे बच्चे मुझे आदर देते हैं. मैंने सिनेमा जगत को बस इतना ही योगदान दिया कि दर्शकों ने मेरी फिल्में देख कर मुझे गालियां नहीं दी. वे मेरी फिल्में देख कर रोये भी हंसे भी और सबसे अधिक तो वह नाचे. तो मैंने जो मोहब्बते लुटायी. उन्होंने न सिर्फ स्वीकार किया बदले में मुझे भी काफी सम्मान दिया. मेरी पसंदीदा फिल्मों की बात की जाये तो शोले मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक है. चूंकि इस फिल्म में हमने दर्शकों को हंसाया भी भरपूर और रुलाया भी भरपूर. मुझे लगता है कि शोले हिंदी फिल्मों की उन चुनिंदा फिल्मों में से एक हैं, जिन्होंने दर्शकों की नब्ज को सही तरीके से समझा था. लोगों को भरपूर आनंद भी दिया और भावनात्मक रूप से भी उस फिल्म से दर्शकों को जोड़े रखा. मुझे लगता है कि मैंने जितने किरदार निभाये दरअसल, आम लोगों के बीच के ही किरदार थे. फिल्म प्रतिज्ञा में मैं ट्रक ड्राइवर बन जाता हूं तो कभी इंस्पेक्टर. फिर लोगों को हंसाता हूं. मेरा मानना है कि हम सभी अभिनेता भी तो आपके बीच के ही हैं और आपसे ही तो हम प्रेरणा लेते हैं. हम आपके बीच के ही किरदार चुनते हैं और फिर उसे परदे पर निभाते हैं तो मेरे लिए तो दर्शक ही संजीवनी हैं. एक और खास बात जो आप लोगों से शेयर करना चाहूंगा कि कई बार हम अभिनेताओं की जिंदगी में भी ऐसे पल आते हैं जो हमें इमोशनल कर देते हैं और हम पब्लिक के सामने भी रो पड़ते हैं. तब जब मैं मीडिया में ऐसी बातें सुनता हूं कि अभिनेता दिखावे के लिए रो देते हैं तो ऐसी बातें सुन कर तकलीफ होती है. एक बात की खुशी है कि अब रियलिस्टिक फिल्में भी खूब बन रही हैं. लेकिन दुख इस बात का भी है कि फिल्मों में इमोशन खोते जा रहे हैं. अब इमोशन को फिल्मों में सेकेंडरी चीजें मानने लगे हैं हम यह गलत है. और यही वजह है कि अब मेरे पास जो फिल्में आती हैं. मैं सभी में काम नहीं करना चाहता क्योंकि वैसी कहानियां नहीं होतीं. आज आप ब्रांड तभी हैं जब आप लगातार दिख रहे हैं. वरना आपकी अहमियत कम हो जाती है. इन बातों से तकलीफ होती है. लेकिन 100 साल के मौके पर मैं चाहंूगा कि जश्न का माहौल बना रहे , सो कमियां न गिना कर उपलब्धि पर बात होनी चाहिए तो मैं मानता हूं कि नये कलाकारों को मौके खूब मिल रहे हैं, तकनीकी रूप से हम काफी समृद्ध हो गये हैं. यह हमारी उपलब्धियां हैं. मैं दिलीप कुमार साहब, अमित, देव आनंद साहब, राजेश खन्ना साहब व सभी अभिनेत्रियों को स्रेह और प्यार देना चाहूंगा इस मौके पर.मैं खुशनसीब हूं कि मुझे दर्शकों ने हर रूप में स्वीकार किया. मैं पीछे मुड़ कर देखता हूं तो लगता है कि वाकई एक सदी जी ली. कितनी मस्ती किया करते थे. फिल्म चुपके चुपके के सेट पर सभी ने जितनी मस्ती की थी. शायद ही किसी और सेट पर की थी.फिल्म शोले में तो मुझे ठाकुर का किरदार इतना पसंद आ गया था कि मैं खुद उस किरदार को निभाना चाहता था. हिंदी सिनेमा के लिए यह भी खास बात है कि इस साल प्राण साहब को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जा रहा है. चूंकि प्राण साहब इसे डिजर्व करते हैं. सो, मैं कहना चाहूंगा िक हमारी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री इसी तरह फलती फुलती रहे और हम सभी को काम मिलता रहे. दर्शकों का प्यार मिलता रहे.
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