ेअच्छे कर्मों में आस्था होनी चाहिए. मैं भगवान की आस्था के खिलाफ नहीं हूं. लेकिन मुझे इस बात से परेशानी है कि लोग आस्था को गलत तरीके से न लें और इसका गलत इस्तेमाल न करें. ओह माइ गॉड से लोगों तक बस यही संदेश पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं निर्देशक उमेश शुक्ला. यह फिल्म कृष्णा वर्सेज कन्हैया प्ले पर आधारित है. उमेश शुक्ला खुद अनुप्रिया अनंत को बता रहे हैं कि क्या क्या कारण रहे, जिन्होंने उमेश शुक्ला व पूरी टीम को यह फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया.
उमेश के मन में बचपन से ही यह सवाल उठते थे कि अगर हम पूजा करते हैं तो भगवान से कोई मदद मांगते हैं तो फिर उन्हें पैसे क्यों चढ़ाते हैं. आखिर यह भी तो एक तरह से भगवान को रिश्वत देने जैसा है. कुछ ऐसे ही सवालों ने उमेश को सोचने पर मजबूर किया और उन्होंने धर्म व पूजा से जुड़ी तमाम चीजें पढ़ीं और समझने की कोशिश की. उन्होंने पूरी जानकारी हासिल की और महसूस किया कि आस्था रखना बुरी चीज नहीं है.पूजा का मतलब लोगों की मदद करना है. असली तीर्थ वही है. इन्हीं खोज से उन्होंने अपने दोस्त भावेश मंडालिया के साथ मिल कर पहले कांजी विरुद्ध कांजी नामक गुजराती प्ले लिखा. फिर इसे हिंदी में कृष्णा वर्सेज कन्हैया में रुपांतरित किया. इस प्ले में परेश रावल ने मुख्य भूमिका निभाई थी. एक बार परेश ने अक्षय कुमार को भी प्ले देखने के लिए बुलाया. अक्षय इस प्ले से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने तय कर लिया कि वे इस पर फिल्म बनायेंगे. इस तरह उमेश को ओह माइ गॉड फिल्म बनाने का मौका मिला.
लोग अंधविश्वास करते थे मुझपे
बकौल उमेश मैं खुद ब्राह्माण परिवार से हूं. और हमारे परिवार में हम दूसरों के घर सत्यनारायण भगवान की पूजा कराने जाते थे. मैं देखता था कि मैं जो जो कहता जा रहा हूं. जो जो मंत्र बोलने के लिए कहता जा रहा हूं. लोग आंख मूंध कर वही सब कहते जा रहे हैं. मुझे बहुत अजीब लगता था. कि लोग कैसे बिना समझे कि वह क्या कर रहे हैं. अंधविश्वास होकर कुछ भी किये जा रहे हैं. दरअसल, हकीकत भी यही है कि हम धर्म के बारे में कम जानकारी रखते हैं और आस्था के नाम पर हम कई अंधविश्वासी चीजें करते हैं. हमारी फिल्म ऐसी ही चीजों से परदा उठायेगी. इस प्ले की खासियत ही रही है कि अब तक मराठी में इसके 100 से भी ज्यादा प्ले हो चुके हैं. मैं इसे आइ ओपनर फिल्म मानता हूं. मैं मानता हूं कि फिल्म देखने के बाद आप किसी तीर्थ के लिए नहीं,बल्कि खुद के आसपास अच्छे कर्म करने की कोशिश करेंगे.
फिल्म की पहुंच अधिक है
मैं मानता हूं कि आज भी भारत में प्ले से अधिक फिल्म की पहुंच है. और इस फिल्म के माध्यम से भी हम अधिक संदेश पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.
लोगों का नजरिया बदलेगा
मैं मानता हंू कि इस फिल्म की यूएसपी यही होगी कि लोगों का नजरिया इस फिल्म से बदलेगा. लोगों को हम इस फिल्म से भड़काने की कोशिश नहीं कर रहे. न ही हम उन्हें कह रहे हैं कि वह धर्म न माने. हम बस लोगों को यह बताना चाहते हैं कि आपकी इंसानियत ही आपकी आस्था है. किसी मंदिर या गुरुद्वारे जाने से शांति नहीं मिलती. शांति तभी मिलती है.जब आप खुद अच्छे काम करें.
फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी एक ऐसे व्यक्ति पर आधारित है. जो भगवान से ही शिकायत करने लगता है कि उसने तो उसकी मदद के लिए दक्षिणा दिया था. फिर भगवान ने तो उसकी मदद की नहीं. ऐसे में भगवान को नियमत: को उसके पैसे वापस करना चाहिए. जैसे बाकी की इंश्योरेंस कंपनियां करती हैं. यह फिल्म भगवान से डरने नहीं, बल्कि भगवान को अपना दोस्त समझने पर आधारित है.
अक्षय की मौजूदगी
मैं मानता हूं कि इससे पहले अक्षय ने कभी ऐसा किरदार नहीं निभाया होगा. सो, हमारी कोशिश है कि उन्हें इस रूप में दर्शाये. अक्षय कुमार और परेश की जोड़ी ने इस फिल्म में हास्य को भी बरकरार रखा है.
हां, यह सच है कि सोनाक्षी के गाने ने फिल्म की लोकप्रियता बढ़ा दी है. लेकिन यह फिल्म की डिमांड भी थी. फिल्म देखने पर आप इसकी जरूरत को महसूस करेंगे.
बकौल उमेश मैं खुद ब्राह्माण परिवार से हूं. और हमारे परिवार में हम दूसरों के घर सत्यनारायण भगवान की पूजा कराने जाते थे. मैं देखता था कि मैं जो जो कहता जा रहा हूं. जो जो मंत्र बोलने के लिए कहता जा रहा हूं. लोग आंख मूंध कर वही सब कहते जा रहे हैं. मुझे बहुत अजीब लगता था. कि लोग कैसे बिना समझे कि वह क्या कर रहे हैं. अंधविश्वास होकर कुछ भी किये जा रहे हैं. दरअसल, हकीकत भी यही है कि हम धर्म के बारे में कम जानकारी रखते हैं और आस्था के नाम पर हम कई अंधविश्वासी चीजें करते हैं.
ReplyDeleteइश्वर की उपस्थिति पर संदेह क्यों ? मन्त्रों और अन्य सम्बंधित क्रियाओं पर हमारा प्रश्न हमारी अज्ञानता को बतलाता है , जैसे हम कितने भी तकनीक से समृद्ध हो जाएँ आज भी स्वयम को पूर्ण बनाने में कमजोर हैं तब तर्क ऐसा ही आता है फिल्म बनाने के लिए प्लाट बुरा नहीं है .