हंगल साहब ने हिंदी सिनेमा ने एक दशक तक अपना योगदान दिया. लेकिन उन्हें सिर्फ अभिनेता या किसी फिल्म हस्ती के रूप में ही स्मरण नहीं किया जा सकता. उनका ओहदा किसी फिल्मी हस्ती से बढ़ कर था. उन्होंने न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम में एक आंदोलनकारी के रूप में अपना योगदान दिया. बल्कि इप्टा के माध्यम से उन्होंने रंगमंच के माध्यम से भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाया. लेकिन यह अफसोस की बात थी कि जिस हिंदी सिनेमा जगत को उन्होंने अपने महत्वपूर्ण साल दिये. उसी हिंदी सिनेमा की हस्तियों ने उन्हें उनकी मृत्यु के बाद आखिरी सलाम देने तक की जरूरत नहीं समझी. हंगल साहब के नजदीकी साथी व विशेष कर नाटक के कई रंगकर्मी सहयोगी तो वहां मौजूद थे. और वे हंगल साहब का गुणगान राम नाम का नाम याद करने की बजाय. हंगल साहब अमर रहें. हंगल साहब को लाल सलाम कह कर कर रहे है.दरअसल, हंगल साहब जैसी हस्तियां वाकई अमर ही तो होती हैं. लेकिन ग्लैमर की दुनिया की रीत भी अजीब है. यहां किसी की मौत पर आंसू भी यह सोच कर खर्च किये जाते हैं कि जिसके लिए वे आंसू बहाये जा रहे हैं कि वह शख्स लोकप्रिय कितना था. यह सच्चाई है कि हंगल साहब ने 50 की उम्र में सिनेमा में कदम रखा और वे सुपरसितारा हस्ती नहीं रखते थे. लेकिन उन्होंने कई सुप्रसिद्ध कलाकारों के साथ काम किया है. वे वरिष्ठ कलाकार थे. लगभग 8 फिल्मों में वे जया भादुड़ी के पिता रहे. लेकिन बॉलीवुड के किसी वरिष्ठ कलाकारों ने उन्हें आखिरी नमन देने की जुररत नहीं समझी. दरअसल, इस ग्लैमर की दुनिया का असली चेहरा भी ऐसे ही मौके पर नजर आता है. हंगल साहब के बेटे ने बताया है कि उन्होंने कभी कोई मेडीक्लेम नहीं कराया था. यह दर्शाता है कि हंगल साहब ने कभी बजत के दृष्टिकोण से काम नहीं किया. उनके योगदान को भूलाया नहीं जा सकता.
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20120903
कलाकार से आगे हंगल
हंगल साहब ने हिंदी सिनेमा ने एक दशक तक अपना योगदान दिया. लेकिन उन्हें सिर्फ अभिनेता या किसी फिल्म हस्ती के रूप में ही स्मरण नहीं किया जा सकता. उनका ओहदा किसी फिल्मी हस्ती से बढ़ कर था. उन्होंने न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम में एक आंदोलनकारी के रूप में अपना योगदान दिया. बल्कि इप्टा के माध्यम से उन्होंने रंगमंच के माध्यम से भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाया. लेकिन यह अफसोस की बात थी कि जिस हिंदी सिनेमा जगत को उन्होंने अपने महत्वपूर्ण साल दिये. उसी हिंदी सिनेमा की हस्तियों ने उन्हें उनकी मृत्यु के बाद आखिरी सलाम देने तक की जरूरत नहीं समझी. हंगल साहब के नजदीकी साथी व विशेष कर नाटक के कई रंगकर्मी सहयोगी तो वहां मौजूद थे. और वे हंगल साहब का गुणगान राम नाम का नाम याद करने की बजाय. हंगल साहब अमर रहें. हंगल साहब को लाल सलाम कह कर कर रहे है.दरअसल, हंगल साहब जैसी हस्तियां वाकई अमर ही तो होती हैं. लेकिन ग्लैमर की दुनिया की रीत भी अजीब है. यहां किसी की मौत पर आंसू भी यह सोच कर खर्च किये जाते हैं कि जिसके लिए वे आंसू बहाये जा रहे हैं कि वह शख्स लोकप्रिय कितना था. यह सच्चाई है कि हंगल साहब ने 50 की उम्र में सिनेमा में कदम रखा और वे सुपरसितारा हस्ती नहीं रखते थे. लेकिन उन्होंने कई सुप्रसिद्ध कलाकारों के साथ काम किया है. वे वरिष्ठ कलाकार थे. लगभग 8 फिल्मों में वे जया भादुड़ी के पिता रहे. लेकिन बॉलीवुड के किसी वरिष्ठ कलाकारों ने उन्हें आखिरी नमन देने की जुररत नहीं समझी. दरअसल, इस ग्लैमर की दुनिया का असली चेहरा भी ऐसे ही मौके पर नजर आता है. हंगल साहब के बेटे ने बताया है कि उन्होंने कभी कोई मेडीक्लेम नहीं कराया था. यह दर्शाता है कि हंगल साहब ने कभी बजत के दृष्टिकोण से काम नहीं किया. उनके योगदान को भूलाया नहीं जा सकता.
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