हिंदी फिल्मों के सितारों के बारे में प्राय: लोगों के जेहन में यह बात रहती है कि वे कम पढ़े लिखे होते हैं. यह हकीकत भी है. हिंदी सिनेमा में वे कलाकार जिनका झुकाव शुरुआती दौर से फिल्मों में रहा है. उनके लिए किताबी शिक्षा मूलत: मायने नहीं रखती. दरअसल, हकीकत भी यही है कि शिक्षा का होना या ज्ञानी होना इस पर आधारित नहीं होता कि आपको किताबी ज्ञान कितना है. महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने जीवन में किससे और किस तरह शिक्षा ग्रहण करते हैं. इस लिहाज से वही गुरु भी अग्रणीय हैं, जो अपने छात्र को किताबी ज्ञान देने की बजाय वैचारिक बनाएं. इस लिहाज से हिंदी सिनेमा में वे सभी कलाकार जो किसी न किसी रूप में ज्ञान देते रहे हैं. वे गुरु हैं. उन्हें एक गुरु का दर्जा मिलना ही चाहिए.उत्पल दत्त कभी अभिनेता से पहले शिक्षक थे. वे कोलकाता के साउथ प्वाइंट स्कूल में अंगरेजी पढ़ाया करते थे. शायद यही वजह रही कि उत्पल दत्त अभिनय को भी बारीकी प्रदान कर पाये.अक्षय कुमार बॉलीवुड में आने से पहले मार्शल आर्ट सिखाया करते थे.नंदिता दास आज भी थियेटर के साथ साथ ऋषि वैली स्कूल में पढ़ाती हैं.चंद्रचुड़ सिंह देहरादून के दून स्कूल में संगीत के शिक्षक थे. पेंटल भी एफटीआइआइ के प्रमुख रह चुके हैं. अनुपम खेर आज भी एक्टिंग इंस्टीटयूट संचालित करते हैं. दीपिका दापुकोण उनके एक्टिंग इंस्टीटयूट की ही खोज हैं.किसी दौर में बलराज साहनी ने विश्व भारती यूनिवर्सिटी में हिंदी व अंगरेजी शिक्षक के रूप में काम किया था.टॉम ऑल्टर हरियाणा के संत थॉमस स्कूल में क्रिकेट कोच थे. शायद यह उनके शिक्षक होने के ही गुण हैं कि आज भी सेलिब्रिटी होने के बावजूद यह सभी बेहद सौम्य हैं. जमीन से जुड़े हुए हैं. चूंकि उन्होंने एक शिक्षक की भूमिका अदा की है. जाहिर है, उनके व्यवहार में एक शिक्षक के गुण होंगे ही.
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