मेरी टेढ़ी मेढ़ी कहानियां ,मेरे हंसते रोते ख्वाब
कुछ सुरीले, बेसुरे गीत मेरे.कुछ अच्छे बुरे किरदार
वो सब मेरे हैं.उन सब में मैं हूं.वो सब याद रखना
दूर न जाना. जब तक है जान.
इन पंक्तियों के साथ निर्देशक यश चोपड़ा ने अपने 53 साल की अपनी तपस्या,अपने फिल्मी करियर, फिल्मों के प्रति उनका जूनून सबकी व्याख्या करते हुए अपनी जिंदगी के पहले प्रेम फिल्मों के निर्देशन को अलविदा कह दिया. अपने 80 वें जन्मदिन पर रोमांटिक फिल्मों के सम्राट निर्देशक यश चोपड़ा ने खुद ही ऐलान किया कि जब तक हैं जान उनकी आखिरी निर्देशित फिल्म होगी. किसी कल्पनाशील व्यक्ति के लिए कितना कठिन लेकिन आसान होता है अपनी कल्पना से संन्यास लेना इसका स्पष्ट स्वरूप यशराज स्टूडियो में नजर आया. अपनी मां से 200 रुपये लेकर मुंबई में आकर अपने सपनों व कल्पना को आकार देनेवाले यश ने अपने ही सृजन यशराज स्टूडियो में जब इस बात की घोषणा की तो माहौल में सन्नाटा था. लेकिन यश जी के चेहरे पर संतुष्टि थी. संतुष्टि इस बात की कि उन्होंने अपनी मां से जो वादा किया था. वह पूरा किया. वे इंजीनियर बनने का अपने परिवार का ख्वाब नहीं पूरा कर पाये. लेकिन नयी प्रतिभाओं को मौके देनेवाले बॉलीवुड के सर्वश्रेष्ठ टैलेंट हंटिंग मशीन जरूर बने. दरअसल, हकीकत यही है कि एक कल्पनाशील व्यक्ति भले ही खुद को विराम दे दे. लेकिन उनकी कल्पनाएं कभी विराम नहीं करती. निश्चित तौर पर यश भी अपने बेटे आदित्य व यशराज बैनर तले बननेवाली फिल्मों में अपनी सृजनशीलता से यश फैलाते रहेंगे. यश अब 80 साल की उम्र में अपनी पत् नी पामेला की सारी शिकायतों को दूर करना चाहते हैं. दरअसल, यह उनकी एक और नयी शुरुआत ही है. क्योंकि जब तक हैं जान जिंदा रहेंगी दर्शकों के दिलों में उनकी मोहब्बते.
मेरी टेढ़ी मेढ़ी कहानियां ,मेरे हंसते रोते ख्वाब
ReplyDeleteकुछ सुरीले, बेसुरे गीत मेरे.कुछ अच्छे बुरे किरदार
वो सब मेरे हैं.उन सब में मैं हूं.वो सब याद रखना
दूर न जाना. जब तक है जान.
बेबाक स्वीकारोक्ति