20120903

निश्चछल बेटे का समर्पण



हाल ही में एके हंगल साहब के बेटे विजय हंगल से मुलाकात हुई. मैं विशेषत: विजय हंगल से हंगल साहब के जीवन में नाटक के प्रभाव पर बातचीत करने गयी थी. लेकिन उनसे मिल कर मैंने महसूस किया कि विजय हंगल अपने पिता अवतार कृष्ण हंगल के बेटे कम उनके दोस्त की भूमिंका अधिक निभायी. हंगल साहब के अंतिम दिनों में विजय हंगल साहब ने निश्चछल भाव से सेवा की. सभी जानते हैं कि हंगल साहब ने कभी अपनी संपत्ति नहीं संजोयी. ऐसे दौर में जहां हर बेटा अपने पिता की संपत्ति की लालसा रखता है और इसी विचार से सेवा करता है. विजय हंगल ने  कभी कोई लालसा नहीं रखी. इस लिहाज से यह एक अदभुत बेटे का रूप हैं. उस वक्त उनके हमसफर भी बने. उन्होंने 14 अगस्त हंगल साहब को अस्पताल में भर्ती करने के ठीक दो दिनों पहले हंगल साहब से हुई उनकी बातचीत का वाक्या सुनाया. उन्होंने बताया कि एके हंगल ने जीवन पर लोगों का हौंसला बढ़ाया.लोगों ने उनसे सीखा. लोगों को उन्होंने हिम्मत दी. लेकिन आज वे खुद नर्वस थे. हंगल साहब ने विजय हंगल से कहा कि क्या मैं वापस आऊंगा या नहीं. उस वक्त विजय हंगल ने उन्हें हौंसला दिया. लेकिन बाद में उन्होंने अपने पिता के लिए एक कविता अंगरेजी में कविता लिखी..जिसका भावार्थ यही है कि आप कई लोगों के आदर्श हैं. उनके सपने देखें.उनके लिए जीने की कोशिश करें. ऐसा सोचें कि आप जहां यात्र खत्म कर रहे हैं.वहां उनकी शुरुआत है. मरना जीना हमारी हाथों में नहीं. लेकिन फिर भी आप चमकने की कोशिश करें. विजय हंगल यह कविता हंगल साहब को सुना नहीं पाये.  दोनों ने ही अपनी संगिनी को खोया. और यही वजह रही कि दोनों एक दूसरे के साथी बने रहे. विजय हंगल ने भी एक बेटे के रूप में सारी जिम्मेदारी पूरी की.  बाप-बेटे की यह जोड़ी एक अनोखी मिसाल है.

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