मशहूर गायक मन्ना डे बांग्ला अखबार में एक ब्लॉग लिख रहे हैं. यह पहली बार है जब मन्ना डे किसी अखबार के लिए ब्लॉग लिख रहे हैं. बांग्ला के पाठकों का कहना है कि उन्होंने अपने ब्लॉग के माध्यम से अपने जीवन के कई अनछुए पहलुओं के साथ साथ कई अन्य पहलुओं से भी अवगत कराया है और इसे बेहद पसंद किया जा रहा है. किसी दौर में माधुरी नामक पत्रिका में हिंदी सिनेमा से जुड़ी तमाम हस्तियां फस्र्ट पर्सन में अपने अनुभव लिखा करती थी. इस पत्रिका की यूएसपी ही यही होती थी कि इस पत्रिका में कलाकारों द्वारा खुद से कॉलम लिखे जाते थे. नूरजहां से लेकर राजकपूर लगभग सभी मशहूर हस्तियों ने अपने जीवन के पहलुओं से अवगत कराया है. इसी पत्रिका में धर्मेद्र ने अपने संघर्ष के जीवन की व्याख्या की थी कि किस तरह शुरुआती दौर में निर्माता कहते थे कि फिल्म बनेगी. लेकिन बन नहीं पाती थी और किस तरह उन्हें संघर्ष करना पड़ा. संजीव कुमार ने अपने जीवन के उन पलों का बखान किया है जब वे बेहद अकेले हो गये थे. हेमा मालिनी ने बताया है कि कैसे उनके नानाजी की इच्छा थी कि वे अभिनेत्री बने. राजकपूर साहब ने अपने निर्देशन से जुड़ी अहम बातों को दर्ज किया है. वर्तमान में यह पत्रिका केवल एफटीआइआइ के संग्राहलय में हैं. दरअसल, ये सारे अनुभव हिंदी सिनेमा के महत्वपूर्ण दस्तावेजों में एक हैं. चूंकि सारे कलाकार जब खुद अपनी बात रखते हैं और बीच में कोई दूसरा व्यक्ति सूत्रधार नहीं होता तो निश्चित तौर पर कलाकार की ईमानदार सोच व उनके अनुभव ज्यों के त्यों लोगों तक पहुंचते हैं और वे लोगों के दिलों को ज्यादा छूते हैं. चूंकि उनमें कोई बनावटी पन नहीं होचायही वजह है कि कलाकारों की आत्मकथा आज भी भारत में बेहद लोकप्रिय हैं. अमिताभ, मन्ना डे के अलावा जो भी लीजेंड मौजूद हैं. उन्हें भी अपने अनुभव सांझा करने चाहिए.
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20120903
अपनी जुबां में बयां होती दास्तां
मशहूर गायक मन्ना डे बांग्ला अखबार में एक ब्लॉग लिख रहे हैं. यह पहली बार है जब मन्ना डे किसी अखबार के लिए ब्लॉग लिख रहे हैं. बांग्ला के पाठकों का कहना है कि उन्होंने अपने ब्लॉग के माध्यम से अपने जीवन के कई अनछुए पहलुओं के साथ साथ कई अन्य पहलुओं से भी अवगत कराया है और इसे बेहद पसंद किया जा रहा है. किसी दौर में माधुरी नामक पत्रिका में हिंदी सिनेमा से जुड़ी तमाम हस्तियां फस्र्ट पर्सन में अपने अनुभव लिखा करती थी. इस पत्रिका की यूएसपी ही यही होती थी कि इस पत्रिका में कलाकारों द्वारा खुद से कॉलम लिखे जाते थे. नूरजहां से लेकर राजकपूर लगभग सभी मशहूर हस्तियों ने अपने जीवन के पहलुओं से अवगत कराया है. इसी पत्रिका में धर्मेद्र ने अपने संघर्ष के जीवन की व्याख्या की थी कि किस तरह शुरुआती दौर में निर्माता कहते थे कि फिल्म बनेगी. लेकिन बन नहीं पाती थी और किस तरह उन्हें संघर्ष करना पड़ा. संजीव कुमार ने अपने जीवन के उन पलों का बखान किया है जब वे बेहद अकेले हो गये थे. हेमा मालिनी ने बताया है कि कैसे उनके नानाजी की इच्छा थी कि वे अभिनेत्री बने. राजकपूर साहब ने अपने निर्देशन से जुड़ी अहम बातों को दर्ज किया है. वर्तमान में यह पत्रिका केवल एफटीआइआइ के संग्राहलय में हैं. दरअसल, ये सारे अनुभव हिंदी सिनेमा के महत्वपूर्ण दस्तावेजों में एक हैं. चूंकि सारे कलाकार जब खुद अपनी बात रखते हैं और बीच में कोई दूसरा व्यक्ति सूत्रधार नहीं होता तो निश्चित तौर पर कलाकार की ईमानदार सोच व उनके अनुभव ज्यों के त्यों लोगों तक पहुंचते हैं और वे लोगों के दिलों को ज्यादा छूते हैं. चूंकि उनमें कोई बनावटी पन नहीं होचायही वजह है कि कलाकारों की आत्मकथा आज भी भारत में बेहद लोकप्रिय हैं. अमिताभ, मन्ना डे के अलावा जो भी लीजेंड मौजूद हैं. उन्हें भी अपने अनुभव सांझा करने चाहिए.
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