टेढ़ा लगता है...सबकुछ यूं...सारा का सारा क्यों क्यों...आइ एम लर्निंग इंग्लिश विंग्लिश...स्वानंद किरकिरे की ये पंक्तियां न सिर्फ फिल्म इंग्लिश विग्ंिलश फिल्म के थीम को दर्शाती है. बल्कि यह भी साबित करती है कि अंगरेजी भाषा सीखना किस तरह एक टेढ़ी खीर है...खासकर किसी भारतीय घरेलू महिला के लिए या फिर हर उस व्यक्ति के लिए जिनके लिए हिंदी सरल भाषा है. इंग्लिश विग्ंिलश से अभिनेत्री श्रीदेवी 15 सालों के बाद हिंदी फिल्मों में एक ऐसी ही घरेलू महिला के चरित्र से वापसी कर रही हैं, जिसका मजाक उसके परिवार वाले भी सिर्फ इसलिए उड़ाते हैं, क्योंकि उसे अंगरेजी नहीं आती. यह हकीकत है कि हिंदी फिल्मों में अंगरेजीयत हावी है. फिर चाहे वह गाने के संदर्भ में हो या फिल्मों के शीर्षक के संदर्भ में. इंग्लिश विंग्लिश फिल्म के बहाने इंग्लिश-विग्ंिलश के रंग में डूबे हिंदी फिल्मों की एटूजेड अध्याय पढ़ने की कोशिश कर रही हैं उर्मिला कोरी और अनुप्रिया अनंत
ए (A) for : अंगरेजीदां किरदार( हिंदी फिल्मों में अंगरेजी किरदार )
हिंदी फिल्मों में प्राय: कई किरदारों के नाम अंगरेजी में रखे जाते रहे हैं. विशेष कर खलनायकों के नाम. मि.इंडिया के मोगेंबो, कालीचरण का लायन, मोना डार्लिंग, डॉन. इनके अलावा कई नायक-नायिकाओं के नाम भी अंगरेजी भाषा से प्रभावित रहे. जिनमें जूली, बॉबी, अमर अकबर एंथॉनी के एंथॉनी, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है का अल्बर्ट पिंटो. फिल्म प्रहार में माधुरी के किरदार का नाम शिरली पिंटो रहता है.
बी(B) for: बॉलीवुड ( हिंदी फिल्म इंडस्ट्री यूं बना बॉलीवुड)
उस वक्त बॉलीवुड को लोग हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री के नाम से ही जानते थे. गीतकार अमित खन्ना बताते हैं कि उस वक्त अपनी कई विदेश यात्राओं के दौरान उन्होंने यह महसूस किया कि लोग हिंदी सिनेमा का संबोधन को सही तरीके से समझ नहीं पाते. वर्ष 1970 में अमित व एक पत्रकार विभिनंडा कोलाको ने तय किया कि वह हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री को कुछ नाम देंगे और फिर पश्चिम बंगाल की फिल्म इंडस्ट्री के नाम टॉलीवुड के नाम पर बॉलीवुड का नाम रखा गया. बॉलीवुड शब्द बॉम्बे उस वक्त मुंबई का नाम था, ब शब्द बॉम्बे से आया और फिर बॉलीवुड शब्द की शुरुआत हुई.
सी(C):-सिनेमेटोग्राफर( हिंदी फिल्मों में विदेशी सिनेमेटोग्राफर)
दादा साहेब फाल्के ने विदेश से ही फिल्म मेकिंग की ट्रेनिंग ली थी. हालांकि अपनी पहली फिल्म में उन्होंने तेलांग से करवाया. लेकिन भारत की पहली बोलती फिल्म में आर्देशर ईरानी ने विदेशी सिनेमेटोग्राफर को फिल्म आलम आरा के लिए बुलाया.विलफोर्ड डेमिंग पहले विदेशी सिनेमेटोग्राफर बने, जिन्होंने हिंदी फिल्म में काम किया.इसके बाद यह सिलसिला जारी रहा है. फिल्म रा.वन व जिंदगी न मिलेगी दोबारा तक कई विदेशी कैमरामैन ने हिंदी फिल्म में काम किया है. जिंदगी न मिलेगी दोबारा के सिनेमेटोग्राफर कार्ल्स कतलान भी विदेशी मूल के हैं.
डी(D): डायलॉग( हिंदी फिल्मों में अंगरेजी डायलॉग)
हिंदी फिल्मों में अंगरेजी भाषा में बोले गये संवाद भी बेहद लोकप्रिय रहे फिल्म नमक हलाल के एक दृश्य में जब अमिताभ के किरदार रंजीत के आॅफिस में नौकरी के लिए जाते हैं तो, वहां रंजीत से पूछा गया था कि आपको अंगरेजी आती है? इस पर अमिताभ ने बहुत ही मजाकिया अंदाज में अपनी अंगरेजी की जानकारी को बयां किया था कि आइ कैन टॉक इंग्लिश. आइ कैन वाक इंग्लिश. बिकाउज इंग्लिश इज वेरी फनी लैंग्वेज. फिल्म बॉडीगार्ड में सलमान खान का यह संवाद बेहद लोकप्रिय रहा. मैं तीन चीजें अंडरइस्टिमेट नहीं करता. आइ, मी, माइसेल्फ...
इ(E) -इंग्लिश नोबेल( जिन अंगरेजी नोबेल पर बनी हिंदी फिल्में)
अंगरेजी नोबेल से प्रेरित होकर शुरुआती दौर से ही हिंदी फिल्में बन रही हैं. निर्देशक विशाल भारद्वाज शेख्सपीयर व रसकिन बांड के उपन्यास पर कई फिल्में बनाते रहे हैं. ओथेलो पर ओमकारा, 7 खून माफसूजाना सेवन हसबैंड पर आधारित थी.द ब्लू अंब्रैला ब्लू अंब्रैला पर ही आधारित थी.राजकपूर की चोरी चोरी नाइट बस नामक उपन्यास पर आधारित थी.विजय आनंद की फिल्म तेरे मेरे सपने -द सिटिडेल पर,माया मेमसाब-मडाब बोवारी पर , दिल दिया दर्द लिया व ऊंची दोनों ही फिल्में वूदरिंग हाइट्स नोबेल पर आधारित थी.क्योंकि वन फेलो ओवर द कूकरी नेक्स्ट नोबेल पर आधारित थी.
फ(F): -फब्तियां ( अंगेरजी अपशब्दों का हिंदी फिल्मों में इस्तेमाल)
हिंदी फिल्मों में अब गाली, फब्तियों व अपशब्दों का प्रयोग हमारे कानों को दर्द नहीं देता. हर दूसकी फिल्म में ंिहंदी या अंगरेजी भाषा में अपशब्द होते ही हैं.बकौल अनुराग कश्यप अगर फिल्म में गालियां हिंदी में हो तो सेंसर बोर्ड को आपत्ति हो ही जाती है. उसमे कई कांट झाट करने की मांग हो जाती है और कुछ नहीं तो बिप की आवाज डाल देते हैं लेकिन अंगरेजी भाषा में हम अगर बड़ी से बड़ी गाली दे रहे हैं तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है. हम उसे सहजता से ले लेते हैं. शोले में भी खलनायक के लिए गालियों का प्रयोग किया गया .गरम मसाला में पहली बार अंगरेजी गाली का इस्तेमाल किया गया. इसके बाद डेल्ही-बेली, गैंग्स आॅफ वासेपुर, में धड़ेल्ले से इस्तेमाल हुआ.
(G): ग्रीन रूम( हिंदी फिल्मों में ग्रीन रूम का कंसेप्ट)
ग्रीन रूम वह जगह है, जहां अभिनेता व अभिनेत्री शॉट से पहले मेकअप करते हैं. ग्रीन रूम का कांसेप्ट भी विदेश से ही आया.अमेरिका में उस स्थान को जहां परफॉमर या कलाकार आराम करते हैं या अपनी बारी का इंतजार करते हैं. उसे ग्रीन रूम कहा जाता था. गौरतलब है कि पहले अमेरिका व ब्रिटिश फिल्मों में ऐसे स्थान हरे रंग से रंगे जाते थे. दीवारों के रंग हरे होते थे. ताकि वह कलाकारों को सुकून दे सके. बाद में भारत में भी शूटिंग के दौरान कलाकारों के आराम करने के स्थान को ग्रीन रूम कहा जाने लगा.
एच(H) : हॉलीवुड तकनीक भारत में
हॉलीवुड में तकनीकी दक्षता हासिल करने वाले पहले भारतीय सिनेमा के सदस्य रहे सुचेत सिंह जिन्होंने अमेरिका से चार्लीचैप्लीन के साथ काम करते हुए वहां की तकनीक को सीखा और फिर उसका इस्तेमाल भारतीय फिल्मों में किया. बाद के दौर में ग्राफिक्स, 3 डी फिल्मों का आगमन भी हॉलीवुड से ही हुआ.
आइ(I)- ( एनआरआइ आॅडियंस)
हिंदी फिल्मों की सफलता में एनआरआइ आॅडियंस की भी खास भूमिका है. हालांकि राज कपूर, नरगिस विदेशों में लोकप्रिय थे. लेकिन शाहरुख खान ने विशेष कर एनआरआइ आॅडियंस की संख्या बढ़ायी.
जे(J) - जज्बात( फिल्मों में कुछ यूं हुआ अंगरेजी में प्यार का इजहार)
हिंदी फिल्मों में यूं तो प्यार के इजहार की भाषा उर्दू और हिंदी रही है. लेकिन कई गानों में अंगरेजी शब्दों में भी प्यार व अपने जज्बात का इजहार किया गया है. विशेष कर आइ लव यू का इस्तेमाल सबसे अधिक हुआ है.जैसे अंगरेजी में कहते हैं कि आइलव यू...लव लव लव तुमसे लव हुआ..आइ एम इन लव, लो आज मैं कहती हूं आइलव यू...अंगरेजी के लव शब्द का इस्तेमाल सबसे अधिक हुआ है. बॉडीगार्ड का गाना आइ लव यू जैसे कई गीत हैं. न सिर्फ गानों में प्रेमपत्र में प्राय: मेैं तुमसे प्यार करता हूं कि जगह आइ लव यू शब्द का ही इस्तेमाल किया गया है.
के(K)-कॉपी किया रे( हिंदी फिल्मों में अंगरेजी फिल्मों के विषयों की चोरी)
हिंदी फिल्मों में शुरुआती दौर से ही कई निर्देशकों ने अंगरेजी फिल्मों के विषयों, किरदारों व संगीत की चोरी की है.फिल्म दिल अपना प्रीत पराई का गीत अजीब दास्तां है ये जिम रीव्स के गीत माइ लिप्स आर शिल्ड की नक्ल है. फिल्म शोले मैगनिफिशियंट सेवेन, पीपली लाइव इनवाइट टू सूसाइड,सत्ते पे सत्ता-सेवन ब्राइड फॉर सेवन ब्रदर्स,एक् शन रिप्ले बैक टू फ्यूचर,कांटे-रिजर्वर डॉग़,अग्निपथ-सेक्यरफेस, सरकार गॉड फादर समेत और भी कई फिल्में हैं जो हॉलीवुड फिल्मों की कॉपी हंैं.
एल(L)- लोकेशन (हिंदी फिल्मों में विदेशी लोकेशन )
हिंदी फिल्मों में पेरिस, न्यूयॉर्क व विशेष कर स्वीजरलैंड में खूब शूटिंग हुई है. ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म परदेसी पहली फिल्म थी, जिसकी शूटिंग भारत से बाहर रशिया में की गयी थी.संगम पहली हिंदी फिल्म थी, जिसकी शूटिंग स्वीजरलैंड में हुई. इसके अलावा एन इवनिंग इन पेरिस, लव इन टोकियो, चाइनागेट, कभी खुशी कभी गम, कभी अलविदा न कहना, दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे व यश चोपड़ा की कई फिल्में स्वीजरलैंड में शूट होती रही है. स्वीजरलैंड में यश चोपड़ा के नाम पर वहां एक लेन बनाई गयी है.
एम(M) -म्यूजिक ( हिंदी फिल्मों में अंगरेजी संगीत का प्रभाव)
बकौल हिंदी फिल्म संगीत के जानकर विशाल सिंह संभवत: किशोर कुमार और नूतन पर फिल्माया गया सी ए टी कैट माने बिल्ली आर ए टी रैट माने चूहा पहला हिंदी गाना था, जिसमें अंगरेजी के शब्द इस्तेमाल हुए थे. लेकिन यह ट्रेंड दरअसल फिल्म प्यार का सपना से आया. इस फिल्म के कई गीत हिंदी और इंग्लिश भाषा में मिक्स थे.७० के दशक में फिल्म जुली और प्लेब्वॉय दो ऐसी चुनिंदा फिल्में रहीं, जिनकी एक दो गीत पूरी तरह से अंगरेजी भाषा में रहे. इसके बाद यह सिलसिला राजेश रोशन, आर डी बर्मन और बप्पी लाहिरी जैसे संगीतकारों जारी रखा. ९० के मध्य तक अंगरेजी सिर्फ उन गानों तक ही सीमित थी, जहां फिल्म का किरदार कैथोलिक हो लेकिन २००० आते आते यह हिंदी गीतों की एक पहचान सा बन गया. आज भी ये सिलसिला जारी है.
एन(N): नाच-गाना ( हिंदी फिल्मों में अंगरेजी डांस का प्रभाव)
एक था टाइगर में कट्रीना बैले डांस करती नजर आती हैं तो रितिक फिल्म जिंदगी मिलेगी न दोबारा में जैज और हिप्प हॉप जैसे विदेशी डांस फार्म को अपनाते दिखे हैं. विदेशी डांस का हिंदी फिल्मों में शुरुआत का श्रेय हमेशा से ही हेलन को दिया जाता है. इसके बाद फिल्मों में डिस्को डांस का कल्चर शुरू करने का श्रेय मिथुन को जाता है.लेकिन मौजूदा समय में बॉलरूम, बैलेट, हिप्प हॉप, बैली, टैप और जैज जैसे विदेशी डांस हमारी देशी फिल्म का अहम हिस्सा बन गये हैं. अगर ऐसा न होता तो अपनी आगामी रिलीज को तैयार फिल्म अय्या में मराठी मुलगी का किरदार निभा रही रानी लावणी के बजाय बैले न करती होती थी
ओ(O) -ओह, साला साहब बन गया
हिंदी फिल्मों में कई बार किरदारों को जबरन अंगरेजी सीख कर अंगरेजों की तरह अपनी पोषाक व चाल ढाल अपनाते देखा गया है. हालांकि वास्तविक जिंदगी में राज कपूर चार्ली चैप्लीन से प्रभावित थे. दिलीप कुमार की फिल्म बैराग से लेकर हाल की फिल्म मौसम तक साला मैं तो साहब बन गया से बन ठन के टशन में रहना तक कई फिल्म में अंगरेजी सूटबूट में साहब बनते दिखाया गया है. अनिल कपूर की फिल्म किशन कन्हैया भी उनमें से एक है.
पी(P) -पाठशाला ( हिंदी फिल्मों में अंगरेजी पाठशाला)
हमारी फिल्में और उससे जुड़े किरदार भले ही हिंदी भाषी हो लेकिन जब भी फिल्मों में बात पढ़ने पढ़ाने की आती है तो हमारे नायक या नायिका अंगरेजी पाठशाला ही चलाते नजर आये हैं. वे अ पढ़ाने की बजाय ए बी सी डी ही दोहराते दिखे. फिर चाहे वह ६० के मध्य में बनी फिल्म असली नकली में साधना का देवआनंद का अंगरेजी पढ़ाना हो या ७० के दशक की राजा जानी में हेमा मालिनी बिगड़ते हुए अंदाज में नायक धर्मेंद्र को एबीसीड़ी छोड़ो नैनो से नैना जोड़ो कहने को बोलती है, अंगरेजी की यही पाठशाला ९० में ऋषि कपूर फिल्म बोल राधा बोल तो सलमान खान फिल्म कुर्बान में चलाते नजर आये. फिल्म याराना में नीतू सिंह अमिताभ को अंगरेजी तौर-तरीके सिखाती नजर आती हैं. अमिताभ ने फिल्म चुपके चुपके में अंगरेजी के प्रोफेसर की भूमिका निभाई है. शाहिद कपूर ने फिल्म पाठशाला में इंग्लिश टीचर की भूमिका निभाई है.
क्यू(Q) : क्योशन (अंगरेजी शब्दों पर हिंदी सिनेमा में सवालों के बौछार)
फिल्म असली नकली में देव आनंद ने अपनी टीचर का किरदार निभा रही साधना से सबसे पहले यह सवाल उठाया था कि अंगरेजी में अगर टीओ टू होता है तो जीओ गू क्यों नहीं होता. गो क्यों हो जाता है. इस पर साधना भी हक्की बक्की रह गयी थी. वह कोई जवाब नहीं दे पायी. कुछ सालों के बाद वही प्रश्न दोबारा फिल्म चुपके चुपके में धर्मेंद्र के किरदार ने भी दोहराया. और बल्कि उन्होंने तो न सिर्फ यह सवाल दोहराया, साफतौर पर कह दिया कि अंगरेजी अवैज्ञानिक भाषा है. फिल्म चुपके चुपके में धर्मेंद्र शर्मिला टैगोर के जीजाजी का किरदार निभा रहे ओमप्रकाश से पहली बार मिलते हैं तो अमोप्रकाश धर्मेंद्र से पहला सवाल यही पूछते हैं कि क्या वह अंगरेजी जानते हैं. इस पर धर्मेंद्र का जवाब होता है.अंगरेजी हमें पसंद नहीं. बहुत ही अवैज्ञानिक भाषा है...टीओ टू...तो जीओ गो क्यों गू क्यों नहीं. अब कई वर्षों के बाद श्रीदेवी फिर से कुछ ऐसा ही प्रश्न फिल्म इंग्लिश-विंग्लिश में उठा रही हैं. कि अगर यूनाइटेड नेशन द यूनाइटेड नेशन है तो फिर इंडिया सिर्फ इंडिया क्यों द इंडिया क्यों नहीं.
आर(R) :रीमेक( अंगरेजी फिल्मों का हिंदी रीमेक)
यंू तो हिंदी फिल्मों ने कई अंगरेजी फिल्मों के रीमेक बनाये हैं.बिना उन्हें राइट्स दिये हुए लेकिन अब्बास मस्तान ने पहली बार हॉलीवुड फिल्म द इटालियन जॉब का आॅफिशियल रीमेक राइट्स खरीदा. रितिक रोशन ने हाल ही में फिल्म नाइट एंड डे के आॅफिशियल राइट्स खरीदे हैं.संजय गुप्ता भी एक अंगरेजी फिल्म के राइट्स खरीद रहे हैं.
एस(S): स्क्रिप्ट( हिंदी फिल्मों में अंगरेजी स्क्रिप्ट)
मौजूदा दौर में 90 प्रतिशत स्क्रिप्ट अंगरेजी में ही लिखी जाती है. यही नहीं फिल्म के संवाद भी अंग्रेजी में ही लिखे जाते हैं. दलील होती है कि हिंदी भाषा में ल्खिित स्क्रिप्ट और संवाद हमारे मौजूदा दौर के फिल्मों के कलाकर पढ़ नहीं पाते हैं. यह सही भी है हिंदी फिल्मों के सुपरस्टार रितिक रोशन को हिंदी भाषा में लिखी चंद लाइनों को भी पढ़ने में दिक्कत होती है. अंग्रेजी में लिखित स्क्रिप्ट किसी फिल्म से जुड़ने के लिए उनकी पहली मांग होती है. अमिताभ बच्चन अपवाद हैं. वे आज भी हिंदी भाषा में लिखी स्क्रिप्ट और संवाद को ही प्रमुखता देते हैं. इसके अलावा हिंदी भाषी बेल्ट से आये निर्माता निर्देशक और अभिनेताओं को भी हिंदी भाषा में लिखित स्क्रिप्ट या संवाद से कोई परेशानी नहीं है.
टी(T) - टाइटिल ( फिल्मों के शीर्षक अंगरेजी में)
अगर सबटाइटिल्स की बात करें तो संभवत: मदर इंडिया में पहली बार इंग्लिश में सबटाइटिल किये गये थे. चूंकि मदर इंडिया पहली भारतीय फिल्म थी, जो आॅस्कर में पहुंची थी.हिंदी कहानियों को बयां करने वाली फिल्मों के शीर्षक के मामले में भी बॉलीवुड जमकर इंग्लिश विंग्लिश का अनुसरण करता आया है. सन १९३३ मिस, १९३५ में मिस्टर मिसेज बांबे जैसे अंगरेजी शीर्षक दर्ज जरूर हुए थे लेकिन अंगरेजी टाइटल पर औपचारिक तौर पर कुंदन लाल की फिल्म द प्रेसीडेंट थी जिसका बाद का हिस्सा मदर इंडिया, ज्वेलथीफ, गाइड से लेकर मौजूदा समय साजिद खान की हाउसफुल टू रही है. इंडस्ट्री से जुड़े जानकारों की मानें तो हर साल ३० से ३५ प्रतिशत फिल्मों के शीर्षक अंगरेजी टाइटल में ही होते हैं.श्रीदेवी की फिल्म इंग्लिश-विंग्लिश इनमें से एक है.
यू( U) :यूएफओ तकनीक
यूएफओ कंपनी ने कुछ सालों पहले एक ऐसी तकनीक की शुुरुआत की जिससे सिनेमा डिजिटल रूप से थियेटर में पहुंचने लगा. इस तकनीक का इस्तेमाल सिनेमा में सबसे पहले हॉलीवुड में ही हुआ. अब हिंदी फिल्मों में भी इस तकनीक का इस्तेमाल होने लगा है. इस तकनीक के माध्यम से सिनेमाघरों में अब डिजिटल रूप में फिल्में पहुंचने लगी.रील की जरूरत नहीं पड़ती.
वी(V)-विदेशी बाला ( हिंदी फिल्मों में विदेशी बाला)
हिंदी सिनेमा विदेशी बालाओं का भी हमेशा से मुरीद रहा है. यही वजह है कि फिरंगी अभिनेत्रियां भले ही हिंदी न जानती हों.लेकिन हमारी फिल्मों की कहानी का अहम हिस्सा रही है. इसकी शुरुआत राजकपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर में रशियन सेनिया रायबिंका से हुई थी. अपने बड़े भाई की इस शुरुआत को आगे शशि कपूर ने अपने द्वारा निर्मित ३६ चौरंगी लेन में जेनिफर केंडल को कास्ट कर बढ़ाया. फिर धर्मेंद्र की शालिमार में सायलविया. जिसके बाद कई फिरंगी अभिनेत्रियां समय समय पर परदे पर अपना जादू बिखरेती रही लेकिन पिछले ५ सालों को छोड़ देते तो फिरंगी नायिका अगर कहानी की मांग होती थी तो ही वह फिल्म से जुड़ती थी लेकिन मौजूदा दौर में ऐसा नहीं है. फिल्म लव आज कल में ब्राजिलियन बाला गिझेल को पंजाबी कुड़ी के तौर पर दिखाया गया था. एमी जैक्सन, जैक्लीन फर्नांडीस, लिजा बेल, नरगिस फाकरी, सनी लियोन ये कुछ ऐसे विदेशी चेहरे हैं जिनकी फिल्मों में उन्हें आम भारतीय लड़कियों की तरह ही दिखाया गया था. ब्रिटिश मूल की कट्रीना कैफ की सफलता इस बात का गवाह है कि विदेशी होते हुए वे अब भारतीय फिल्मों का अहम चेहरा बन गयी हैं.
डब्ल्यू(W) : वार्डरॉब कॉस्टयूम( हिंदी फिल्मों में विदेशी कॉस्टयूम का प्रभाव)
हिंदी फिल्मों में विदेशी कॉस्टयूम का प्रभाव हमेशा से प्रचलित रहा है. बिकनी, गाउन विदेशी फिल्मों की ही देन है. वरना पहले अभिनेत्रियां साड़ी व सलवार कमीज में ही नजर आती थीं. लेकिन जब फिल्मों के विषय भी थोड़े मॉर्डन हुए तो विदेशी कॉस्टयूम का इस्तेमाल होने लगा.किसी दौर में ललिता पवार ने पहली बार बिकनी पहनकर सनसनी फैला दी थी. बाद में शर्मिला टैगोर ने बिकनी पहनी थी. हेलेन जैसी अभिनेत्रियों ने गाउन को प्रचलित किया.
एक्स(X)- एक्स फैक्टर ( हिंदी फिल्म में एक्स फैक्टर). फिल्म हिंदी लेकिन भाषा अंगरेजी)
हिंदी फिल्मों में वाकई कुछ ऐसी एक्स फैक्टरवाली भी अलग तरह की फिल्में रही हैं. किरदार हिंदी, कलाकार हिंदी और कहानी का प्लाट भी हिंदी लेकिन उसे कहने के लिए अंग्रेजी भाषा का सहारा लेना, यह ट्रेंड भी बॉलीवुड़ में धीरे धीरे ही सही अपने पैर पसारने में जुटा हुआ है. सन १९९४ देव बेनेगल की फिल्म इंग्लिश अगस्त ने इसकी शुरुआत की थी. जिसका प्रेसीडेंट इज कमिंग, लास्ट लेयर, द गर्ल इन यल्लो बूट और आमिर खान की प्रोडक्शन फिल्म डेल्ही बेली गवाह है. यह भी है कि ज्यादा से ज्यादा आॅडियंस तक कनेक्ट होने के लिए वे इन अंग्रेजी भाषी फिल्मों को हिंदी में डब ज्जरूर कर देते हैं. प्रेसीडेंट इज कमिंग के निर्देशक और देल्ही बेली के अभिनेता कुणाल रॉय कपूर का कहना है कि यह ट्रेंड आनेवाला समय में और भी बढ़ता जायेगा क्योंकि अब अंगरेजी सिर्फ एलिट क्लास की भाषा नहीं रह गयी आम मध्यमवर्गीय भी इस भाषा से ज्यादा से ज्यादा जुड़ चुका है. ग्लोबलाइजेशन ने सोच भी बदल दी है. अच्छी फिल्मों से दर्शकों को सरोकार है फिर चाहे वह अंग्रेजी में हो या हिंदी
ह्वाइ(Y):
जेड(Z) :जीरो साइज( हॉलीवुड से आया साइज जीरो का कांसेप्ट
साइज जीरो दरअसल, हॉलीवुड की अभिनेत्रियों की क्लोथिंग साइज थी. जिसमें किसी महिला का फिगर 30-22-32 के अनुपात में होना चाहिए. पहले भारत में 32-24-36 का कांसेप्ट था. लेकिन धीरे धीरे हॉलीवुड का प्रभाव यहां भी पड़ा. करीना कपूर पहली अभिनेत्री बनीं जिन्होंने साइज जीरो का प्रचलन बॉलीवुड में शुरू कर दिया.
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