20121015

Amitabh spl-1 (70 को पड़ाव क्यों मानूं)



  70 को पड़ाव क्यों मानूं.क्यों मुझे अब और काम नहीं करना चाहिए. मैं जब तक स्वस्थ हूं काम करता रहूंगा. हां, इस बात की खुशी जरूर है कि मुझे 70 सालों में अपने परिवार का और अपने फैन का साथ मिला है और मेरी 43 साल की मेहनत का यही धरोहर है. मन में बस एक मलाल है कि बाबूजी का साथ और मिला होता... अपने 70वें जन्मदिन पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन बस यही कामना करते हैं कि आगे भी उन्हें फैन से प्यार मिलता रहा रहे. 70वें जन्मदिन के खास मौके पर उन्होंने अपने जीवन के सफर के कुछ पहलुओं और लम्हों के बारे में खास बातचीत

अमित जी, सबसे पहले आपको आपके जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई
जी बहुत बहुत शुक्रिया.

आपने अपने जीवन के 70 बसंत देख लिये हैं. किस तरह की संतुष्टि है. जो कभी सोच रखा था. क्या अब लगता है कि हां, मेरा सपना पूरा हुआ.
ंहमारा तो सपना था. कि हम बाबूजी के साथ और वक्त गुजारें. लेकिन बाबूजी जल्दी साथ छोड़ कर चले गये. हां, लेकिन इस बात की खुशी है कि उनके आशीर्वाद से आज कम से कम हम अपने और अपने परिवार का ख्याल रख पा रहे हैं तो इस बात की संतुष्टि है. बाबूजी चाहते थे कि उनका बेटा कुशल परिवार का वाहक बनें. तो इतना कर पाया हूं कि उनकी कसौटी पर खरा उतरा.

लोगों का मानना है यहां तक कि अभिषेक का भी मानना है  कि आप वर्ककोलिक हैं. बहुत ज्यादा काम करते हैं. आपको नहीं लगता कि अब थोड़ा आराम करना चाहिए.
देखिए, एक बेटे की पिता के लिए चिंता होती है. अभिषेक की भी है. लेकिन मैं तो यही कोशिश करता हूं कि जब तक शरीर साथ दे काम करेंगे. वैसे 70 साल की उम्र होने पर खुद शरीर कई बार आपको रोकने टोकने लगती है. हो गया. अब और काम न हो. ऐसे में शरीर को भी समझाना पड़ता है. कि अभी थोड़ा और हो जायेगा. दूसरी बात है कि मैं काम के बिना नहीं रह पाऊंगा. काम करता रहता हूं तो खुद को तंदरुस्त महसूस करता हूं. बाकी आराम तो होता रहेगा.

आपके इंडस्ट्री में 43 साल दे दिये. हिंदी सिनेमा में आपका खास योगदान है. तो किन किन का शुक्रिया अदा करना चाहेंगे.
हां, मुझे खुशी है कि मैंने 43 साल इस इंडस्ट्री में गुजारे और इस इंडस्ट्री ने लोगों ने प्यार सम्मान गिया. सुखद रहा अनुभव. मैं इस पड़ाव पर आकर सबसे पहले ख्वाजा अहमद अब्बास का शुक्रिया अदा करना चाहंूगा. उन्होेंने मुझे पहला मौका दिया. पहला मौका जिंदगी में हमेशा अहम होता है. सो वह हमेशा मेरे पूज्नीय रहेंगे. ऋषिकेश दा के साथ मैंने सबसे ज्यादा फिल्में की और उन्होंने मुझसे हर तरह के किरदार निभायें. सो उनका भी शुक्रिया. सलीम जावेद साहब ने इतने खूबसूरत स्क्रिप्ट लिखे कि मुझे दीवार, जंजीर, शोले जैसी फिल्मों में काम करने का मौका मिला. यश चोपड़ा साहब का भी तहे दिल से शुक्रगुजार रहूंगा. मनमोहन देसाई, रमेश सिप्पी, मुकुल आनंद, प्रकाश मेहरा. सबका शुक्रगुजार रहूंगा. उस दौर में वाकई सारे निर्देशकों ने इतने सुंदर सुंदर फ्रेम बनायी मेरी. मुझे निखारा. मेरा अलग अलग रूप दर्शकों तक पहुंचाया. उन लोगों की वजह से ही पहचान मिली तो उनका शुक्रगुजार रहूंगा.हाल के दिनों की बात करें तो मुझे करन, आदित्य चोपड़ा, आर बाल्की और सुजोय घोष जैसे निर्देशकों ने बेहतरीन मौके दिये हैं. अच्छा लगता है इनके साथ काम करना.
अमित जी, आपको कभी अपना कोई खास जन्मदिन याद है. जब बाबूजी से खास तोहफा मिला हो.
देखिए, हमारा जन्मदिन भी आम बच्चों की तरह ही मनाया जाता था. हां, लेकिन अच्छा लगता था. मोहल्ले के दोस्त आते थे. बाबूजी के कुछ दोस्त आते हैं. हां, लेकिन यह जरूर है कि सबसे ज्यादा इंतजार तोहफे का ही करता था. बाबूजी तो हमेशा जब भी बाहर जाते थे तो हमारे लिए कोई न कोई टॉफी ले आते थे. उस जमाने में हम उसे लेमन चुस कहते थे. और खास तोहफे की जहां तक बात है. तो ऐसा कुछ याद नहीं है.

अमित जी, अगर वर्तमान की बात करें तो 70 साल की उम्र में पहुंच कर आप अपनी जिंदगी का सबसे अहम तोहफा किसे मानेंगे.
ईश्वर ने सबसे पहले अभिषेक और श्वेता के रूप में मुझे खास तोहफा दिया, इसके बाद श्वेता के बच्चे और अब अभिषेक और ऐश्वर्य की बेटी आराध्या मेरे जीवन के सबसे खास तोहफे हैं. मुझे लगता है कि अगर ये लोग भी खुश रहेंगे तो मुझे लगेगा कि मैंने अपनी जिंदगी में सबकुछ पा लिया है.

आज भी आप वक्त के इतने पाबंद कैसे हैं?
यह हमारी आदत बन चुकी है. अगर हमने कहीं खुद को अनुबंधित कर लिया है तो यह हमारा कर्तव्य है कि हमें वक्त पर पहुंचना ही चाहिए. आखिर एक निर्माता कितने पैसे लगाकर हमारे साथ काम करता है तो हमारा यह फर्ज है कि हम वक्त पर पहुंचे. मैं तो अभिषेक को भी डांटता हूं. जब वह कहीं देरी से पहुंचते हैं.

आपने उस दौर के भी कई निर्देशकों के साथ काम किया है. आज भी आप लगातार नये निर्देशकों के साथ काम कर रहे हैं. क्या क्या बदलाव नजर आते हैं?
कई बदलाव है. उस वक्त स्क्रिप्ट अलग तरीके से लिखी जाती थी. हाल ही में एक नये दौर के निर्देशक से बात कर रहा था. मैंने पूछा कि आज कल फिल्मों के संवाद फ्लावरी और गंभीर क्यों नहीं होते?तो मुझे उन्होंने बताया कि आज कल लोगों के पास इतना वक्त नहीं कि वह गौर करते हुए स्क्रिप्ट को पढ़े. सो, बोलचाल की भाषा को ही रखा जाता है. आज   सिनेमा ने रफ्तार पकड़ ली है. शॉट फटाफट निकल जाते हैं. हम फ्रेम को चंद सेकेंड के लिए होल्ड नहीं कर पाते. तेज रफ्तार वाली एडिटिंग होती है.दर्शकों का अटेशन स्टैंड नहीं होता. लेकिन ठीक है, हर दौर के साथ सिनेमा बदला है. आज युवा डिक्टेट करते हैं कि उन्हें किस तरह का सिनेमा देखना है. लेकिन फिर भी मुझे युवाओं के जोश और जुनून को देख कर अच्छा लगता है. आज लोग ज्यादा काम करना चाहते हैं. हर कोई लगा रहता है. मेहनत करता रहता है. मुझे ऐसी टीम को देख कर अच्छा लगता है.

आपने 180 फिल्मों से भी ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया. कभी ऐसा लगा कि यह किरदार नहीं करना चाहिए था. यह िफल्म चुनने में भूल हो गयी.
देखिए, जिस वक्त स्क्रिप्ट लिखी या चुनी जाती है. उस वक्त हमें स्क्रिप्ट अच्छी लगती होगी किरदार पसंद आया होगा. तभी हम हामी भरते हैं. फिल्म चलना न चलना बाद की बात है. मुझे ऐसा कभी मलाल नहीं रहा. चूंकि मैं एक बार निर्देशक के साथ हां बोल देता हूं तो फिर सब उन पर निर्भर करता है. कि उन्हें कैसे काम करवाना है.

आपको अब तक इतने नाम मिल चुके हैं. शहंशाह, बादशाह, बिग बी आपको खुद को क्या समझना पसंद है.खिताब तो सब आप लोग दे देते हैं. बाबूजी ने हमारा नाम अमिताभ बच्चन रखा है. तो वही कहलाना पसंद है.लोग आपको आदर्श मानते हैं? 
अरे नहीं नहीं. मैं नहीं मानता कि मैंने कुछ भी महान काम किया है और मैं किसी को कुछ सीखा पाऊंगा. हां, अगर मुझसे कोई सीख सके तो मैं बस यही कहना चाहूंगा कि जीवन में अनुशासन हो तो आप कोई भी काम आसानी से कर सकते हैं.
लेकिन आप लगातार काम कर रहे हैं. इतनी ऊर्जा कहां से मिलती है?आप दिन ब दिन और युवा नजर आते हैं.
हाहाहा, मेरे डॉक्टर से पूछिए कि मैं कितना जवान हुआ हूं. आंखें कमजोर हो गयी हैं. कई परेशानियां हैं शरीर में. और आप लोगों को लगता है मैं जवान हो गया हूं. ऐसा नहीं है. बुढ़ापे की सारी परेशानियां मुझे भी हैं. लेकिन मेकअप मैन दीपक सावंत का कमाल है कि वह मेकअप ही ऐसा करते हैं कि आपको हमारे चेहरे पर उम्र का पता नहीं चलता.( दीपक सावंत की तरफ ईशारा करते हुए) यही हैं हमारे चेहरे के रक्षक़. लेकिन हां, अपने काम में मैं जोश रखना चाहता हूं और वह जोश मुझे मेरे परिवार और बाबूजी की रचनाओं से मिलती है.

आप सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बेहद एक्टिव रहते हैं.
हां.क्योंकि मेरी जिंदगी में मेरो दो ही दोस्त हैं. मेरा परिवार और मेरे फैन. इस माध्यम से मैं सीधे तौर पर दर्शकों से संपर्क बना पाता हूं. यहां आने से हुआ यह है कि आप फिल्मी बिरादरी से बाहर की दुनिया को भी देख समझ पाते हैं.कई बार हमारे लिए आम चीजें जानने का मौका नहीं मिल पाता. तो सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम लोगों से सीधा संपर्क बनता है. लोगों का जानने समझने का मौका मिलता है.

अब तक का आपना अपना सबसे पसंदीदा किरदार?
यह तो आप ऐसा सवाल पूछ रहे हैं कि अभिषेक श्वेता में किसे ज्यादा प्यार करता हूं. सारे किरदार खास रहे हैं. अहम रहे हैं.
आपके रोल मॉडल 
हमेशा माता पिता रहे हैं. खासकर बाबूजी. और एक्टिंग में वहीदा रहमान दिलीप साहब का फैन रहूंगा.

70 साल की उम्र में भी आप सबसे अधिक व्यस्त अभिनेता हैं?
हां, ( हंसते हुए) सुबह जल्दी उठने की आदत है न. तो इतना समय रहता है दिन का. तो सोचता हूं काम में व्यस्त रहूं.
आनेवाले समय से उम्मीदें
बस दर्शकों का प्यार यूं ही मिलता रहे. काम मिलता रहे. और जब तक कर सकूंगा. दर्शकों का मनोरंजन करता रहूंगा. और बहुत ज्यादा कुछ योजना सोच कर नहीं चला हूं.


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