20121006

टेढ़ी मेढ़ी लेकिन दिलचस्प ह इंगलिश विंगलिश



‘टेढ़ा लगता है.. सबकुछ यूं.. सारा का सारा क्यों क्यों.. आइ एम लर्निग इंगलिश विंगलिश..’ स्वानंद किरकिरे की ये पंक्तियां न सिर्फ ‘इंगलिश विंगलिश’ फिल्म की थीम को दरसाती हैं, बल्कि यह भी साबित करती है कि अंगरेजी भाषा सीखना किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं. खासकर किसी भारतीय घरेलू महिला के लिए या फिर हर उस व्यक्ति के लिए जिनके लिए हिंदी सरल भाषा है.
फिल्म ‘इंगलिश विंगलिश’ से जानी-मानी अभिनेत्री श्रीदेवी 15 सालों के बाद हिंदी फिल्मों में एक ऐसी ही घरेलू महिला के चरित्र के साथ वापसी कर रही हैं, जिसके परिवार वाले सिर्फ इस बात को लेकर उसका मजाक उड़ा देते हैं कि उसे अंगरेजी नहीं आती. पेश है इस फिल्म के संबंध में श्रीदेवी से हुई बातचीत के मुख्य अंश.
देवी को वास्तविक जिंदगी में कभी अंगरेजी पढ़ने या लिखने में कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन फिल्म इंगलिश विंगलिश में अपनी बेहतरीन अदाकारी से वह भारत की हर उस घरेलू महिला का प्रतिनिधित्व करने जा रही हैं, जो अंगरेजी न बोल पाने की वजह से हंसी की पात्र बनती हैं. एक सामान्य से कांसेप्ट को किस तरह फिल्म का रूप दिया गया और फिल्म के अन्य पहलुओं के बारे में बता रही हैं खुद श्रीदेवी.
आप 15 सालों बाद आप वापसी कर रही हैं. आपने कमबैक के लिए ‘इंगलिश विंगलिश’ को ही क्यों चुना? इस फिल्म में ऐसी क्या खास बात नजर आयी?
देखिए, मैं जब फिल्में करती थी या करती हूं, तो मैं स्क्रिप्ट और निर्देशक को बहुत महत्व देती हूं. बाल्की की फिल्में ‘पा’ और ‘चीनी कम’ मैंने पहले देखी थीं और मैं बाल्की के सोच की फैन हो गयी थी. वो बिल्कुल ऑफट्रैक सोच के साथ फिल्म बनाते हैं. बाल्की ने मुझसे फोन पर इस बारे में चर्चा की थी. मैंने उनसे कहा कि वे गौरी के साथ आएं. गौरी आयीं और जिस तरह उन्होंने फिल्म की स्क्रिप्ट मुझे सुनायी, मेरे दिल ने कहा कि मुझे करना है. इससे पहले भी मेरे पास फिल्में आयी थीं, लेकिन वे फिल्में ऐसी थी, जैसा रोल मैं कर चुकी हूं. वे मुझे जंची नहीं.
श्रीदेवी, पहली बार जब फिल्म का फस्र्ट लुक जारी किया गया, यह बिल्कुल अलग था. मुझे याद है फिल्म ‘फरारी की सवारी’ के साथ आपकी फिल्म के ट्रेलर जारी किये गये और आपको देखते ही थियेटर में बैठे सभी लोगों ने तालियां बजायी थीं. तो, क्या खास वजह रही थी ऐसे प्रोमो को चुनने की.
यह निर्देशिका गौरी शिंदे और बाल्की का आइडिया था. चूंकि इससे पहले हिंदी फिल्मों में कभी सेंसरशिप के सर्टिफिकेट को लेकर कोई प्रोमो नहीं दिखाया गया था. दूसरी बात, जब मुझे बाल्की ने बताया कि प्रोमो में यह बात दिखायी जा रही है कि फिल्मों को भी एग्जाम देना पड़ता है और हिंदी फिल्म लेकिन एग्जाम इंगलिश में, तो मुझे यह कांसेप्ट पसंद आया. जी हां, मैं बहुत खुश थी कि दर्शकों को मेरी वापसी रास आयी.

इस फिल्म के किरदार के बारे में बताएं.
फिल्म में मेरे किरदार का नाम शशि है. शशि घरेलू महिला है, जिसके लिए उसका परिवार ही सबकुछ है. लेकिन आम घरेलू महिलाओं की तरह उसने कभी अपने कॅरियर के बारे में सोचा भी नहीं. इस बात को देकर कई बार उसका परिवार उसका मजाक उड़ाता रहता हैं. एक मोड़ आता है, जब शशि तय करती है कि वह अंगरेजी सीख कर ही रहेगी. और फिर भी चल पड़ती है अपने मिशन पर. इस मिशन पर उसके साथ कई रोमांचक घटनाएं होती हैं.
15 साल के बाद जब आप इस फिल्म की शूटिंग के लिए आयीं, तो पहले दिन कुछ नर्वसनेस या फिर कोई डर, झिझक?
मैं इसके लिए गौरी को धन्यवाद देना चाहूंगी कि उन्होंने शूटिंग का माहौल काफी सहज बताये रखा. सेट पर सभी मुझे श्रीदेवी की तरह प्यार दे रहे थे, सभी मेरा ख्याल रख रहे थे. मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं एक बच्ची हूं और सभी मुझे स्नेह दे रहे हैं. इसलिए कोई खास परेशानी नहीं हुई.
आपके बारे में निर्देशकों का मानना है कि आप उन अभिनेत्रियों में से एक रही हैं, जिन्हें रिहर्सल की बहुत जरूरत नहीं होती?
मैंने हमेशा ही फिल्मों की स्क्रिप्ट के साथ रिहर्सल को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी है. सच्चाई यह है कि मैं अभिनेत्री के रूप में तभी सामने आ पाती हूं, जब कैमरा ऑन होता है और मुझे निर्देशक से कमांड मिलता है. इससे पहले आप मुझे देखेंगे मैं ठीक से संवाद भी रिहर्सल नहीं कर पाती. वैसे, यह हर कलाकार की अपनी कला पर निर्भर करता है. मुझे याद है वह दिन जब मैं फिल्म ‘लम्हे’ की शूटिंग कर रही थी. मेरे पिताजी की मृत्यु हुई थी और हमें शूटिंग पूरी करनी थी. मैं पिताजी के अंतिम संस्कार से वापस लौट कर शूटिंग करने गयी थी. सिर्फ वह दिन मेरे लिए बहुत कठिन था, क्योंकि मैं दिल से खुश नहीं थी और मुझे कैमरे पर अपना दुख नहीं दरसाना था. मैं मानती हूं कि एक्टिंग दिल से होती है. दिमाग से हो ही नहीं सकती. सो, मैं कैमरा ऑन होने के बाद ही अभिनय कर पाती हूं.
इन 15 सालों में बॉलीवुड और एक्टिंग को मिस नहीं किया?
नहीं. मैं मानती हूं कि मेरे फैन के दिलों में अब भी मेरे लिए जो प्यार जिंदा है, वह इसलिए कि मैंने सिर्फ परदे पर नजर आने के लिए कोई भी फिल्म नहीं की. लगातार नजर आती तो शायद दर्शकों के दिल में अहमियत कम होती. मैं मानती हूं कि हर कलाकार के लिए काम करने के साथ अपनी पहचान को बनाये रखने के लिए थोड़ा ब्रेक भी लेना भी जरूरी होता है. अब भी ऐसा नहीं होगा कि मैं सिर्फ सुर्खियों में बने रहने के लिए कोई फिल्म करूं. मैं चुनिंदा फिल्में ही करूंगी.
इन 15 सालों में आपकी नजर में कितना बदल गया है बॉलीवुड?
कई बदलाव हुए हैं. कुछ अच्छे भी हैं. पहले के मुकाबले अब अभिनेत्रियों को खूब मौके मिल रहे हैं. मुझे दीपिका पादुकोण का काम पसंद है. नयी अभिनेत्रियों में जोश है. हां, लेकिन अच्छी कॉमेडी फिल्में बननी कम हो गयी हैं. गानों के फिल्मांकन का तरीका बदल गया है. आयटम सांग तो आये हैं, लेकिन कुछ समय के बाद वे जेहन में जिंदा नहीं रहते. पहले यश चोपड़ा जैसे निर्देशक खासतौर से अपने गानों का फिल्मांकन करते थे. मैं भारतीय फिल्मों की जान गानों को ही समझती हूं.
यश चोपड़ा की बात आपने की. यश चोपड़ा की आप पसंदीदा अभिनेत्री रही हैं और अब उन्होंने तय किया है कि ‘जब तक है जान’ के बाद वह कोई फिल्म निर्देशित नहीं करेंगे. ऐसे में आप क्या मानती हैं, बतौर निर्देशक यश ने आपके कॅरियर में क्या कोई योगदान दिया है?
बिल्कुल. मैं यशजी की आभारी हूं कि ‘चांदनी’ और ‘लम्हे’ जैसी फिल्में उन्होंने मुझे दी. दोनों फिल्में मेरे कॅरियर की माइलस्टोन साबित हुई. हालांकि मुझे लम्हे का अंत पसंद नहीं था, लेकिन मैं किसी भी निर्देशक के साथ बहस नहीं करती. वो जैसा कहते हैं, मैं करती हूं और मैं मानती हूं कि मेरे अंदर के अभिनय में से यश चोपड़ा ने उन पहलुओं को निखारा, जिनमें मैं एक सुंदर अभिनेत्री भी लगी. मुझे एक डांसर के रूप में भी सराहना मिली. मुझे भावपूूर्ण अभिनेत्री बनाने व निखारने में यशजी का बड़ा योगदान रहा है. ‘इंगलिश विंगलिश’ की शूटिंग के दौरान हमारी मुलाकात हुई थी. उस वक्त भी यश जी ने बहुत स्नेह से बात की और कहा कि वे मेरी फिल्म जरूर देखेंगे. वैसे, मुझे भी अफसोस है कि वह संन्यास ले रहे हैं, लेकिन इससे वे संतुष्ट हैं तो अच्छी बात है.
आपने इससे पहले कभी किसी महिला निर्देशिका के साथ काम नहीं किया तो गौरी शिंदे के साथ आपका अनुभव कैसा रहा?
वेल, यह तो वाकई सच बात है कि इससे पहले मेरे पास किसी महिला निर्देशिका ने स्क्रिप्ट ही नहीं भेजी. वैसे, जिस दौर में मैं सक्रिय थी, बहुत कम ही महिलाएं फिल्म बनाती थीं. शायद यह वजह रही हो. वैसे, गौरी जितनी उम्र में कम हैं उतनी ही अनुभवी हैं. आप फिल्म में देखेंगे कि उन्होंने विषय पर कितना काम किया है. फिल्म के संवाद आपको यह दरसा देंगे. मेरे लिए गौरी के साथ काम करना कंफर्ट जोन रहा, क्योंकि गौरी खुद एक महिला हैं, तो उन्हें मेरी सारी परेशानी समझ आती थी.
आपकी नजर में वे कौन-कौन-सी फिल्में हैं, जिन्होंने श्रीदेवी को बॉलीवुड की चहेती बना दिया?
‘मिस्टर इंडिया’, ‘चांदनी’, ‘लम्हें’ और ‘चालबाज’ हमेशा से ही मेरी पसंदीदा फिल्में रही हैं और मुझे लगता है कि इन सबमें में मेरा चुलबुला अंदाज दर्शकों को पसंद आया है.
श्रीदेवी, आपको कभी नेगेटिव किरदार निभाने का मौका मिले तो आप करेंगी?
मैं वह हर किरदार करूंगी, जो चुनौतीपूर्ण होगा. वैसे, ‘जुदाई’ में मेरा किरदार थोड़ा ग्रे शेड वाला था. लाडला में भी. और दोनों फिल्मों में दर्शकों ने मुझे पसंद किया था.
‘इंगलिश विंगलिश’ से उम्मीदें?
उम्मीद है कि दर्शकों को कहानी पसंद आयेगी. कॉन्सेप्ट आम होते हुए भी खास है. वैसे, मैं खुद थिएटर में जाकर लोगों से उनकी ईमानदार प्रतिक्रिया जानने की कोशिश करने वाली हूं.
वास्तविक जिंदगी में आपको कभी अंगरेजी न बोल पाने की वजह से परेशानी हुई है?
नॉट एग्जैक्टली. लेकिन हां, कई बार विदेशों में शूटिंग के दौरान लोग भारतीय एक्सेंट होने पर मेरा मजाक उड़ा दिया करते थे. लेकिन मैं भी चुप नहीं रहती थी. उन्हें जवाब दे देती थी. इस फिल्म में भी आप मेरा वही रूप देखें

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