फिल्म बांबे टू गोवा में शत्रुघ्न सिन्हा के साथ एक एक् शन दृश्य को देख कर सलीम जावेद अमिताभ पर फिदा हो गये थे. उन्होंने तभी उन्हें पहचान लिया था. उनकी प्रतिभा को पहचान लिया कि निश्चित तौर पर यह सुपरसितारा होगा. उसी वक्त से दोनों अमिताभ को जेहन में रखकर फिल्म लिखना चाहते थे. और उन्हें मौका भी मिला उस वक्त जब राजेश खन्ना ने फिल्म करने से इनकार कर दिया. और यही से जन्म हुआ एंग्री यंग मैन अमिताभ का. आज अमिताभ 70वें साल में कदम रखने जा रहे हैं. हिंदी सिनेमा उन्हें बिग बी, सदी का महानायक के रूप में जानती है. लेकिन हिंदी सिनेमा में दरअसल अमिताभ की स्टार छवि बनाने में सलीम जावेद की कलम का खास कमाल रहा. जिस दौर में अमिताभ की लगातार फिल्में फ्लॉप हो रही थीं. वैसे दौर में सलीम जावेद ने प्रकाश मेहरा से कह कर जंजीर फिल्म में अमिताभ के लिए जगह बनायी. न सिर्फ इतना ही उन्होंने जंजीर में सलीम जावेद प्रेजेंट्स अमिताभ बच्चन का टैग लगा कर अमिताभ को बड़े स्तर पर मौका दिया. यह सलीम जावेद की कलम का ही कमाल था कि अमिताभ को विजय का किरदार मिला. निस्संदेह अगर अमिताभ में टैलेंट न होता तो सलीम जावेद भी कुछ न कर पाते. लेकिन एक हकीकत यह भी है कि लगातार अगर प्रतिभा को भी अगर नकारा जाता रहता.तो शायद अमिताभ उभर कर सामने न आ पाते. दरअसल, हकीकत यह थी कि अमिताभ का उस वक्त तक किसी निर्देशक ने सही तरीके से उनके अभिनय का इस्तेमाल ही नहीं किया था. अमिताभ की रोबदार आवाज सात हिंदुस्तानी से ही सुनाई देने लगी थी. अमिताभ का गंभीर किरदार वाला अभिनय इसी फिल्म में नजर आ गया था. लेकिन इसके बावजूद उनकी प्रतिभा को सही दिशा नहीं मिल रही थी. सलीम जावेद की कलम ने इस हीरे को न सिर्फ तराशा,उसे संवारा भी. जंजीर के बाद दीवार, फिर शोले, डॉन जैसी फिल्मों में अमिताभ के कई रूपों को दर्शकों के सामने ला खड़ा किया. मुमकिन हो कि सलीम जावेद भी इस बात से वाकिफ रहे होंगे कि अमिताभ की जिस रोबदार आवाज का लोगों ने मजाक उड़ाया. उसे उनकी कमी बतायी. उसी आवाज को ध्यान में रख कर सलीम जावेद ने एक से बढ़ कर एक संवाद लिखे और वह जब अमिताभ की आवाज में बाहर आये तो मील का पत्थर साबित हुए. हिंदी फिल्मों में किसी लेखक की कलम से यह कमल खिलेगा. यह किसी ने नहीं सोचा होगा.इस लिहाज से अमिताभ को सलीम जावेद का भी शुक्रगुजार होना ही चाहिए
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20121015
सलीम-जावेद की कलम का कमल
फिल्म बांबे टू गोवा में शत्रुघ्न सिन्हा के साथ एक एक् शन दृश्य को देख कर सलीम जावेद अमिताभ पर फिदा हो गये थे. उन्होंने तभी उन्हें पहचान लिया था. उनकी प्रतिभा को पहचान लिया कि निश्चित तौर पर यह सुपरसितारा होगा. उसी वक्त से दोनों अमिताभ को जेहन में रखकर फिल्म लिखना चाहते थे. और उन्हें मौका भी मिला उस वक्त जब राजेश खन्ना ने फिल्म करने से इनकार कर दिया. और यही से जन्म हुआ एंग्री यंग मैन अमिताभ का. आज अमिताभ 70वें साल में कदम रखने जा रहे हैं. हिंदी सिनेमा उन्हें बिग बी, सदी का महानायक के रूप में जानती है. लेकिन हिंदी सिनेमा में दरअसल अमिताभ की स्टार छवि बनाने में सलीम जावेद की कलम का खास कमाल रहा. जिस दौर में अमिताभ की लगातार फिल्में फ्लॉप हो रही थीं. वैसे दौर में सलीम जावेद ने प्रकाश मेहरा से कह कर जंजीर फिल्म में अमिताभ के लिए जगह बनायी. न सिर्फ इतना ही उन्होंने जंजीर में सलीम जावेद प्रेजेंट्स अमिताभ बच्चन का टैग लगा कर अमिताभ को बड़े स्तर पर मौका दिया. यह सलीम जावेद की कलम का ही कमाल था कि अमिताभ को विजय का किरदार मिला. निस्संदेह अगर अमिताभ में टैलेंट न होता तो सलीम जावेद भी कुछ न कर पाते. लेकिन एक हकीकत यह भी है कि लगातार अगर प्रतिभा को भी अगर नकारा जाता रहता.तो शायद अमिताभ उभर कर सामने न आ पाते. दरअसल, हकीकत यह थी कि अमिताभ का उस वक्त तक किसी निर्देशक ने सही तरीके से उनके अभिनय का इस्तेमाल ही नहीं किया था. अमिताभ की रोबदार आवाज सात हिंदुस्तानी से ही सुनाई देने लगी थी. अमिताभ का गंभीर किरदार वाला अभिनय इसी फिल्म में नजर आ गया था. लेकिन इसके बावजूद उनकी प्रतिभा को सही दिशा नहीं मिल रही थी. सलीम जावेद की कलम ने इस हीरे को न सिर्फ तराशा,उसे संवारा भी. जंजीर के बाद दीवार, फिर शोले, डॉन जैसी फिल्मों में अमिताभ के कई रूपों को दर्शकों के सामने ला खड़ा किया. मुमकिन हो कि सलीम जावेद भी इस बात से वाकिफ रहे होंगे कि अमिताभ की जिस रोबदार आवाज का लोगों ने मजाक उड़ाया. उसे उनकी कमी बतायी. उसी आवाज को ध्यान में रख कर सलीम जावेद ने एक से बढ़ कर एक संवाद लिखे और वह जब अमिताभ की आवाज में बाहर आये तो मील का पत्थर साबित हुए. हिंदी फिल्मों में किसी लेखक की कलम से यह कमल खिलेगा. यह किसी ने नहीं सोचा होगा.इस लिहाज से अमिताभ को सलीम जावेद का भी शुक्रगुजार होना ही चाहिए
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