बाबूजी हरिवंशराय बच्चन सबसे करीबी दोस्त
दुनिया के लिए महान साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन बेटे अमिताभ के लिए उनके बाबूजी थे. दुनिया अमिताभ को महानायक मानती है और वे अपने बाबूजी को. बचपन से 70 तक आज भी उनके आदर्श बाबूजी हैं. बाबूजी के सिद्धांत ही हैं. उन्हें आज भी अपने जीवन में बस एक ही मलाल है कि वह और अधिक वक्त अपने बाबूजी के साथ गुजार पाते. वे हमेशा मानते हैं कि हरिवंशराय बच्चन का ओहदा हमेशा उनसे ऊंचा रहेगा. क्योंकि बाबूजी साहित्यकार थे और साहित्य का कद हमेशा फिल्मों से ऊपर है. दरअसल, अमिताभ फिल्मों के साथ साथ अपनी गृहस्थ जीवन में भी कामयाब इसलिए रहे. क्योंकि वे एक आदर्श बेटे बन पाये. परिवार को जीवन का अभिन्न अंग मानने की सीख उन्हें पिताजी से ही मिली. शायद यही वजह रही कि वे अपने व्यस्त जिंदगी के बावजूद अपने परिवार को जोड़ कर रख पाये. दरअसल, हरिवंशराय बच्चन अमिताभ के सबसे करीब दोस्त बने. शुरुआती दौर से ही उन्होंने अमिताभ से दोस्ताना व्यवहार रखा और अमिताभ ने भी वही व्यवहार अभिषेक से रखा. किसी समृद्ध परिवार में भी बाप-बेटे के रिश्तों में ऐसा खुलापन व विचारों के आदान प्रदान की छूट कम ही देखने को मिलती है. लेकिन हरिवंश राय ने इसे बरकरार रखा. बचपन में भी वे अमिताभ की पढ़ाई लिखाई के अलावा अन्य गतिविधियों में भी अमिताभ को गाइड करते रहे. अमिताभ शुरुआती दौर से शर्मिले थे. लोगों से कम बातें करते थे. उन्हें मुखर बनाने का श्रेय उनके पिता को ही जाता है. इलाहाबाद में अमिताभ के शर्मिले मिजाज की वजह से ही हरिवंशराय बच्चन ने एक टांगा खरीद रखा था. जिसमें बैठ कर अमिताभ स्कूल व नर्सिंग होम जाते थे. ताकि उन्हें किसी से रास्ते में बात न करनी पड़े. अमिताभ के लिए हरिवंशराय ने एक कविता शुरुआती दौर में ही लिख दिया था जब अमिताभ ने उनसे यह प्रश्न पूछा था कि उन्होंने अमिताभ को जन्म क्यों दिया. जिस मजाकिया अंदाज में हरिवंश जी ने उनको जवाब दिया था. शायद वही से बाप बेटे के रिश्ते में लगाव व दोस्ती के बीज पनप गये थे. इसके बाद अमिताभ ने हर पथ पर बाबूजी की रचनाओं से प्रेरणा ली. बाबूजी हमेशा कहते जो मिला अच्छा, जो न मिला वो और भी अच्छा...इसे अपने जीवन का सूत्र बना कर रखा अमिताभ ने. ऐसा नहीं था कि दोनों के विचारों में कभी मनमुटाव न रहा. बाबूजी नहीं चाहते थे कि अमित राजनीति में जाये. लेकिन अमिताभ गये. अपने जिद्द से. लेकिन असफल होकर वापस पिता की ही शरण में आये.खुद अमिताभ मानते हैं कि उनके ज्यादा दोस्त नहीं हैं. क्योंकि वे अधिक घूल मिल नहीं पाते. लेकिन स्पष्ट रूप से हरिवंशराय बच्चन ही एकमात्र व्यक्ति रहे जिन्होंने अमिताभ को एक पिता नहीं एक सच्चा दोस्त दिया. अमित आज भी कहते हैं कि अगर कभी उनका घर टूटा तो वे सबसे पहले अपने पिताजी की रचनाएं लेकर भागेंगे. वे आज भी वक्त मिलने पर या कहीं भी यात्रा पर पिताजी की रचनाएं साथ रखते हैं. चूंकि आज बाबूजी का साथ न होते हुए भी उनकी रचनाओं से उन्हें बल मिलता है. ताकत मिलती है. शायद आज 70 की उम्र में भी वे कामयाबी की सीढ़िया चढ़ रहे हैं. क्योंकि पिताजी साथ नहीं. लेकिन उनकी रचनाओं में इतनी ताकत है, जिंदगी का वह रहस्य है. वह रस है. कि आज भी अमिताभ स्फूर्ति और ऊर्जा के साथ डटे हैं. विजयमान हैं. निरंतर हैं.
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