20121003

राजू हिरानी की गांधीगिरी

राजकुमार हिरानी महात्मा गांधी पर फिल्म बनाना चाहते थे. लेकिन वह यह बात समझ नहीं पा रहे थे कि वह विषय क्या रखें. चूंकि लगे रहो मुन्नाभाई से पहले गांधी पर कई फिल्में बन चुकी थीं. खुद राजू लगातार लाइब्रेरी में बैठ कर अध्ययन कर रहे थे. उसी दौरान उन्होंने यह महसूस किया कि गांधीजी तो जिंदा नहीं लेकिन आज भी उनके मूल्य जिंदा हैं. क्यों न इसे ही केंद्र में रख कर फिल्म बनाई जाये. लेकिन अगली समस्या यह थी कि मुन्नाभाई जैसा आदमी जो कि एक टपोरी है, उसके माध्यम से गांधी के मूल्य कैसे पहुंचाये जाये. एक गुुंडागिरी करनेवाला व्यक्ति किस तरह गांधी के मूल्यों को समझेगा और उसके साथ न्याय कर पायेगा. उस वक्त उनके जेहन में गांधीगिरी की बात आयी. और उन्होंने टपोरी मुन्ना को गांधी के मूल्यों को पहुंचानेवाले वाहक बना दिया.दरअसल, राजकुमार हिरानी की लगे रहो मुन्नाभाई गांधी के सिद्धांत को समझने का एक सराहनीय प्रयास है. एक मास्टरपीस है. चूंकि इस फिल्म में गांधी के सिद्धांत को भारी भड़कम शब्दों या भाषण की बजाय हंसते खेलते आम जिंदगी से जुड़े लोगों के बीच जिंदा रखने की कोशिश की गयी है. गांधीजी के पास बेहतरीन सेंस आॅफ ह्मुमर था. इसके बारे में इसी फिल्म के लेखक अभिजात जोशी को उस वक्त जानकारी मिली थी, जब वे एक किताब पढ़ रहे थे. जिसमें इस बात का जिक्र था कि गांधीजी ने कैसे एक बार लंदन में क्रिकेटरों की लिस्ट में 12 वें क्रिकेटर के रूप में अपना नाम शामिल कर लिया था.दरअसल, यह हकीकत है कि हमने गांधीजी का जो स्वरूप लगे रहो मुन्नाभाई में देखा वह काल्पनिक तो था. लेकिन कहीं हद तक गांधीजी के स्वभाव से मेल भी खाता था. गांधीजी के सिद्धांत को समझने और उसे व्यवहार में लाने के लिए सामान्य संवादों में जिस तरह राजू ने समझाया है. यह फिल्म हमेशा उपयोगी दस्तावेज रहेगा.

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