20121022

विचारों के आदान-प्रदान का मंच



श्रीदेवी की कमबैक फिल्म इंगलिश-विंगलिश को सफलता मिली. और इस बात से श्रीदेवी बेहद खुश हैं. यही वजह रही कि श्रीदेवी ने मीडिया से फिल्म की रिलीज और इसकी सफलता के बाद भी बातचीत की. उन्होंने फिल्म पर चर्चा करने के लिए मीडिया के लोगों को बुलाया. कुछ इसी तरह फिल्म ओह माइ गॉड की रिलीज से पहले ही अक्षय कुमार ने कहा था कि वे चाहते हैं कि यह फिल्म देखने के बाद हम दोबारा बातचीत करें. अक्षय ने भी वह वादा निभाया. उन्होंने फिल्म की रिलीज के कुछ दिनों बाद मीडिया की बैठक बुलायी और फिल्म पर चर्चा की. अनुराग कश्यप ने इम्तियाज अली की फिल्म रॉकस्टार की रिलीज के बाद कुछ युवाओं जिन्हें फिल्मों में दिलचस्पी है उन्हें और कुछ पत्रकारों के साथ इम्तियाज और युवाओं के बीच चर्चा का सेशन रखा. इसमें युवा दर्शकों ने जिन्होंने फिल्म देखी थी और उन्हें कोई कंफ्यूजन था. वे सारी बातें इम्तियाज अली से उन्होंने स्पष्ट की. पान सिंह तोमर की रिलीज के बाद भी अनुराग कश्यप ने फिल्म के निर्देशक  तिग्मांशु धूलिया व लेखक संजय चौहान के साथ पैनल डिस्कशन का आयोजन किया, जिसमें वे सारी चीजें जो फिल्म में स्पष्ट नहीं हो पायी थी. दर्शकों ने निर्देशकों से पूछ कर स्पष्ट की. दरअसल, हिंदी सिनेमा जगत में यह एक बेहतरीन पहल है. चूंकि प्राय: फिल्मी कलाकार केवल फिल्म के प्रमोशन के लिए फिल्म की रिलीज से पहले बातचीत करते हैं और फिर गायब हो जाते हैं. ऐसे में इन दिनों लगातार कुछ ऐसे उदाहरण सामने आ रहे हैं. जिनमें कलाकार अपनी रिलीज के बाद फिल्म पर चर्चा करना पसंद कर रहे हैं. किसी दौर में यह एक परंपरा थी. चंद्रप्रकाश द्विवेद्वी बताते हैं कि कैसे पहले फिल्मों की रिलीज से पहले और बाद में पत्रकार, निर्देशक, संगीतकार और कलाकार सभी लोगों की बैठक होती थी और कैसे सभी मिल कर चर्चा करते थे. इससे फिल्मों की कमियां और खूबियां दोनों का पता चलता था. लेकिन नये दौर में फिल्मी कलाकार अपनी खामियां सुनना पसंद नहीं करते. वे तो अखबारों के नकारात्मक रिव्यू से भी परहेज करते हैं. ऐसे में वे कभी ऐसी चर्चाओं का हिस्सा नहीं बनना चाहते. फिल्म की रिलीज के बाद वे बाइट देने से भी कतराते हैं. इसके बावजूद कुछ कलाकारों व निर्देशकों की पहल से यह परंपरा शुरू हुई है तो इसे और आगे बढ़ाना चाहिए. चूंकि फिल्मों में कई ऐसी चीजें भी होती हैं जो दर्शक समझ नहीं पाते. ऐसे में निर्देशक से बात करने पर वे शंकाएं दूर होती हैं. ऐसी चर्चाओं से नये आइडिया भी मिलते हैं. सो, इस परंपरा को बढ़ते रहना ाटचहिए

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