अनुप्रिया अनंत-उर्मिला कोरी
सेकेंड च्वाइस रहे
आज 70 साल की उम्र में अमिताभ की फेहरिस्त में 100 से भी अधिक फिल्में दर्ज हैं. हिंदी सिनेमा के 100 साल में अमिताभ के 43 अहम साल हिंदी फिल्म जगत को मिले हैं. आज अमिताभ अपनी फिल्मों में बेहतरीन अदाकारी, समर्पित अभिनेता की वजह से सदी के महानायक हैं. लेकिन हिंदी फिल्मों में उनका सफर जहां से शुरू हुआ था. उस वक्त कभी शायद खुद अमिताभ ने भी परिकल्पना न की होगी कि कभी अधिकतर फिल्मों के सेकेंड च्वाइस माने जानेवाला नायक एक दिन सिनेमा जगत के उस मुकाम पर पहुंचेगा. जहां उन्हें रिप्लेस करनेवाला कोई नहीं. उनका कोई सानी नहीं. यह अमिताभ की फिल्मी करियर का संयोग रहा है कि वे शुरुआती दौर से ही हमेशा निर्देशकों की दूसरी पसंद रहे. यह सिलसिला फिल्म सात हिंदुस्तानी से ही शुरू हुआ. पहले अमिताभ का किरदार टीनू आनंद को आॅफर हुई थी. बाद में ख्वाजा को अमिताभ जंच गये. और यही से उनकी फिल्मी करियर की शुरुआत हुई. इसके बाद फिल्म आनंद में अमिताभ का बाबूमोसाय किरदार महमूद करनेवाले थे. लेकिन जब फिल्म में किशोर कुमार की जगह राजेश खन्ना को लिया गया तो बाबूमोसाय के लिए भी अमिताभ को चुना गया. बांबे टू गोवा मेहमूद ने राजीव गांधी को ध्यान में रख कर लिखी थी. लेकिन फिर अमिताभ को य ह फिल्म मिली. फिल्म जंजीर पहले राजकुमार, धर्मेंद्र को आॅफर हुई थी. उन्होंने ठुकराया तो अमिताभ को मिली और इसी फिल्म से अमिताभ का एंग्री यंग मैन की छवि का जन्म हुआ. इस फिल्म में काम करने के दौरान ही प्राण ने ऐलान कर दिया था कि हिंदी सिनेमा को अगले 100 सालों के लिए सुपरस्टार मिल गया है. प्राण की वह भविष्यवाणी सही साबित हुई और वाकई अमिताभ मिलेनियम स्टार के रूप में उभर कर सामने आये. फिल्म शोले में अमिताभ का किरदार शत्रुघ्न सिन्हा को आॅफर किया गया था. लेकिन शत्रुघ्न ने यह कह कर फिल्म ठुकरा दिया था कि वे मल्टीस्टारर फिल्मों में काम नहीं करते. बाद में अमिताभ का जय किरदार हिंदी सिनेमा के ऐतिहासिक किरदारों में से एक बना. फिल्म चुपके चुपके में भी ऋषिकेश मुखर्जी अमिताभ की जगह नये चेहरे को लेना चाहते थे. लेकिन धर्मेंद्र की जिद्द पर अमिताभ को यह फिल्म मिली.फिल्म दीवार भी पहले राजेश खन्ना और शशि कपूर को ध्यान में रख कर लिखी गयी थी. उन्होंने ठुकराया तो अमिताभ को मिली. गौरतलब है कि वे सारी फिल्में जो अमिताभ के लिए मिल का पत्थर साबित हुई. वे सारी फिल्में अमिताभ को ध्यान में रख कर लिखी नहीं गयी थी. लेकिन अमिताभ ने अपने समर्पण व समझदारी से सारे किरदारों को बखूबी निभाया. और धीरे धीरे निर्देशकों के फर्स्ट च्वाइस बने. दरअसल, अमिताभ का करियर भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं रहा. शुुरुआती दौर में उन्होंने केवल विफलता ही देखी. लेकिन बार बार वह संघर्ष करते रहे. और अपना मुकाम हासिल किया.
अहम रहे निर्देशक
अमिताभ के फिल्मी करियर का एक खास पहलू यह भी रहा है कि उन्हें एक ही निर्देशक के साथ कई फिल्में करने का मौका मिलता रहा. वे जिस निर्देशक के प्रिय हुए. उन्होंने अमिताभ के साथ कई फिल्में लगातार बनायी. ऋषिकेश मुखर्जी, मुकूल आनंद, मनमोहन देसाई, यश चोपड़ा, टीनू आनंद, प्रकाश मेहरा और बाद के दौर में राम गोपाल वर्मा के साथ उन्होंने लगातार फिल्में बनायी. ऋषिकेश मुखर्जी ने कहा था कि अमिताभ के अंदर के अभिनेता को कम ही निर्देशकों ने पहचाना. ऋषिकेश मानते थे कि अमिताभ को केवल एक् शन फिल्में या बंदूक चलानेवाले हीरो की छवि में बांधना नहीं चाहिए था. चूंकि वह वर्सेटाइल एक्टर है. फिल्म अलाप में अमिताभ ने शास्त्रीय संगीत की समझ करनेवाला किरदार निभाया था और उसे बखूबी निभाया था. इससे जाहिर होता था कि अमिताभ बेहतरीन अभिनेता है. वह हर तरह का किरदार निभा सकते थे. यश चोपड़ा ने अपने 80 वां जन्मदिन पर भी विशेष रूप से अमिताभ की तारीफ करते हुए कहा दीवार अमिताभ की अब तक की बेस्ट फिल्म है. यश चोपड़ा मानते हैं कि जिस तरह दीवार की स्क्रिप्ट में कोई कमी नहीं थी. अमिताभ के अभिनय में भी इस फिल्म में कोई खामी नहीं निकाल सकता था. यही वजह रही कि बाद के दौर में अमिताभ के साथ यश चोपड़ा ने और भी कई फिल्में बनायी. कभी-कभी, सिलसिला, त्रिशुल, काला पत्थर में अमिताभ के अभिनेता को निखार कर दर्शकों के सामने रख दिया. यश चोपड़ा आज भी अमिताभ के स्टाइल के मुरीद हैं. कयश चोपड़ा ने कभी कभी में अमिताभ के वार्डरॉब में कपड़े लिये हैं. यश चोपड़ा स्वीकारते हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को पंचुअल बनानेवाला पहला अभिनेता अमिताभ ही है. चूंकि इससे पहले हीरो काफी हीरोइज्म में जीते थे और देर देर से सेट पर आते थे. लेकिन अमिताभ शुरू से लेकर आज तक कभी भी सेट पर देर से नहीं पहुंचे. उनके इस प्रोफेशनलिज्म अंदाज के भी कायल हैं यश. बाद के दौर में वीर जारा में भी अमिताभ शूटिंग के लिए बिना अपने किरदार के बारे में पूछे सेट पर पहुंच गये थे. चूंकि वह यश की फिल्म थी. यश मानते हैं कि अमिताभ बेहद विनम्र अभिनेताओं में से एक हैं. शोले, शान, शक्ति जैसी फिल्मों में अमिताभ को निर्देशित कर चुके रमेश सिप्पी का मानना है कि अमिताभ जैसा प्रोफेशनल, पंचुअल, सीनिसियरिटी आज तक और किसी अभिनेता में नहीं देखी जा सकती. 70 की उम्र में भी अमिताभ सक्रिय हैं. क्योंकि उनमें ये गुण हैं. अमिताभ की जिंदगी का पहली माइलस्टोन फिल्म जंजीर देनेवाले प्रकाश मेहरा ने जब अमिताभ का चुनाव किया था तो फिल्मी जगत के कई लोगों ने प्रकाश को कहा था कि अमिताभ पनौती हैं. उन्हें न ले. फिल्म फ्लॉप होगी. उस वक्त प्रकाश ने कहा था कि अमिताभ हीरा है और हीरे की परख जोहरी को ही होती है. अमिताभ वाकई हीरा निकले. इसके बाद प्रकाश मेहरा ने अमिताभ के साथ एक के बाद हिट फिल्में दी. जंजीर, खून पसीना, हेरा फेरी, मुकद्दर का सिकंदर, लावारिश, नमक हलाल, शराबी तक लगातार प्रकाश व अमिताभ ने बॉक्स आॅफिस पर धमाल मचाया. अमिताभ के फिल्मी करियर में मनमोहन देसाई की भी अहम भूमिका रही. मनमोहन देसाई उस दौर में राजेश खन्ना को लेकर कई अच्छी फिल्में बना चुके थे. लेकिन मनमोहन देसाई भी नये चेहरे की खोज में थे. ऐसे में उन्हें परवरिश, अमर अकबर एंथनी, सुहाग, नसीब, देश प्रेमी व कूली मर्द, गंगा जमूना सरस्वती एक के बाद एक हिट फिल्में दीं. उस वक्त मनमोहन यही कहते थे कि अमिताभ को लेकर फिल्म न बनाना घर आयी लक्ष्मी को लौटाना है. चूंकि अमिताभ ने मनमोहन देसाई की फिल्मों को बॉक्स आॅफिस पर खास सफलता दिला दी थी. अमिताभ के करियर को खास मुकाम देने में मुकुल आनंद की भी अहम भूमिका रही. खुदा गवाह, हम जैसी फिल्में बनायी. लेकिन अग्निपथ में विजय दीना नाथ चौहान के किरदार को ऐतिहासिक बना दिया. हालांकि उस दौर में वह फिल्म कामयाब नहीं रही थी. लेकिन अमिताभ के किरदार का लोहा सबने माना था. चंद्रा बरोट की फिल्म डॉन भी अमिताभ के करियर की माइलस्टोन फिल्म रही. निर्देशकों के साथ के अलावा सलीम जावेद की स्क्रिप्टवाली फिल्में भी अमिताभ के लिए लकी रही.
अमिताभ के फिल्मी करियर की दूसरी पारी की शुरुआत भले ही आदित्य की फिल्म मोहब्बते से हुई. लेकिन इस फिल्म के बाद से अमिताभ को मुख्य नहीं सेकेंड लीड किरदार मिल रहे थे. लेकिन इस दौर में भी उन्हें रामगोपाल वर्मा का साथ मिला जिन्होंने अमिताभ को लेकर केंद्र भूमिका वाली फिल्में बनायी. सरकार, निश्रशब्द, सरकार राज जैसी फिल्में बना कर फिर से अमिताभ को मुख्यधारा का अभिनेता बना दिया. इस लिहाज से रामगोपाल वर्मा भी अमिताभ की जिंदगी में अहम रहे. रामगोपाल वर्मा मानते हैं कि अमिताभ को किसी भव्य सेट, लोकेशन की जरूरत नहीं. अमिताभ का करिश्मा खुद में भव्य है. अमिताभ की उपस्थिति ही लार्जर दैन लाइफ की भव्यता को स्थापित कर देती है. अमिताभ खुद में संपूर्ण है.
नाम है विजय दीना नाथ चौहान
अमिताभ की जिंदगी की पहली सफल फिल्म जंजीर थी. और इसी फिल्म से उन्हें विजय के नाम का किरदार मिला. और ताउम्र विजय उनके लिए लकी नाम रहा. इस फिल्म के बाद उन्होंने दीवार में विजय वर्मा का किरदार निभाया. फिर अग्निपथ में विजय दीना नाथ चौहान रहा. डॉन में विजय रहा.द ग्रेट गैंबलर में विजय रहे. हेरा फेरी में विजय रहे. दो और दो पांच, दोस्ताना, शान, त्रिशुल, नि:शब्द, और बुड्ढा होगा तेरा बाप में भी अमिताभ को विजय नाम के ही किरदार मिलते रहे.
70 का दशक रहा खास
अमिताभ आज अपना 70वां जन्मदिन मना रहे हैं और उनकी जिंदगी में भी 70 की अहम भूमिका रही है. अमिताभ ने अपने फिल्मी करियर का पहला और सबसे अहम सफलता का स्वाद 70 के दशक में ही चखा. अमिताभ की फिल्म जंजीर से ही उन्होंने पहली बार स्टारडम का स्वाद चखा. इसके बाद लगातार दीवार, चुपके चुपके, मिली, शोले, कभी कभी हेरा फेरी, अमर अकबर एंथनी, खून पसीना, त्रिशुल, जमीर. मुकद्दर का सिकंदर, डॉन, गंगा की सौंगध, कसमें वादे, सुहाग, नटवर लाल, दो और दो पांच लगातार 40 फिल्में की जिसमें लगभग उन्हें 90 प्रतिशत सफलता हासिल हुई. फिल्मों का दौर कायम रहा. यही नहीं वर्ष 1975 में एक साथ उनकी चार फिल्में रिलीज हुई थीं. और सभी ब्लॉकबस्टर रहीं. 70 के दशक में ही उन्होंने बॉक्स आॅफिस हैट्रिक भी लगाई. 74 में कसौटी, मजबूर व चुपके चुपके बॉक्स आॅफिस पर सुपरहिट साबित हुई. लेकिन 75 में एक साथ मिली, दीवार शोले हिट रही. 76 में कभी कभी, अमर अकबर एंथनी, हेरा फेरी सफल रही. 77 में खून पसीना, परवरिश और गंगा की सौंगध कामयाब रही. 78 में त्रिशुल, डॉन, मुकद्दर का सिकंदर ब्लॉकबस्टर रही. 79 में नटवर लाल, काला पत्थर, सुहाग लगातार सुपरहिट फिल्में रहीं. यह वह दौर था जब हिंदी सिनेमा में पहली बार किसी अभिनेता ने 1 करोड़ के जादूई आंकड़े को टच किया था. तरन आदर्श बताते हैं कि अमिताभ पहले अभिनेता थे जिनकी फिल्म एक साथ मुंबई के 9 सिनेमा घरों में गोल्डन जुबली मनायी.
पा : दूसरी पारी
अमिताभ ने अपनी दूसरी पारी की शुरुआत कई बुरी फिल्मों से किया. लेकिन उन्होंने अपने जीवन की अहम भूमिका निभायी फिल्म पा में. पा में एक ऐसे बच्चे की भूमिका निभा कर उन्होंने सबको आश्चर्यचकित कर दिया. प्रोजेरिया से ग्रसित बच्चे के किरदार में अमिताभ ने खुद को पूरी तरह आॅरो में ढाल लिया था. खुद आर बाल्की मानते हैं कि उनके जीवन की सबसे अहम फिल्म पा रहेगी. चूंकि अमिताभ ने इस फिल्म में एक ऐसा किरदार निभाया. जिसे हिंदी सिनेमा में और कोई नहीं निभा सकता था. आर बाल्की मानते हैं कि वे हमेशा अमिताभ को लेकर ही फिल्में इसलिए लिख और सोच पाते हैं क्योंकि अमिताभ में उन्हें आज भी कई रंग नजर आते हैं और वह मानते हैं कि अब बी अमिताभ के अभिनय के कई रूप को निखार कर सामने लाया जा सकता है. यही वजह है कि आर बाल्की ने अमिताभ को लेकर चीनी कम और पा जैसी फिल्में बनायी. आगे भी वह अमिताभ के साथ ही फिल्में बनाना चाहते हैं. अमिताभ भी मानते हैं कि उन्हें अपने जिंदगी की स्पेशल भूमिका पा से मिली. इस फिल्म से अमिताभ के अभिनय को बी नया रूप दिया. अमिताभ मानते हैं कि इस फिल्म से आर बाल्की ने उन्हें उनका बचपन वापस कर दिया. पा के अलावा बागवां भी अमिताभ की जिंदगी में खास रही. बुड्ढा होगा तेरा बाप में मेरी अमिताभ का स्टाइलिश अंदाज हमेशा याद किया जाता रहेगा.
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