20121015

रॉनबो रणबीर :हिंदी सिनेमा का अगला सुपरस्टार




मां उन्हें प्यार से रॉनबो बुलाती हैं. दादा राजकपूर ने उन्हें यह नाम दिया था. दादा राजकपूर के लिए रॉनबो का मतलब आॅल राउंडर था तो मां नीतू रॉनबो मतलब रेमंड मानती हैं. यानी हीरा. दरअसल, रणबीर कपूर की शख्सियत पर यह दोनों ही उपाधि सटीक बैठती है. चूंकि कम वर्षों में ही जिस तरह उन्होंने अपने दादा की विरासत और कपूर खानदान की परंपरा को आगे बढ़ाया है. वह उल्लेखनीय है. लगातार बेहतरीन कहानियों के साथ रणबीर हिंदी सिनेमा के अगले और लंबे समय तक स्थापित रहनेवाले सुपरस्टार के रूप में उभर रहे हैं.वर्तमान में शायद ही किसी अभिनेता में अपनी लगभग हर फिल्म में एक दूसरे से जुदा किरदार निभाया होगा. लेकिन रणबीर लगातार रिस्क ले रहे हैं और कामयाब हो रहे हैं. सांवरिया से बर्फी तक के इस सफर में उन्होंने अगर किसी बात को अहमियत दी है तो वह है फिल्म की कहानी व निर्देशक. और शायद यही वजह है कि वे लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं. 

फिल्म बर्फी ने 100 करोड़ के क्लब में एंट्री कर ली है. बॉक्स आॅफिस पर. और इसी फिल्म से रणबीर कपूर ने भी 100 करोड़ क्लब में पहली एंट्री कर ली है. लेकिन उन्हें इस बात से कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. चूंकि 100 करोड़ क्लब और पैसे उनका लक्ष्य है ही नहीं. रणबीर शुरुआती दौर से ही कहते आये हैं कि वे कपूर खानदान से हैं और वे लकी रहेंगे हमेशा कि उन्हें कभी पैसों के लिए काम करने की जरूरत नहीं. शायद यह आर्थिक सुरक्षा और कपूर खानदान में हुई उनकी परवरिश की वजह से ही रणबीर का पूरा फोकस फिल्मों के चुनाव पर हैं. पांच सालों में  अब तक उन्होंने 11 फिल्मों में काम किया है. और 11 अलग अलग तरह के किरदार निभाये हैं. फिल्म सांवरिया से लेकर बर्फी तक के किसी भी किरदार में कोई समानता नहीं है. अपनी पहली फिल्म सांवरिया में उन्होंने जब से तेरे नैना गाने के माध्यम से दर्शा दिया था कि वे किरदारों को जीने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं.

30 की उम्र 60 की समझ
रणबीर कपूर को हमेशा यह फक्र रहा कि वह कपूर खानदान से हैं लेकिन वे इस आधार पर केवल कोई भी फिल्म करने को तैयार नहीं. हाल में 28 सितंबर को उन्होंने अपना 30 वां जन्मदिन मनाया. लेकिन वे 30 के होते हुए भी बेहद परिपक्व हैं. रणबीर हमेशा ही अपने इंटरव्यू में इस बात को दोहराते नजर आते हैं कि वे हमेशा उन फिल्मों में काम करेंगे, जिन फिल्मों में निर्देशक अपनी फिल्म के माध्यम से कुछ अलग सी बात कहना चाहता हो. वह कहानी को ही 100 करोड़ क्लब मानते हैं और वे बेझिझक कहते हैं कि पूरे भारत में अगर कहीं भी कोई भी बेहतरीन कहानी लेकर मेरे पास आयेगा तो वह अगर नया निर्देशक भी होगा तो मैं उनके साथ फिल्में करूंगा. क्योंकि मैं अपने स्टारडम को हमेशा अपनी कहानी से पीछे रखूंगा. शायद यही वजह है कि उन्होंने अब तक जितने निर्देशकों के साथ काम किया है, वे सभी अलग अलग सोच की कहानियों के साथ फिल्में लेकर आये हैं. फिर चाहे वह सांवरिया हो, बचना  ऐ हसीनो हो या फिर वेक अप सीड. रॉकस्टार या फिर बर्फी. उनकी फिल्में असफल भी रही हैं. लेकिन रणबीर हर फिल्म में एक नये रणबीर के रूप में ही उभरे हैं.

आमलोगों से जुड़ाव
 किसी भी सुपरस्टार की पूरी संरचना केवल उनकी परदे की दुनिया के इर्द-गिर्द ही सिमटी नहीं रहती है. लोगों में लोकप्रियता हासिल करने का माध्यम सिनेमा ही होता है. लेकिन उस व्यक्ति  का व्यक्तित्व भी उसकी लोकप्रियता में अहम भूमिका निभाता है. रणबीर इस लिहाज से भी बेहद सचेत रहते हैं. वे जानते हैं कि उन्हें किस तरह आमलोगों के बीच आना है. कैसे उन्हें अपना बनाना है. वे इस कला में माहिर हैं. रणबीर किसी नेटवर्किंग साइट्स पर नहीं हैं. चूंकि वे अपना पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपने अभिनय पर देना चाहते हैं. लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि रणबीर काफी गंभीर हैं और कपूर खानदान के  टैग की वजह से वे लोगों से मिलते जुलते न हों. जो रणबीर को करीब से जानते हैं. वे इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि रणबीर को पार्टियों में कितनी दिलचस्पी है. वे किसी भी पार्टी में सबसे पहले पहुंचते हैं और डांस फ्लोर पर सबसे अधिक देर तक कमर लचकाने और सिर पर शैंपेन की बोतल लेकर नाचनेवाले भी वही हैं. वे जब पब्लिक अपीयरेंस के लिए आते हैं तो लोगों के बीच होकर रह जाते हैं. शायद यही वजह है कि उनकी लोकप्रियता धीरे धीरे न सिर्फ युवा लड़कियों के बीच बल्कि बड़े बुजुर्ग भी उन्हें उतना ही प्यार और सम्मान देने लगे हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद यह स्वीकारा था कि किसी दौर में जब उनके पिता ऋषि कपूर बेहद लोकप्रिय सितारा थे और उनके घर के बाहर उनके प्रशंसकों की भीड़ लगी रहती थी. और ऋषि कपूर कई बार भीड़ को निराश कर देते थे. आॅटोग्राफ नहीं देते थे. तो उस वक्त ही रणबीर ने तय कर लिया था कि वे ऐसा कभी नहीं करेंगे. क्योंकि उस वक्त उन्हें लोगों के चेहरे पर मायूसी नजर आयी थी. उन्होंने उस वक्त ही सोच लिया था कि वे कभी अपने किसी फैन को कभी नाराज नहीं करेंगे. और यही वजह है कि आज भी जब उनके फैन उनके साथ तसवीर लेने और आॅटोग्राफ की गुजारिश करते   हैं तो वह फौरन तैयार हो जाते हैं. यह दर्शाता है कि रणबीर बेहतरीन आॅब्जर्बर हैं और उन्होंने उस दौर में ही सीख लिया था कि उन्हें आम दर्शकों को कैसे अपना बनाना है. बिल्कुल अपने दादाजी की तरह, शायद इसकी वजह यह हो सकती है कि रणबीर ने जब अपने दादाजी का इतिहास पलट कर देखा होगा. उनके बारे में जाना होगा. उन्हें यह बातें समझ में आयी होंगी कि किस तरह राज कपूर आम लोगों के बीच होकर रह जाते थे. और उनकी राजू वाले मासूम किरदार आज भी किस तरह दर्शकों के दिलों में जिंदा हैं. राज कपूर का जो सीधा कनेक् शन आम दर्शकों से रहा है. शायद उनके बाद कपूर खानदान की किसी भी पीढ़ी से रहा हो. लेकिन वह खाई रणबीर कपूर तोड़ रहे हैं. कुछ ही दिनों पहले एक वरिष्ठ फिल्म पत्रकार ने बताया कि रणबीर को यह जानकारी ही नहीं थी कि हिंदी फिल्मी ुपत्रकारों की आमदनी बहुत नहीं होती. उन्हें जब पता चला तो वह सोच में पड़ गये. वे बार बार अपना सेट देकर आते और पूछते कि इतने कम पैसों में कोई मुंबई में कैसे सर्वाइव करता होगा....हंसते हुए उन्होंने ये भी कहा कि बाप रे इतने कम पैसों के लिए ही जर्नलिस्ट हमें इतना डराते रहते हैं. उनकी इस बात से साफ है कि वे अमा लोगों से मिलना और उन्हें जानने का प्रयास करना चाहते हैं. शायद यही वजह है कि वे अपनी किसी भी फिल्मों में लार्जर दैन लाइफ वाले किरदार निभाना ही नहीं चाहते. फिल्म सांवरिया से लेकर अब तक का उनका फिल्मी ग्राफ देख लें तो उनके सारे किरदार मीडिल क्लास परिवार से ही संबंध रखता है.

सुपरस्टार की राह
उनके पिता ऋषि कपूर ने हाल ही में दिये एक इंटरव्यू में यह बात कही है कि मुझे डर है कि कहीं रणबीर इस दौर का अमोल पालेकर न बन जाये. चूंकि वे जिस तरह की फिल्मों का चुनाव कर रहा है. उससे मुझे डर लगता है. लेकिन हमारे खानदान की परंपरा रही है कि हम कभी भी अपने बच्चों के काम में दखल नहीं देते. न मेरे बावूजी ने दिया था. न ही मैं दूंगा. वह खुद धीरे धीरे सब सीख जायेगा. लेकिन रणबीर कपूर लगातार अपनी फिल्मों के चुनाव से यह साबित कर रहे हैं कि आनेवाले समय में वे ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े सुपरस्टार होंगे. चूंकि उनके व्यक्तित्व में हर वह बात है जो एक सुपरस्टार की होती है. उनके व्यक्तित्व की एक खासियत यह भी है कि वह किसी को भी फॉलो नहीं कर रहे. न ही गुजरे जमाने के किसी सुपरस्टार को और न ही वर्तमान में स्थापित सुपरस्टार को. वे अपनी एक अलग ही धारा बना रहे हैं और वह उनकी मौलिक धारा है. जिस पर वे खुद बैटिंग, फिल्ंिडग और बॉलोइंग तीनों ही कर रहे हैं. और उनका यही व्यक्तित्व उन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे लंबे दौर तक टिके रहनेवाले सुपरस्टार की उपाधि दिलाये.

11 फिल्में 11 नये किरदार
इन पांच सालों में केवल 11-12 फिल्मों में नहीं बल्कि 11 नये किरदार निभाये हैं और दर्शक उन सभी किरदारों को याद रखना चाहते हैं.फिल्म सांवरिया में वे जब टॉवेल गिरा कर मुस्कुरा कर स्माइल करते हैं तो कई लड़कियां उन पर फिदा हो जाती हैं तो दूसरी ही फिल्म में तीन लड़कियों से फर्ल्ट कर रहे राज शर्मा की उस अदा को भी लड़कियां पसंद करती हैं. लेकिन अचानक उनकी वह छवि टूट जाती है जब वह वेकअप सिड में सिद्धार्थ मेहरा के रूप में दर्शकों के सामने आते हैं. सिड के रूप में एक बेहतरीन दोस्त के रूप में रणबीर और कोंकणा सेन की जोड़ी वैसी ही लगती है जैसे एक श्रेष्ठ दोस्तों की जोड़ी होनी चाहिए.वेक अप सिड में उनकी और कोंकणा की जोड़ी बहुत असामान्य सी जोड़ी थी. लेकिन इसके बावजूद अन्य सुपरस्टार की तरह रणबीर ने नखरे नहीं किये कि वह अभिनेत्री के रूप में किसी स्टार अभिनेत्री को ही चाहते हैं. चूंकि रणबीर जानते हैं कि वे जिस तरह का अभिनय कर रहे हैं उन्हें भावपूर्ण अभिनेत्रियों का ही साथ मिलेगा. भी दर्शक उन्हें सिड शर्मा की छवि में स्वीकार ही रहे थे कि अचानक उनकी फिल्म अजब प्रेम की गजब कहानी में हंसी के हंसगुल्ले छोड़ कर उन्होंने अपनी गंभीर हीरो वाली इमेज ही तोड़ दी. लेकिन अगले ही पल वह फिर से रॉकेट सिंह के रूप में सेल्समैन के रूप में आ गये. फिल्म भले ही बॉक्स आॅफिस पर कामयाब नहीं रही. लेकिन सभी ने रणबीर कपूर के किरदार की सराहना की. इस फिल्म में उनसे बेहतर और कोई सेल्समेन हो ही नहीं सकता था. जिस तरह वे अपनी बुद्धि लगा कर एक से एक मार्केटिंग के फंडे अपनाते हैं. मार्केटिंग फील्ड के लोग उनके मुरीद हो जाते हैं. लेकिन अभ्यिय की उनकी यह गाड़ी यही आकर नहीं टिकती. वे राजनीति में दोबारा एक बड़े राजनीतज्ञ की तरह रणनीति बनानेवाले व राजनीति खेलनेवाले योद्धा के रूप में उभर कर सामने आते हैं. और इसी फिल्म से रणबीर संकेत दे देते हैं कि वे अब पूरी तरह से फॉर्म में आ चुके हैं. उन्होेंने कमर कस ली है. राजनीति के बाद उनका बिल्कुल अदभुत रूप उभर कर फिल्म रॉकस्टार में आता है.एक ही फिल्म में दो महत्वपूर्ण किरदार निभा कर रणबीर खुद को पूरी तरह स्थापित करने में कामयाब हो जाते हैं.दरअसल, हकीकत यह है कि रणबीर के फिल्मों के चुनाव से एक बात स्पष्ट होती है कि उन्होंने फिल्मों की रणनीति कुछ इस कदर तैयार कर रखी है कि वह जानते हैं कि उन्हें कौन कौन से निर्देशक और मांझ सकते हैं और तराश सकते हैं. ताकि दिन ब दिन व निखरते   जायें. और इसी सोच के साथ वह इम्तियाज अली, अनुराग बसु, अनुराग कश्यप, अभिनव कश्यप जैसे निर्देशकों का चुनाव कर रहे हैं.

रॉकस्टार जर्नाधन से जॉर्डन 
रणबीर खुद मानते हैं कि रॉकस्टार उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण फिल्म है. चूंकि इस फिल्म को रणबीर ने पूरी तरह जिया है. एक सामान्य से जर्नाधन से जॉर्डन रॉकस्टार बनने तक के इस सफर में इम्तियाज ने रणबीर के अंदर बैठे अभिनेता के कई शेड्स को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया है. जहां एक तरफ जर्नाधन की मासूमियत, अपने सपने को पूरे करने की ललक, एक लड़की से पहले हवस वाला प्यार और फिर वास्तविक प्यार करनेवाले एक लड़के के बीच छिपी द्वंद्व इस कहानी में इम्तियाज ने रणबीर से उनका श्रेष्ठ ले लेने की कोशिश की है. इस फिल्म में रणबीर ने न सिर्फ अभिनय के दृष्टिकोण से बल्कि संगीत के दृष्टिकोण से काफी प्रशिक्षण लिया. स्पष्ट है कि रणबीर ने फिल्म में कितनी मेहनत की होगी.सबसे बड़े फिल्मी खानदान से संबंध रखनेवाला एक अभिनेता चाहता तो वह कई ऐसी फिल्मों की लड़ी भी लगा सकता था, जिसमें केवल डांस गाना हो. लेकिन रणबीर ऐसा नहीं कर रहे और शायद यही वजह है कि उनकी तपस्या परदे पर साफ नजर आती है. रॉकस्टार देखने के बाद लोगों ने मान लिया था कि यह रणबीर की बेस्ट फिल्म है. इस िफल्म में इम्तियाज ने रणबीर के अभिनय का निचोड़ ले लिया है. अब इससे बेस्ट और क्या होगा. लेकिन रणबीर कहां इतने से संतुष्ट रहते. सुरों से सजी इस फिल्म से चौंकानेवाले रणबीर अपनी अगली ही फिल्म बर्फी में बिना कुछ कहे सब कुछ कह जाते हैं और बर्फी की मिठास दर्शकों के दिलों में इस तरह घुल जाती है कि दर्शक चाह कर भी बर्फी के किरदार से दूर नहीं हो पाते.

मतवाला बर्फी
फिल्म बर्फी में रणबीर कपूर ने खामोश रह कर भी खुद को स्थापित कर लिया. इस फिल्म में रणबीर के किरदार को देख कर आप अनुमान लगा सकते हैं कि वह वास्तविक जिंदगी में भी कितनी जिंदादिल हैं.फिल्म में उन्होंने अपने चेहरे से अभिनय किया है. एक ही फिल्म में एक शरारती लड़के,अपने पिता से दुलार करनेवाला बेटा, किसी आम युवा की तरह खूबसूरत की लड़की से प्यार करनेवाला एक लड़का, एक संवेदनशील दोस्त, जिम्मेदार व्यक्ति और प्यार की गहराईयों को समझनेवाला भावपूर्ण व्यक्ति का संपूर्ण किरदार निभाया है. यह दर्शाता है कि बतौर अभिनेता रणबीर एक गंभीर, अनुशासित व समर्पित अभिनेता हैं जो निर्देशकों के अनुसार ही काम करते हैं

निर्देशकों के चहेते
हाल ही में रणबीर कपूर ने अपनी सबसे बुरी लत छोड़ दी है. उन्होंने स्मोकिंग छोड़ दिया है. चूंकि उन्होंने फिल्म बर्फी के सेट पर अनुराग बसु से वादा किया था कि अगर बर्फी 70 करोड़ का आंकड़ा पार कर जायेगी तो वह स्मोकिंग छोड़ देंगे. जिस दिन फिल्म ने 70 करोड़ का आंकड़ा पार किया. उसी दिन खुद सामने से रणबीर ने अनुराग बसु को फोन करके कहा कि उन्होंने स्मोकिंग छोड़ दिया. अनुराग बसु बताते हैं कि रणबीर अपने निर्देशकों को सर कह कर ही पुकारते हैं. खुद रणबीर ने कई फिल्म समारोह में इम्तियाज अली इम्तियाज अली सर कह कर ही संबोधन किया था. रणबीर खुद मानते हैं कि उन्हें संवारने में उनके निर्देशकों की सबसे अहम भूमिका है. इसलिए वे सबसे अधिक सम्मान अपने निर्देशकों की करते हैं. बकौल अनुराग रणबीर काम करते वक्त बेहद गंभीर रहते हैं ,लेकिन कैमरा आॅफ होते ही उसके अंदर का बच्चा जाग उठता है. मुझे याद है किक जब बर्फी की शूटिंग का अंतिम दिन था, सभी रणबीर को पकड़ कर रो रहे थे. वजह यह थी कि रणबीर के कुशल और मिलनसार व्यवहार की वजह से उन्होंने सभी को अपना दीवाना बना दिया था. रणबीर दूसरों को सम्मान देना जानते हैं और यही उनकी सबसे बड़ी यूएसपी है. शायद यही वजह है कि मैं और रणबीर आगे भी साथ साथ काम करते रहेंगे. वही इम्तियाज रणबीर की सबसे खास बात यह है कि वह बहुत अच्छे श्रोता हैं. वे उस वक्त तो कई प्रश्न नहीं करते. जब तक वह सबकी बात सुन न लें. वे निर्देशकों को खुद को सौंप देते हैं. मैं मानता हूं कि रणबीर निर्देशकों के हीरो हैं. जो निर्देशक उन्हें जिस तरह ढालना चाहेगा. ढाल लेगा. इम्तियाज का मानना है कि जिस तरह कई भगवानों के कई रूप होते हैं. कई नाम होते हैं. रणबीर के भी अभी कई रूप प्रतीत होना बाकी है. वे लगातार चौंकाते रहेंगे. अनुराग कश्यप जिनके साथ रणबीर फिल्म बांबे वेल्वेट में काम करने जा रहे हैं. उनका मानना है कि रणबीर वर्तमान में एकमात्र अभिनेता हैं, जो हमेशा भिन्न रहेंगे. वहीं अभिनव कश्यप का मानना है कि रणबीर उन कलाकारों में से एक हैं, जिनसे एक साथ एक टपोरी का किरदार, एक जेंटलमेन का किरदार, एक रोमांटिक किरदार, एक फर्ल्टर का किरदार. हर तरह का किरदार करवाया जा सकता है.

राजकपूर से तूलना
यह हकीकत है कि राजकपूर ने हिंदी सिनेमा में जो पहचान बनायी. उसे तोड़ना बेहद मुश्किल है. लेकिन यह रणबीर कपूर की काबिलियत है कि वे ताउम्र अपने दादा राजकपूर की तूलनात्मक दृष्टिकोण को भी झेलने को तैयार हैं. लेकिन वे न हो इस बात से अत्यधिक हताश हैं कि उनकी सफलता का सेहरा कपूर खानदान के सिर पर बांध दिया जाता है और न ही इस बात से अति उत्साही हैं कि उनके पास कपूर सरनेम है ही. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा विरले ही होता है कि किसी   सुप्रसिद्ध फिल्मी सितारे के खानदान का व्यक्ति अपनी एकल पहचान स्थापित कर पाये. लेकिन रणबीर को इस नीति में महारथ हासिल है और वे बेहद समझदारी से अपने कदम बढ़ा रहे हैं और कामयाब हो रहे हैं और इसमें कोई संदेह नहीं कि यकीनन आज के दौर में कपूर खानदान राजकपूर की वजह से जाना जाता है. आनेवाले समय में राजकपूर के समांतर रणबीर कपूर को भी वह ओहदा हासिल होगा. उनका हर कदम, उनकी कामयाबी उनकी सोच, फिल्मों के चयन, उनके अभिनय के गुर इसका शुभ सांकेतिक संदेश दे रहे हैं.

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