20160202

दर्शक का दिल


करीबी मित्र जो कि रंगोली कार्यक्रम से जुड़ी हैं, उनके माध्यम से पता चला कि रंगोली धारावाहिक में कई प्रशंसकों के खेत जेल से भी आते हैं. वे लिखते हैं, कि जेल में उनके लिए मनोरंजन का माध्यम सिर्फ दूरदर्शन चैनल है. वे यह भी बताते हंै कि वे अकेले नहीं, बल्कि पूरे समूह के साथ वे यह शो देखते हैं और कम से कम इसी बहाने उनके थोड़े दुख कम हो जाते हैं. वे इस बात से खुश हैं कि फिर से रंगोली की शुरुआत हुई है. इस जानकारी बाद मैंने महसूस किया कि कुछ धारावाहिक व कुछ कार्यक्रम किस तरह लोगों के जेहन में जिंदा रहते हैं. कभी रेडियो पर फौजी भाईयों के लिए  शो कितना लोकप्रिय था. संगीत के माध्यम से वे जो अपने परिवार से दूर हैं, किस तरह चंद लम्हों के लिए ही सही मुस्कुरा तो लेते होंगे. कल्पना करें कि संजय दत्त ने भी इतना वक्त जेल में गुजारा है. ऐसे में जाहिर सी बात है, उनके लिए भी मनोरंजन का माध्यम दूरदर्शन ही रहा होगा. मुमकिन है कि रंगोली व चित्रहार जैसे शोज में कभी उनके गाने भी प्रसारित हुए होंगे और उनके दिल को कितनी तसल्ली मिली होगी कि उन्होंने अच्छा काम भी किया है. दरअसल, यह हकीकत है कि हिंदी सिनेमा के बारे में आलोचना होती रही है कि यहां संगीत हावी है. जबरन गाने ठूसे जाते हैं. लेकिन हकीकत यह है कि इसी संगीत की वजह से आज भी कुछ लोगों के चेहरों पर मुस्कान होती है. यह संगीत ही है, जो तमाम म्यूजिक चैनलों की मौजूदगी के बावजूद रंगोली की यादों को खुद से जोड़े रखना चाहते हैं. सुरभि की यादों के बारे में खुद रेणुका सहाणे ने स्वीकारा था कि उनके पास शो की समाप्ति के बाद भी दर्शकों के खत आते थे. यह उस दौर की खूबसूरती और खुशनसीबी थी कि सोशल नेटवर्र्किंग साइट्स हावी नहीं थे. वरना, शायद कलाकार भी उस भावना को उतनी अहमियत नहीं दे पाते. आखिर खत लिखने, फिर उसे पोस्ट करने में उनकी शिद्दत नजर आती थी. 

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