20160205

फाइनल टू पर आकर अटक जाती थी गड्डी मेरी : विकी कौशल

फिल्म मसान से उन्होंने खुद को स्थापित कर लिया है. इस वर्ष के नवोदित अभिनेता के सारे अवार्ड भी इनके ही खाते में गये हैं. अमूमन इंडस्ट्री में पिता अगर पहले से स्थापित और बड़े नाम हैं तो लोग बेटे को पिता के नाम से संबोधित करने लगते हैं. लेकिन इन्होंने नाम पहले बनाया बाद में लोगों ने पिता का नाम जाना. वजह यह भी रही कि उन्होंने ठान रखा था कि खुद के बलबुते पहचान बनायेंगे. पिता भी तो यही चाहते थे. जी हां, हम बात कर रहे हैं विकी कौशल की, जिन्होंने मसान के माध्यम से बॉलीवुड में एक शानदार दस्तक दी है. 

 जुबां से जुड़ना कैसे हुआ?
जुबां मेरी पहली फिल्म थी लीड के रूप में मसान से पहले इसे साइन किया था. जुबां मेरी जिंदगी में तब आयी, जब मैं स्ट्रगल कर रहा था.रोज आॅडिशन देता था. थियेटर, फिल्म, एड. हर किस्म का आॅडिशन देता था. थियेटर कर रहा था.रिहर्सल और आॅडिशन मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा थी. उस वक्त घर पर मायूस होकर लौटता था कि यार कुछ हो नहीं रहा है.फिर सुबह उठ कर लगता था कि चलो फिर से कुछ करें. फिर रात को आता था फिर से वही मायूसी...तो वह दौर चल रहा था. उसी दौरान मुझे जुबां के लिए फोन आया.मुकेश छाबड़ा जी ने मेरी एक शॉट फिल्म देखी थी यूटयूब पर.उन्होंने और फिल्म की  प्रोडयूसर गुनीत मोंगा ने मोजेज( फिल्म के निर्देशक) को यह फिल्म दिखाई थी. उस वक्त मुझे पता नहीं था कि मोजेज 250-300 लोगों का आॅडिशन कर चुके थे. लेकिन वह संतुष्ट नहीं थे.गुनीत ने उन्हें दिखायी. तो मोजेज ने कहा कि आॅडिशन के लिए बुला लो. उस दिन मुझे तीन सीन्स करने थे. मैंने तीनों सीन्स किये. और घर आये. जैसा कि मेरे साथ कई दिनों से हो रहा था आॅडिशन के दौरान कि आप एक बस्ता लेकर घूमते हो. उसमें एक कोर्ट होता है, एक टी-शर्ट होती है. एक शर्ट होता है. कुर्ता होता है.जहां जैसा माहौल हो. वह पहन कर शुरू हो जाओ. उस आॅडिशन से मैं किसी और आॅडिशन में चला गया था. फिर मैं घर पहुंचा.रात को मुझे 1 बजे गुनीत का फोन आया कि यार आॅडिशन तो कमाल का था.तो मुझे लगा कि रोल मिल गया क्या. तो मैंने पूछा. वहां भी इंतजार खत्म नहीं हुई थी. गुनीत ने कहा कि नहीं नहीं अभी भी फाइनल टू में है तू. तो मेरे लिए फाइनल टू जिंक सा हो गया था. चूंकि 80 प्रतिशत आॅडिशन में मैं फाइनल टू में आकर रुक जाता था. मुझे लगा कि फिर से यह फिल्म गयी. लेकिन मुझे अगले दिन फिर से आॅडिशन के लिए बुलाया गया. फिर से नया सीन मिला. और ये सिलसिला एक हफ्ते तक चलता रहा. दरअसल, ये मेरी लाइफ का मोस्ट ग्रीलिंग आॅडिशन था. जहां मुझे रियली टेस्ट किया गया था. बाद में मुझे समझ आया कि पूरी फिल्म एक ही किरदार के ऊपर है. अंतिम चरण था, जब मुझे और सारा को फोटो शूट करने थे. और देखना था कि दोनों की जोड़ी कैसी लग रही है.हफ्ते भर  के बाद फिर से बुलाया गया. मुझे तो ऐसा लग रहा था कि आॅडिशन में ही मैं फिल्म खत्म कर चुका हूं. मैं गया इस बार.वहां देखा मैंने आॅडिशन का सेटअप नहीं था. फिर उन्होंने कहा कि आप लीड के लिए सेलेक्ट हो गये हैं और मैं सामान्य रूप से सिर हिला रहा था. बाद में मोजेज को आश्चर्य हुआ उन्होंने पूछा कि तुम खुश नहीं हो, पता नहीं मुझे भी समझ नहीं आया था कि मैंने ऐसे क्यों रियेक्ट किया था. लेकिन शायद जिंदगी में पहली बार सुना था कि मैं सेलेक्ट हुआ हूं. घर गया. मां पापा को बताया. मां खुशी से उछल रही थीं. पापा पीके की शूट पर दिल्ली में थे. वे वहां खुश थे काफी. और इस तरह यह सफर पूरा हुआ.
आमतौर पर इंडस्ट्री में जब पिता एक बड़े नाम होते हैं और स्थापित नाम होते हैं तो लोग मान बैठते हैं कि उनकी संगत की वजह से बेटे को नाम मिलेगा.लेकिन आपके साथ अलग सी बात हुई. पहले आपने खुद को साबित किया. फिर लोगों ने जाना कि अच्छा ये शाम  कौशल जी का बेटा है. 
जी , बहुत बहुत शुक्रिया और खुशी है कि लोग इस तरह सोचते हैं. लोगों ने नोटिस किया कि मुझे अपने दम पर काम मिला है. दरअसल, मैं इंजीनियरिंग पास आउट हूं. टेली कम्यूनिकेशन की पढ़ाई कर रहा था. जॉब भी थी हाथ में.चूंकि सेकेंड ईयर में न फैक्लिटी हमें ले जाते थे इंडस्ट्रीयल विजिट पर. तब मुझे ऐसा लगा था कि मैं ये काम नहीं कर सकता. मैं नाइन टू फाइव नहीं कर सकता.मैं कंप्यूटर के सामने कोडिंग-डिकोडिंग नहीं कर  सकता. तब मैंने सोचना शुरू किया कि मैं जिंदगी में करना क्या चाहता हूं.और मैं बचपन से मैं एक्टिव था. स्टेज पर. एक्टिंग़. डांस में भी. तो मुझे लगा कि मैं ये दुनिया एंजॉय करता हूं. तब मैंने अपने पापा से कहा कि मैं एक्टर बनना चाहता हूं. पापा अचंभित थे, क्योंकि हर परिवार की तरह हमारे यहां भी दादा जी सभी मानते थे घर लेलो, नौकरी लेलो, सेटल हो जाओ. पापा ने कहा कि तेरे पास जॉब है. लेकिन फिर भी तू इस लाइन में आना चाहता है. जहां हर रोज एक जॉब ढूंढनी है. पापा ने ये भी साफ कहा कि यह मत सोचना कि मैं तेरे लिए कहीं काम की बात करूंगा या पापा इस क्षेत्र में तो आसानी से काम मिल जायेगा. जो करना होगा अपनी दम पर करना होगा. लेकिन मैं फिर भी रेडी था.और पापा से मैंने उसी वक्त वादा किया था कि खुद के दम पर ही काम करूंगा. और खुशी होती है कि मैंने वह वादा पूरा किया. मैंने पापा से यह भी कहा था कि मैंने आपका हार्डवर्क देखा है. आपकी मेहनत देखी है और मैं जानता हूं कि मैं ये सब कर पाऊंगा. मैं किसी इल्यूजन से नहीं आ रहा. मैं इसलिए आ रहा हूं.
आपने कभी एक् शन निर्देशक बनने का ख्वाब नहीं देखा. पापा को बचपन से ही आपने स्टंट करते देखा है तो?
हां, बचपन में सारे बच्चों की तरह मैं भी जब फिल्में देखता था तो लगता था कि मैं भी बड़े होकर ऐसा ही एक् शन करूंगा. हीरोइन को बचाऊंगा. पापा की मिटिंग्स होती थी घर पर नाश्ते पर. सारे निर्देशक, राइर्ट्स आते थे घर पर तो. मैं सबकी बातें सुनता था. हालांकि हमलोग कभी सेट पर नहीं जाते थे. चूंकि पापा को फिल्म को घर लाना पसंद नहीं था और न ही घर को फिल्म सेट पर ले जाना.लेकिन हां, पहली दफा मैं  फिजा फिल्म की शूटिंग पर गया था. चूंकि मुझे ऋतिक रोशन का डांस बहुत पसंद था. लेकिन मैं शूटिंग देख कर बोर गया था. 12 साल का था तब मैं. मुझे लगता था कि तीन घंटे की फिल्म है तो 1 दिन में तो शूटिंग खत्म हो जाती होगी. मुझे पता ही नहीं था कि इतना वक्त लगता है. वहां मैं देख कर दंग रह गया था कि लोग एक एक सीन को ही कई बार शूट कर रहे थे. मैं शूटिंग देख कर काफी बोर भी हो गया था.
आमतौर पर बड़ी लांचिंग होती है इंडस्ट्री के बच्चों की तो आपका भी कुछ ऐसा सपना था?
नहीं, मैं कभी भी यह सोच कर नहीं आया था कि मुझे लीड करना है या मुझे हीरो बनना है. मैं बस यह सोच कर आया था कि मुझे एक्टिंग करनी है. चाहे वह जिस तरीके का भी हो. मैं हरेक तरह का आॅडिशन देता था. इसलिए मैं किसी माइंडसेट से नहीं आया था कि मुझे हीरो बनना है.मुझे सिर्फ एक्टिंग करनी थी. मैंने इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद इसलिए सबसे पहले किशोर नमित एक्टिंग स्कूल है. वहां ज्वाइन किया. वहां छह महीने का कोर्स करना था. दरअसल, मुझे अपना इंट्रोवर्ट नेचर बदलना था.चूंकि वह पहला कदम है. अगर आपको एक्टर बनना है तो आपको एक्सप्रेसिव बनना होगा. और इसके अलावा मैं जानना चाहता था कि वाकई मुझमें वह जुनून है भी कि नहीं कि जिंदगी भर मैं यह करना चाहता हूं. चूंकि इसमें स्ट्रगल बहुत था. छह महीने के कोर्स के बाद मुझे यकीन हुआ कि मुझे इश्क है एक्टिंग से.इसके बाद मुझे गैंग्स आॅफ वासेपुर में अस्टिेंट डायरेक्टर बनने का मौका मिला तो मुझे वहां सीखने मिला कि परदे के पीछे कैसे काम होता है.तो अस्टिेंड डायरेक्टर बनने पर आपको सबसे ज्यादा काम सीखने का मौका मिलता है.आप फिल्म के ग्राउंड लेवल से जुड़े रहते हैं और आपका पता लगता है कि फिल्म बनती कैसे है.वह मेरे लिए फिल्म स्कूल था. वहां मुझे अगला कदम पता लगा कि थियेटर की अहमियत क्या होती है. चूंकि उसमें सभी थियेटर से थे. नवाज भाई. ऋचा. मनोज सर.तो उसके बाद मुझे पता चला कि मुझे थियेटर करना चाहिए. तो यहां मानव कौल  साहब हैं. नसीर साहब हैं. पीयूष मिश्रा साहब हैं.उनके साथ थियेटर करना शुरू किया. धीरे-धीरे मसान और जुबान जिंदगी में आयी.
आपके इंस्पीरेशन कौन रहे हैं?
मैं गुरदास मान साहब का बहुत बड़ा भक्त हूं. जब भी मैं हताश महसूस करता हूं. मैं उन्हें सुनता हूं. मैं निजी जिंदगी में भी उन जैसा बनना चाहता हूं. आप उनसे मिलेंगे तो महसूस करेंगे कि उनकी एनर्जी कमाल की है. उनका आॅरा है. डिवाइन सा आॅरा है. संतों वाला आॅरा है. वह तीन तीन घंटे तक स्टेज परफॉरमेंस देते हैं. मेरे पास कंप्यूटर में मान साहब का नाम का फोल्डर ही है. मैं उनके वीडियो देखता हूं तो खुश होता हूं.
और कौन-कौन सी फिल्में कर रहे हैं?
मैं रमन राघव और मनमर्जियां कर रहा हूं. रमन राघव अनुराग कश्यप बना रहे हैं और मनमर्जियां समीर शर्मा बना रहे हैं.

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