पारिवारिक फ़िल्म प्रेम रतन धन पायो के बाद अभिनेत्री सोनम इन दिनों बायोपिक फ़िल्म नीरजा में नीरजा के किरदार में दिख रही हैं।वह इस फ़िल्म और किरदार को अपने अब तक के कैरियर में सबसे खास करार देती हैं।इस फ़िल्म ने उन्हें अपने डर का हिम्मत से सामना करने की प्रेरणा दी हैं।
इस फ़िल्म से जुड़ने की क्या वजह थी
मतलब न क्यों बोलूंगी।स्क्रिप्ट पड़ने के बाद मेरी आँखों में आंसू आ गए थे।इतना मेरे दिल को छु गया था।फ़िल्म के निर्देशक राम माधवानी भारत के सर्वश्रेष्ठ एड फिल्ममेकर हैं।विश्व स्तर पर भी उन्होंने कई इंटरनेशनल अवार्ड जीत चुके हैं।इस फ़िल्म से पहले इन्होंने बोमन ईरानी के साथ फ़िल्म लेटस टॉक बनायीं थी।इस फ़िल्म से जुड़ने से पहले मैं नीरजा के बारे में ज़्यादा नहीं जानती थी लेकिन इस फ़िल्म के दौरान मैंने उसकी फितरत उसके कैरेक्टर को जाना।उस में बहुत सी खूबियां थी।वह ईमानदार,जिंदगी से प्यार करने वाली, संवेदनशील है। मॉडलिंग में वह बहुत अच्छा कर रही है लेकिन एयरहोस्टेस के तौर पर भी वह अपनी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाती है।23 साल की युवा लड़की है जब हम युवा होते हैं तो कुछ कर गुजरने का जज्बा हमारे भीतर सबसे ज़्यादा होता है।
नीरजा भनोट के किरदार ने रियल लाइफ में किस तरह से आपको प्रभावित किया ?
अगर तीन चार साल पहले आप मेरी आदर्श महिला के बारे में पूछते तो मैं सरोजनी नायडू,लता मंगेशकर,मदर टेरेसा, मेरील स्ट्रिप का नाम लेती थी लेकिन अब मैं अपनी आदर्श महिला नीरजा भनोट को मानती हूं। एक इंसान के तौर पर उसे गाना नहीं आता, डांसिंग नहीं करती, बॉक्सिंग भी नहीं जानती है।वह बस एक अच्छी लड़की है जो अपने काम को पूरी ईमानदारी से करना जानती हैं। एक ऐसी लड़की जो विपरीत परिस्थितियों में डरती नहीं है बल्कि उसकी हिम्मत दुगुनी हो जाती है।वह सुपरहीरो नहीं है।सैनिक भी नहीं लेकिन 359 लोगों की ज़िन्दगी बचाने के लिए वह अपनी ज़िन्दगी का बलिदान कर देती है। अब मेरी आदर्श नीरजा भनोट है।
नीरजा की फॅमिली से भी आप मिली थी कैसा उनके साथ जुड़ाव था?
यही कि नार्मल मिडिल क्लास फॅमिली है और वह मुझे मेरी फॅमिली की तरह ही लगी। जब मैं रमा आंटी से मिली तो उन्होंने मुझे देखते ही कहा कि जैसे लाडो आ गयी है।मेरी लिए वह बहुत ही इमोशनल लम्हा था।रमा आंटी ने हमारी पूरी टीम को खुश रहो सुखी रहो और मज़े में रहो का आशीर्वाद दिया था।उन्होंने मुझसे अशोक चक्र लेने की बात शेयर की थी कि उस दौरान हुई रिहर्सल के दौरान जब नीरजा के बारे में बताया गया तो वह फूट फूट कर रोने लगी थी तब राष्टपति ने उन्हें कहा कि बहुत कम ऐसी माएं हैं जिन्हें शहीद की माँ बनने का मौका मिलता है वो भी जो सैनिक की माँ नहीं है।अपनी बेटी की शहादत पर तुम्हे फक्र होना चाहिए।
आप नीरजा को रियल हीरो करार देती हैं क्या आपने अपनी लाइफ में कोई हीरोइज्म वाला काम किया है।
मैं तो ऐसी बिलकुल नहीं हूँ लेकिन इस फ़िल्म से जुड़ने के बाद अगर भविष्य में कोई भी विषम परिस्थितियां आए मैं एफर्ट लेने से पीछे नहीं हटूंगी।ये सिर्फ किसी बड़ी आतंकवादी घटना के वक़्त की एफर्ट लेने की बात नहीं है अगर आप किसी को रोड पर मुसीबत में देख लो तो आप उसकी मदद भी करने से पीछे न रहो।यह फ़िल्म देखने के बाद अगर किसी भी एक शख्स को अपना फियर फेस करने की हिम्मत आती है तो सही तौर पर नीरजा की कहानी को रुपहले पर्दे पर साकार करने का मकसद पूरा हो जायेगा। मेरे हिसाब से इस देश में तीन चीज़ चलती है।क्रिकेट,सिनेमा और पॉलिटिक्स।मैं सिनेमा से जुडी हुई हूं मेरी खुशनसीबी है कि मैं अपने आर्ट के ज़रिये बदलाव लाने को सक्षम हूं और मेरी यह कोशिश जारी रहेगी।
यह एक बायोपिक है इसलिए तुलना होगी ही कितना इसके लिए तैयार हैं
मैं अगर सोचूंगी तो बहुत स्ट्रेस ले लूंगी।मैंने बहुत ईमानदारी और मेहनत से अपना काम किया है।राम मैंने अपना 200 प्रतिशत तक दिया है।निर्माता अतुल कस्बेकर और निर्देशक राम माधवानी का कहना था कि मेरे अलावा नीरजा की भूमिका में वह किसी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।मेरे लिए यह बात बहुत मायने रखती है।
इस फ़िल्म में आपके साथ वेटेरन एक्ट्रेस शबाना आज़मी आपके साथ हैं उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
वह बेस्ट हैं,इंटेलीजेंट हैं और वो बहुत ही सपोर्टिव हैं । मैंने जब फिल्मों में आने का फैसला लिया था तब शबाना आंटी को पापा ने मुझे फ़िल्म से न जुड़ने के लिए समझाने को कहा था लेकिन मुझसे मिलने के बाद उन्होंने खुद पापा को समझाया कि मुझे फिल्मों में जाने दे।इस फ़िल्म से पहले मैं उन्हें आंटी के तौर पर ही जानती थी लेकिन इस फ़िल्म के दौरान हुए वर्कशॉप में मैंने उन्हें एक्टर और को एक्टर के तौर पर जाना।
आपकी पिछली फ़िल्म प्रेम रतन धन पायो आपके कैरियर की सबसे सफल फ़िल्म साबित हुई इंडस्ट्री का कितना रवैया बदला है
मैं नहीं सोचती हूँ कि मेरी पिछली फ़िल्म ने क्या किया मैं नेक्स्ट क्या कर रही हूँ।उसके बारे में सोचती हूँ।जहाँ तक बात इंडस्ट्री के रवैये की है तो मेरी हमेशा से ही मज़े में कटी है।बहुत रोचक मेरी जर्नी है।
क्या फ़िल्म खत्म होने के साथ किरदार भी आपके लिए खत्म हो जाता हैं
नहीं,एक इंसान के तौर पर भी मेरे हर किरदार मुझ में कुछ बदलाव कर जाते हैं इसलिए मेरे द्वारा निभाया हर किरदार का कुछ न कुछ अंश मेरे भीतर रह ही जाता है। मैं उन्हें नहीं भूल पाती हूँ।
सेंसर बोर्ड की दखलंदाज़ी इन दिनों बढ़ रही हैं लेकिन एडल्ट कंटेंट वाली फिल्में ही लोगों को लुभा रही है।
आप जितना पर्दा करोगे।जितना रोकोगे लोग उतना ही उन चीज़ों के प्रति आकर्षित होते हैं।आपकी माँ अगर आपको सिगरेट पीने को मना करे तो आप नहीं मानोगे लेकिन अगर वह उससे जुडी हानि के बारे में बताओगे तो ज़रूर वह नहीं पिएंगे।जैसे हम बोलते हैं कि 18 के पहले सेक्स नहीं 21 से पहले ड्रिंक नहीं करते हैं ऐसे ही आप फिल्मों को रेटिंग दो ।कट्स देकर आप और ज़्यादा ऐसी फिल्मों को चर्चा में ले आते हैं।जितना आप रोकेगे उतना लोग देखेंगे।हमारा देश कामसूत्र का देश है।उस वक़्त मोरल हाई थे इतने रेप नहीं होते थे। इतना सेक्स को लेकर हौवा नहीं था।
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