छोटे परदे का प्रसिद्ध चेहरा मनीष पॉल इन दिनों बडे परदे पर भी अपनी एक सशक्त पहचान बनाने में जुटे नजर आ रहे हैं. इसी की अगली कड़ी उनकी फिल्म तेरे बिन लादेन डेड और अलाइव है. वह इस फिल्म और अपने किरदार को ड्रीम रोल करार देते हैं. फिल्मों में भी मनीष अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहते हैं लेकिन वह छोटे परदे को कभी अलविदा कहने के मूड़ में नहीं हैं क्योंकि इसी छोटे परदे ने उन्हें बनाया है.
तेरे बिन लादेन 2 का हिस्सा कैसे बनें.
इतनी बड़ी फिल्म में हीरो रोल मिल जाए तो और क्या चाहिए. बहुत बढिया अमेजिंग रोल भी है. ड्रीम कम 'ट्रू वाला मामला है. अगर यह कहूं तो गलत न होगा. वैसे मैं उनसे किसी दूसरी फिल्म के सिलसिले में मिला था. उसमे मेरा छोटा सा रोल था लेकिन जब मैं उनसे मिला तो बातें करते हुए टिपिकल डायरेक्टर वाला लुक में मुङो देख रहे थे.( हंसते हुए) थोड़ी देर के लिए मैं डर गया कि कहीं कास्टिंग काऊच वाला मामला तो नहीं हैं. मैंने कह दिया कि मैं सीधा हूं. खैर उन्होंने मुङो कहा कि तुम दूसरी फिल्म में आ जाओ जिसके बाद मैं इस फिल्म का हिस्सा बन गया.
आपको लगता है कि इंडस्ट्री में कास्टिंग काऊच है.
मेरे साथ हुई नहीं है. होती होगी लोगों के साथ.कहीं न कहीं होता ही होगा. बिना आग के धुंआ नहीं होता है. मैं इस बात को जरुर मानता हूं.
यह एक व्यंगात्मक कॉमेडी फिल्म हैं और आप कॉमेडी में माहिर ऐसे में इस फिल्म से जुड़ना आसान था.
नहीं यार, लोगों को लगता है कॉमेडी आसान है लेकिन बहुत टफ काम है. खासकर बड़े परदे पर करनी हो तो और मुश्किल हो जाती है. रियैलिटी शो में हम मस्ती मजाक में निकाल देते हैं लेकिन बड़े परदे पर एक एक फ्रे म एक एक लाइन का याद रखना पड़ता है. स्पेशली जब निर्देशक अभिषेक शर्मा हो. वह बहुत पटिकुर्लर हैं. इनकी कॉमिक टाइमिंग माइंड ब्लोइंग है. उनको आप चीट नहीं कर सकते हो. एक शब्द या नार्मस गलत है तो वो पकड़ लेते हैं. मैं बोलूं भी चलता है. इतना कोई ध्यान नहीं देगा लेकिन वो नहीं मानते बोलते चलों फिर से करते हैं. वैसे वो अच्छा था और मेरे लिए बहुत सीखने का मौका था.
किसी फिल्म को साइन करते हुए आपके लिए क्या अहम होता है.
हिट होगी फ्लॉप होगी. ये सोचकर फिल्म से नहीं जुड़ता हूं. ये फिल्म बनाने में मजा आएगा. मेरे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण होता है. प्रोसेस मजेदार होना जरुरी है. ऐसा नहीं कि सीन देखकर लगे कि ये क्या बोल रहा हूं. अगला सुन नहीं रहा लेकिन इस फिल्म में ऐसा नहीं था. अभिषेक तुरंत समझ जाते थे वह पूछते भी थे कि तेरे को मजा नहीं आया. यहां ये कर सकते हैं. वो एक फ्रीडम देते थे.मैंने कुछ सीन किया तो दूसरे एक्टर ने कहा कि इसे ऐसे कर तो ज्यादा अच्छा रहेगा. सबके इनपुट होते थे. किसी फिल्म को बेहतर बनाने के लिए यह जरुरी है. प्रोमो में दिखाए साइलेंट वाले सीन की ही बात करूं तो अभिषेक सर ने पूरा डायलॉग लिखा था लेकिन उसे खडखड़ खटखट या साइलेंट कर देते है.ं मेरा आइडिया था.अभिषेक सर को पसंद आया और उन्होंने करने का कहा
स्मॉल स्क्रीन के एक्टर्स बड़े परदे पर कामयाबी नहीं मिल पायी हैं इस बात पर आप क्या कहेंगे.
मैं सबसे अहम स्क्रिप्ट को मानता हूं. आज बच्चन साहब को भी ढंग की भी स्क्रिप्ट नहीं देगे तो बच्चन साहब भी कुछ नहीं कर पाएंगे. पीकू उनकी सुपरहिट रही क्योंकि अच्छी स्क्रिप्ट और निर्देशक उनके पास थे. जिसके बाद ही वह अपने जबरदस्त परफॉर्मेस से उस फिल्म को इतना कामयाब बना पाएं थे. अच्छी स्क्रिप्ट और निर्देशक मिल जाए तो टीवी का बंदा भी अच्छा कर सकता है. हां बिग बी की बराबरी की तो हम सोच नहीं सकते हैं लेकिन जरुर अच्छा कर सकते हैं हर बंदा एक मौके से बेस्ट निकालना चाहता है. किसी का कोई हिंट फार्मूला नहीं है. यह गैम्बल है. जब तक आप रेस में दौडोगे नहीं तो फस्र्ट कैसे आओगे. बिना भागे कोई नहीं जीता है. कई लोगों का कहना है कि टीवी के एक्टर फिल्म में क्यों आते हैं. आप घर पर बैठकर बोल रहे हो. आपसे हम अच्छे ही हैं. कम से कम कोशिश तो करते हैं.
आप जब भी स्टेज पर आते हैं एक जादू जगा देते हैं. वो एक्स फैक्टर आपमें कहां से आता है.
सच कहूं तो मुङो नहीं पता है. यह भगवान ही जानता है. यह मेरे हाथ में नहीं होता है. इनट्स मैजिक. बैकस्टेज में मैं आज भी एक सहमे हुए बच्चे की तरह बैठा रहता हूं कि स्टेज पर जाकर क्या करूंगा या झलक की ही बात करूं तो स्टेज पर पहला स्टेप लेने से पहले मन में यही सोच होती है. झललक पहला स्टेप होगा कि नहीं माधुरी इंज्वॉय करेंगी. स्टेज पर जाकर पता नीहं क्या होगा. एक बार मुङो सोनू निगम ने कहा था कि आर्टिस्ट हैं हम सिर्फ तालियां बटोरते है.ं करने वाला उपर है. जब मैं स्टेज पर वो ऑन द स्पोट करता हूं.
टेलीविजन के आप स्टार हैं क्या फिल्मों के ऑफर भी आते रहते हैं.
फिल्में बहुत ऑफर हुई थी. लीड भी हुई थी. कभी स्क्रिप्ट अच्छी नहीं थी तो कभी सेटअप में प्राब्लम था. दो अच्छी फिल्में लगी थी उनको हां कह दिया था लेकिन फिल्म शुरु ही नहीं हो पायी. प्रोडय़ूर्स का पंगा हो गया था. मेरा सिंपल फंडा है मैं फिल्में करने के लिए मरा नहीं जा रहा हूं. अगर आपको लगता है कि मैं काम कर सकता हूं तो मुङो मौका दीजिए. अगर नहीं लगता कि मैं किसी के सामने हाथ नहीं जोडूंगा कि मुझे आप अपनी फिल्म में काम करने का मौका दें. मस्का मारने से बेहतर है कि मैं खुद पर वर्क करूं.
बीच में आप रणबांका जैसी फिल्मों में नजर आए थे. क्या उन फिल्मों को करने का अफसोस है.
वो फिल्में भी बहुत कुछ सीखा गयी है. उस फिल्म को करने के बाद मालूम हुआ कि ऐसा भी होता है. जो आपको बोला जाता है वो होता नहीं है. वैसे मैं दोस्तों का दोस्त हूं. आर्यमन मेरा दोस्त था उसने कहा कि फिल्म कर ले तो मैंने कर लिया. एख बार फिर लिर्नग चीजें कुछ होनी थी. ये फिल्म करने के बाद पता चला कि ऐसा होता है. हालांकि उसमे से भी मैंने निकाल लिया. जिसने भी वह फिल्म देखी बोला लास्ट के बीस मिनट जो थे. बढिया होते थे. लोगों को मेरा एक अलग ही रुप देखने को मिला था. मुङो उस फिल्म से जुड़ने का कोई अफसोस नहीं है. मैं आगे भी ऐसी फिल्मों से जुड़ता रहूंगा.
दस साल के अपने सफर को कैसे देखते हैं.
>> बहुत ही रोमांचित था. किसी से कोई शिकायत नहीं है. दिल्ली से यहां आया था तब मैं किसी को जानता नहीं था. कोई कॉटेक्ट नहीं था कि मैं किसी को फोन कर लूं. धीरे धीरे पहचान बनायी. वहीं स्ट्रगलर की तरह प्रोडक्शन हाऊसेज में जाना. फिर ऑडिशन देना. फिर रिजेक्ट होना. एक रिजेक्शन मुङो अभी भी याद हैं. वो लाइन नहीं भूलती है. तुम रिजेक्ट हो गए.मैंने पूछा क्यों जवाब आया आप मैच नहीं करते हैं. मैंने फिर कहा कि किसके लिए दो टूक जवाब सामने की तरफ से आया कि हमें खानदानी लड़का चाहिए. दो मिनट के सन्न ही रह गया. वहां से निकलकर गुस्से में डैड को कॉल किया और कहा कि क्या किया आपने. लोग कह रहे हैं कि खानदानी नहीं हूं. वो हंसने लगे बोले छोड़ आगे बढ़. मैंने भी वहीं किया सब भूलकर फोकस होकर अपना काम करता रहा फिर चाहे वह छोटा हो या बड़ा.
क्या आप अपनी सफलता में टीवी का बहुत बड़ा योगदान मानते हैं.
मेरी सफलता में टीवी का बहुत बड़ा योगदान है. यही वजह है कि मैं टीवी नहीं छोड़ता हूं. कई लोग कहते हैं कि टीवी छोड़ दे लेकिन मैं नहीं. नहीं भईया मैं किसी शो का एक सीजन कर लूं या एक दो एवार्ड नाइट्स कर लूं लेकिन आऊंगा जरुर. टीवी खास हैं मेरे लिए. या टीवी का यही रिजन हैकि नहीं छोड़ता हूं. चाहे एक सीजन या दो एवार्ड नाइट्स करूं लेकिन मैं करता हूं.
पहला मौका कैसे मिला कितना लंबा इंतजार करना पड़ा था.
सच कहूं तो बहुत देर तक बिना काम के नहीं रहना पड़ा था. सिंतबर में आया था. अक्टूबर में काम करने लगा था. फिल्मों में ही काम करूं यह तय नहीं किया था टीवी में एक शो था वो होस्ट कर रहा था. फिर रेडियो पर शो किया. शाम और सुबह के शोज किए. फिर टीवी का एक शोज किया. फिर मुङो लगा कि मजा नहीं आ रहा है. 2क्क्8 में सबकुछ छोड़कर घर पर ही था. एक साल घर पर ही था. जितना कमाया सब जा रहा था. एक वक्त ऐसा भी था जब घर भाडे के लिए पैसे नहीं थे लेकिन मैनेज किया. अपना खर्चा कम किया. उसके बाद मुङो होस्टिंग के ऑफर आने लगे. जीटीवी, सारेगामापा डीआईडी के बाद एक बड़े शोज ऑफर होने लगे. रेड कार्पेट्स के साथ मेन स्टेज फिर फिल्म ऑफर होने लगें. लगातार काम करके ही यहां तक पहुंचा हूं.
आप युवा कलाकारों को क्या गुरु मंत्र देंगे.
हर इंसान यहां एक्टर बनने ही आया है. मैं खुद आज से दस साल पहले मुंबई सेंट्रल की एक ट्रेन से बाहर आया था. जो दिल्ली से मुङो मुंबई लेकर आयी थी. टिपकिल स्टाइल में बैग रखकर प्लेटफार्म के धूल को सर पर लगाया और तैयार हो गया था स्ट्रगल के लिए. मैं सिर्फ यही कहूंगा कि मैं अपने काम को देखकर सबकुछ भूल जाता है. अपने स्टेज पर हूं तो मेरी फैमिली को भी पता है कि जब मैं काम करता हूं. पांच छह दिन बिना सोए चलना पड़े तो मुङो चलेगा. मेरा काम को लेकर बहुत ही ज्यादा जुनून है.
जब आपने शुरुआत की थी तो क्या आप अपनी खामियों को भी जानते थे
हां, मैं अपने आप से कभी झूठ नहीं बोलता था. मैं जानता था कि मैं अभी तो हीरो नहीं बन पाऊंगा. मुझे दिखती थी अपनी कमियां. अॅडिशन में ध्यान देता था कि हां यहां गलत रह गया या इधर थोड़ा कमजोर था. इस बात को भी मानूंगा कि रिजेक्शन दिल पर भी लगती थी. मैं उस वक्त चेम्बूर में रहता था वहां से बस लेकर वरली ऑडिशन देने जाता था. ना होने पर फिर बस में धक्कामुक्की करते हुए घर जाने से बहुत चिढ़ भी होती है लेकिन मुङो पता था कि मैं यहां काम करने आया है. जब आप करने आते हैं तो दस कठिनाईयां आती हैं. मैं फिल्मी बैकग्राउंड से आता नहीं हूं. मेरे दूर दूर तक कोई परिचित इस इंडस्ट्री में नहीं थे, इसलिए मैं पूरी तरह से तैयारी के साथ आया था. एक बार आपने दिमाग में तैयारी कर ली तो आपको कोई और हिला नहीं सकता है.इस बात के लिए भी तैयार था कि वो भी दिन होंगे जब पैसे नहीं होंगे मगर मैं तैयार था और उतना ही अपने काम को लेकर फोकस्ड भी. मैं दोस्तों के साथ पार्टी नहीं करता था. दिन भर कॉफी शॉप में कॉफी नहीं पीता था. पैसे नहीं थे इसलिए बिना काम के बाहर नहीं निकलता था. जब ऑडिशन देने जाना होता था तब ही निकलता था वरना घर पर सारा दिन दोस्तों से मांग मांगकर डीवीडी लाकर फिल्में देखा करता था. मैं सारे दिन फिल्में देखता था दिन में चार चार फिल्में देखता था . इरानी, जर्मन,फ्रेंच के साथ साथ तमिल फिल्म भी देखी. वो मेरे लिए बहुत सीखने वाला अनुभव था. मेरे लिए फिल्मों से बड़ा कोई टीचर नहीं है. अब भी यही करता हूं। अब तो मेरे दोस्त राइटर हैं डायरेक्टर है. एक फिल्म का पूरा पोस्टमार्टम करते थे. ये सीन ऐसा होता तो कैसा होता था. जिससे मुङो परफॉर्म करने के ज्यादा इमोशन और एक्सप्रेशन मिल जाते हैं.
सफलता को आप किस तरह से लेते हैं.
मैं सक्सेस के बारें में नहीं सोचता हूं. कई लोग कहते हैं कि टीवी का नंबर वन होस्ट हैं लेकिन मैं यह सब नहीं सोचता हूं. हर दिन काम करना है. हर दिन कुछ सीखना है. बस मैं इसी बात को सोचता हूं
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