ऋषि कपूर ने राज कपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर में राज कपूर के बचपन का किरदार निभाया है. लेकिन वे राज कपूर की पहली पसंद नहीं थे. राज कपूर की इच्छा थी कि पहले वह फिल्म से रंधीर कपूर को लांच करें, क्योंकि वह ऋषि के बड़े भाई हैं. लेकिन राज कपूर ने जब ऋषि कपूर का स्क्रीन टेस्ट लिया तो महसूस किया कि ऋषि ही किरदार में फिट बैठ रहे हैं. और यही वजह रही कि उन्होंने ऋषि को पहला मौका दिया. राज कपूर द्वारा किये गये इस निर्णय से यह बात साफ स्पष्ट होती है कि राज कपूर फिल्म बनाते वक्त पहले एक निर्देशक, एक क्रियेटिव व्यक्ति थे. बाद में वह पिता थे और यह उनकी पारखी ही नजर थी, कि उन्होंने अपने दोनों बेटों के हुनर को उस दौर में ही समझ लिया था. दरअसल, यही क्रियेटिवटी के क्षेत्र की सबसे बड़ी मांग भी है कि व्यक्ति इस बात से वाकिफ हो जाये कि उसमें क्या खूबियां हैं और कमियां हैं. राज कपूर का यह निर्णय एक निर्देशक का उसकी फिल्म के साथ किया गया न्याय है. जबकि कई निर्माता इस बात को अब तक नहीं समझ पाये हैं और वे जबरन अपने बेटे को अभिनेता बनाने की होड़ में लगे रहते हैं. चाहे फिर उन्हें इसके लिए कितना धन जाया न करना पड़े. अभिषेक कपूर की फिल्म फितूर आयी है. उन्होंने खुद यह बात स्वीकारी है कि उन्हें यह बात समझ में आ गयी थी कि वे अभिनेता नहीं बन सकते और उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया और आज वह सफल निर्देशक हैं. सलीम खान भी अभिनेता बनने का ख्वाब लेकर ही आये थे. प्राण साहब को भी लीड किरदार निभाने की ही इच्छा थी. यह बिल्कुल जरूरी नहीं कि हम लीड और सेंट्रल किरदार निभा कर ही सारी लोकप्रियता हासिल कर सकते. कभी कभी नवाजुद्दीन सिद्दिकी और इरफान खान जैसा रुख इख्तियार कर भी जगह बनायी जा सकती है. काश कि कुछ बड़े निर्माता इन बातों को समझते.
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20160217
निर्देशक का निर्णय
ऋषि कपूर ने राज कपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर में राज कपूर के बचपन का किरदार निभाया है. लेकिन वे राज कपूर की पहली पसंद नहीं थे. राज कपूर की इच्छा थी कि पहले वह फिल्म से रंधीर कपूर को लांच करें, क्योंकि वह ऋषि के बड़े भाई हैं. लेकिन राज कपूर ने जब ऋषि कपूर का स्क्रीन टेस्ट लिया तो महसूस किया कि ऋषि ही किरदार में फिट बैठ रहे हैं. और यही वजह रही कि उन्होंने ऋषि को पहला मौका दिया. राज कपूर द्वारा किये गये इस निर्णय से यह बात साफ स्पष्ट होती है कि राज कपूर फिल्म बनाते वक्त पहले एक निर्देशक, एक क्रियेटिव व्यक्ति थे. बाद में वह पिता थे और यह उनकी पारखी ही नजर थी, कि उन्होंने अपने दोनों बेटों के हुनर को उस दौर में ही समझ लिया था. दरअसल, यही क्रियेटिवटी के क्षेत्र की सबसे बड़ी मांग भी है कि व्यक्ति इस बात से वाकिफ हो जाये कि उसमें क्या खूबियां हैं और कमियां हैं. राज कपूर का यह निर्णय एक निर्देशक का उसकी फिल्म के साथ किया गया न्याय है. जबकि कई निर्माता इस बात को अब तक नहीं समझ पाये हैं और वे जबरन अपने बेटे को अभिनेता बनाने की होड़ में लगे रहते हैं. चाहे फिर उन्हें इसके लिए कितना धन जाया न करना पड़े. अभिषेक कपूर की फिल्म फितूर आयी है. उन्होंने खुद यह बात स्वीकारी है कि उन्हें यह बात समझ में आ गयी थी कि वे अभिनेता नहीं बन सकते और उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया और आज वह सफल निर्देशक हैं. सलीम खान भी अभिनेता बनने का ख्वाब लेकर ही आये थे. प्राण साहब को भी लीड किरदार निभाने की ही इच्छा थी. यह बिल्कुल जरूरी नहीं कि हम लीड और सेंट्रल किरदार निभा कर ही सारी लोकप्रियता हासिल कर सकते. कभी कभी नवाजुद्दीन सिद्दिकी और इरफान खान जैसा रुख इख्तियार कर भी जगह बनायी जा सकती है. काश कि कुछ बड़े निर्माता इन बातों को समझते.
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