भाभीजी घर पर हैं की अंगूरी जब भी निराश होती हैं तो वह सबसे पहले अपनी सासू मां को याद करती है. जब पति तिवारीजी अंगूरी को समझाते हैं कि तुम ऐसा क्यों करती हो...सारी बात मां से बतानी जरूरी है क्या. इस पर अंगूरी के दो टूक जवाब होते हैं कि आपको पता नहीं का...कि हम अम्माजी से सबकुछ शेयर करते हैं. इस शो में तिवारीजी की अम्मा बहू की बात सुनती हैं और बहू में कमियां निकालने की बजाय वह पूर्ण रूप से बहू का ही समर्थन करती हैं. वह अपने बेटे को बैल कह कर बुलाती है और बहू की एक आवाज में वह बेटे को लतियाने या बातें सुनाने में नहीं हिचकती. दरअसल, इस किरदार के गढ़े जाने के लिए निर्देशक शंशाक बाली और लेखक मनोष संतोषी हर रूप से बधाई के पात्र हैं, कि उन्होंने एक ऐसी सास का एक ऐसा रूप भी छोटे परदे पर गढ़ा है, जिसमें सासू मां बहू को बेटी मान रही है और अपने बेटे को बैल कहने से नहीं हिचकती. वरना, हमारे सामाजिक ढांचे में कौन-सी मां अपने बेटे में कमियां निकालते हुए बहू को सपोर्ट करती हैं. जब मैंने इन शो के शुरुआती एपिसोड देखे तो मेरे जेहन में यही बात थी कि अम्माजी अंगूरी की माताजी हैं. और अपनी बेटी को लेकर वह इतनी फिक्रमंद रहती हैं. लेकिन जब ज्ञात हुआ कि वह सासू मां हैं तो वाकई निर्देशक और लेखक के प्रति सम्मान बढ़ा. चूंकि यह हकीकत है कि टेलीविजन पर सासू मां की उन्हीं छवियों को दिखाया जाता रहा है, जो अपने बेटे को भगवान और बहू को सारी गलतियों की जिम्मेदार मानती आयी हैं. यह हकीकत भी है कि अधिकतर ससुराल में बहू को लेकर यही सोच बनी रहती है. सास की उम्मीदें बहू से यही होती है कि वह किस तरह बेटे का ख्याल रखे और उसकी खुशियों को पूरा करें. बहू की खुशियों की चिंता शायद ही उनकी प्राथमिकता रही हो. इस शो में एक खास संदेश है. अगर वाकई सास-बहू का रिश्ता ऐसा हो तो, लड़कियों को शायद ही मां की कमी महसूस हो.
No comments:
Post a Comment