शाहरुख खान की फिल्म रईस की शूटिंग गुजरात के अहमदाबाद में हो रही है और वहां से लगातार खबरें आ रही हैं कि किस तरह उनकी गाड़ी को या उनके नाम पर हंगामा मच रहा है. गौरतलब है कि शाहरुख खान ने कुछ महीनों पहले असहिष्णुता के मुद्दे को लेकर अपनी बात रखी थी. इसका सीधा असर उनकी फिल्म दिलवाले पर भी हुआ है. सोशल नेटवर्र्किंग साइट्स पर भी लगातार उन्हें और आमिर खान को लेकर हंगामा बरप रहा है. लोग आमिर खान और शाहरुख खान दोनों की फिल्मों के बहिष्कार की बातें कर रहे हैं. शबाना आजमी मानती हैं कि कलाकारों को अपनी आवाज बुलंद करनी ही चाहिए, चूंकि लोग जानते हैं कि अगर उनकी आवाज बुलंद होगी और वे जो बातें कहेंगे. लोगों पर इन बातों का फर्क पड़ता है और इस वजह से उनकी आवाज को दबाया जाता रहा है. मनोज बाजपेयी भी इन्हीं बातों से इत्तेफाक रखते हैं. हकीकत यही है कि अगर कलाकार वाकई अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र नहीं होंगे और लगातार यह मुद्दे सामने आ रहे हैं. इस तरह तो कलाकार या तो बाध्य हो जायेंगे कि वे वाकई सिर्फ अभिनय से सरोकार रखें या फिर वे ऐसे मुद्दों पर अपनी जुबान नहीं खोल पायेंगे. फिर किसी कलाकार से हम क्यों उम्मीद रखते हैं कि आप अपनी बात को खुलेतौर पर दर्शकों के सामने रखे. पूरे देश में जिस तरह का माहौल है, वहां इस बात को यकीन के साथ कहा जा सकता है कि फिल्म इंडस्ट्री ही वह जगह है, जहां आज भी लोग स्वतंत्रता से जात-पात से ऊपर उठ कर न सिर्फ काम करते हैं, बल्कि उस तरीके से सोचते भी हैं और यह स्वतंत्रता बरकरार रहनी जरूरी है.अशोक कुमार और मंटो में यूं ही गहरी दोस्ती नहीं हुई थी.दिल्ली में हाल ही में हुए रेख्ता कार्यक्रम से सबक लिया जाना चाहिए और ऐसी गतिविधियों की लोकप्रियता को बढ़ावा देना चाहिए.
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20160217
कलाकार की बातें
शाहरुख खान की फिल्म रईस की शूटिंग गुजरात के अहमदाबाद में हो रही है और वहां से लगातार खबरें आ रही हैं कि किस तरह उनकी गाड़ी को या उनके नाम पर हंगामा मच रहा है. गौरतलब है कि शाहरुख खान ने कुछ महीनों पहले असहिष्णुता के मुद्दे को लेकर अपनी बात रखी थी. इसका सीधा असर उनकी फिल्म दिलवाले पर भी हुआ है. सोशल नेटवर्र्किंग साइट्स पर भी लगातार उन्हें और आमिर खान को लेकर हंगामा बरप रहा है. लोग आमिर खान और शाहरुख खान दोनों की फिल्मों के बहिष्कार की बातें कर रहे हैं. शबाना आजमी मानती हैं कि कलाकारों को अपनी आवाज बुलंद करनी ही चाहिए, चूंकि लोग जानते हैं कि अगर उनकी आवाज बुलंद होगी और वे जो बातें कहेंगे. लोगों पर इन बातों का फर्क पड़ता है और इस वजह से उनकी आवाज को दबाया जाता रहा है. मनोज बाजपेयी भी इन्हीं बातों से इत्तेफाक रखते हैं. हकीकत यही है कि अगर कलाकार वाकई अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र नहीं होंगे और लगातार यह मुद्दे सामने आ रहे हैं. इस तरह तो कलाकार या तो बाध्य हो जायेंगे कि वे वाकई सिर्फ अभिनय से सरोकार रखें या फिर वे ऐसे मुद्दों पर अपनी जुबान नहीं खोल पायेंगे. फिर किसी कलाकार से हम क्यों उम्मीद रखते हैं कि आप अपनी बात को खुलेतौर पर दर्शकों के सामने रखे. पूरे देश में जिस तरह का माहौल है, वहां इस बात को यकीन के साथ कहा जा सकता है कि फिल्म इंडस्ट्री ही वह जगह है, जहां आज भी लोग स्वतंत्रता से जात-पात से ऊपर उठ कर न सिर्फ काम करते हैं, बल्कि उस तरीके से सोचते भी हैं और यह स्वतंत्रता बरकरार रहनी जरूरी है.अशोक कुमार और मंटो में यूं ही गहरी दोस्ती नहीं हुई थी.दिल्ली में हाल ही में हुए रेख्ता कार्यक्रम से सबक लिया जाना चाहिए और ऐसी गतिविधियों की लोकप्रियता को बढ़ावा देना चाहिए.
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