रितेश देशमुख ने हाल ही में फिल्म बालक पलक का निर्माण किया था. इस फिल्म से न सिर्फ लोकप्रियता हासिल की, बल्कि कई अंतरराष्टÑीय फिल्मोत्सव में भी सराही गयी. अब फिर से रितेश देशमुख ने एक और मराठी फिल्म निर्देशन की परिकल्पना की है. इस बार वह एक स्पोर्ट्स पर्सन पर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे हैं. दरअसल, रितेश देशमुख स्वयं मराठी हैं. और उन्होंने एक बेहतरीन सोच के साथ अपने प्रोडक् शन हाउस का निर्माण किया है. वे अपने प्रोडक् शन हाउस के माध्यम से लगातार बेहतरीन काम कर रहे हैं. वे अच्छी और स्तरीय फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं. उनकी हिंदी फिल्मों को देख कर रितेश की सोच का अनुमान लगाना बिल्कुल अनुचित होगा. चूंकि रितेश मराठी सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए मुख्य रूप से तत्पर हैं और काफी काम कर रहे हैं. दरअसल, सिनेमा की दुनिया में ऐसे सोच के लोगों की सख्त जरूरत है. पैसे से सिनेमा बन जाता तो हर कोई फिल्में बना रहा होता. लेकिन रितेश धन के साथ अपनी क्रियेटिविटी को भी कायम कर रहे हैं और उन्हें प्रोत्साहन भी मिल रहा है. यही वजह है कि आज मराठी सिनेमा इतना लोकप्रिय है और स्तरीय भी. यहां सार्थक फिल्में बन रही हैं और क्षेत्रीय भाषा को सम्मान भी मिल रहा है. लेकिन अफसोस की बात यह है कि बिहार झारखंड में ऐसा काम नहीं हो रहा . ऐसा नहीं है कि वहां के लोगों में सिनेमा को लेकर वह सोच नहीं है. नितिन चंद्रा जैसे एंटरप्रेनर निर्देशक ने देसवा बनायी. भोजपुरी की यह स्तरीय फिल्मों में से एक है. फिल्म विषयपरक है. लेकिन उन्हें वह मदद या प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा कि वह भोजपुरी सिनेमा को आगे बढ़ाये. सौरभ कुमार मैथिली में अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन इन सभी को जो सम्मान और सहयोग मिलना चाहिए. वह नहीं मिल पा. नतीजन वैसी फिल्में नहीं बन पा रही हैं.
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20130629
रितेश की बेहतरीन पहल
रितेश देशमुख ने हाल ही में फिल्म बालक पलक का निर्माण किया था. इस फिल्म से न सिर्फ लोकप्रियता हासिल की, बल्कि कई अंतरराष्टÑीय फिल्मोत्सव में भी सराही गयी. अब फिर से रितेश देशमुख ने एक और मराठी फिल्म निर्देशन की परिकल्पना की है. इस बार वह एक स्पोर्ट्स पर्सन पर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे हैं. दरअसल, रितेश देशमुख स्वयं मराठी हैं. और उन्होंने एक बेहतरीन सोच के साथ अपने प्रोडक् शन हाउस का निर्माण किया है. वे अपने प्रोडक् शन हाउस के माध्यम से लगातार बेहतरीन काम कर रहे हैं. वे अच्छी और स्तरीय फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं. उनकी हिंदी फिल्मों को देख कर रितेश की सोच का अनुमान लगाना बिल्कुल अनुचित होगा. चूंकि रितेश मराठी सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए मुख्य रूप से तत्पर हैं और काफी काम कर रहे हैं. दरअसल, सिनेमा की दुनिया में ऐसे सोच के लोगों की सख्त जरूरत है. पैसे से सिनेमा बन जाता तो हर कोई फिल्में बना रहा होता. लेकिन रितेश धन के साथ अपनी क्रियेटिविटी को भी कायम कर रहे हैं और उन्हें प्रोत्साहन भी मिल रहा है. यही वजह है कि आज मराठी सिनेमा इतना लोकप्रिय है और स्तरीय भी. यहां सार्थक फिल्में बन रही हैं और क्षेत्रीय भाषा को सम्मान भी मिल रहा है. लेकिन अफसोस की बात यह है कि बिहार झारखंड में ऐसा काम नहीं हो रहा . ऐसा नहीं है कि वहां के लोगों में सिनेमा को लेकर वह सोच नहीं है. नितिन चंद्रा जैसे एंटरप्रेनर निर्देशक ने देसवा बनायी. भोजपुरी की यह स्तरीय फिल्मों में से एक है. फिल्म विषयपरक है. लेकिन उन्हें वह मदद या प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा कि वह भोजपुरी सिनेमा को आगे बढ़ाये. सौरभ कुमार मैथिली में अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन इन सभी को जो सम्मान और सहयोग मिलना चाहिए. वह नहीं मिल पा. नतीजन वैसी फिल्में नहीं बन पा रही हैं.
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