फिल्म रांझणा का कुंदन अपनी महबूबा के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है. वह जोया से इतनी मोहब्बत करता है. उसे धर्म जाति या किसी भी तरह की सरहद सरहद नहीं लगती. कुंदन अपनी प्रेमिका के प्यार में अपनी हथेलियों को कांट लेता है. लेकिन उसे उस वक्त उतना दुख नहीं होता. जितना दुख उसे तब होता है, जब उसे पता चलता है कि जोया कुंदन से प्यार ही नहीं करती. रांझणा ने तीन दिनों में ही अच्छी कमाई कर ली है. फिल्म को दर्शकों का बेइतहां प्यार मिल रहा है. इसकी वजह यही है कि इस फिल्म से हर आम लड़के, हर आम जिंदगी खुद को कनेक्ट कर पा रहे हैं. कुंदन सिर्फ रांझणा का कुंदन नहीं है. बल्कि वह उन तमाम छोटे शहरों की गलियों में रहनेवाले प्यार को इबादत समझने वालों का प्रतिनिधित्व करता है. छोटे शहरों में प्यार यूं ही गलियों में पनपता है. लेकिन कई बार अंत वही होता है. जो कुंदन के साथ हुआ.फिल्म में एक जगह जोया कहती है कि मैं क्या कुंदन जैसे जाहिल गवार से शादी कर लूं. उससे प्यार कर लूं? जोया की यह बातें दर्शाती हैं कि भले ही लोग लंबी लंबी बातें करें कि प्यार कोई उम्र कोई हैसियत नहीं देखता. लेकिन हकीकत तो यही है कि प्यार हैसियत का भी मोहताज होता है. खासतौर से छोटे शहरों में कई कुंदन का प्यार यूं ही अधूरा रह जाता है. चूंकि या तो उनकी हैसियत नहीं होती. चूंकि प्राय: लड़की के परिवार लड़के का दिल नहीं, उसका बैंक बैलेंस देखते हैं. उन्हें अपनी बेटी के प्यार में पागल लड़का नहीं, बल्कि सरकारी कर्मचारी वाला दामाद ही चाहिए. दरअसल, रांझणा के माध्यम से इस सोच को बखूबी परदे पर दर्शाया गया है और वह प्रासंगिक भी है. यही वजह है कि छोटे शहर में यह फिल्म और पसंद की जा रही है. हिंदी सिनेमा में पहले भी रांझणों पर फिल्म बनती रही है. लेकिन यह रांझणा सबसे जुदा है क्योंकि यह सबके बीच का है.
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20130629
यह रांझणा जुदा है
फिल्म रांझणा का कुंदन अपनी महबूबा के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है. वह जोया से इतनी मोहब्बत करता है. उसे धर्म जाति या किसी भी तरह की सरहद सरहद नहीं लगती. कुंदन अपनी प्रेमिका के प्यार में अपनी हथेलियों को कांट लेता है. लेकिन उसे उस वक्त उतना दुख नहीं होता. जितना दुख उसे तब होता है, जब उसे पता चलता है कि जोया कुंदन से प्यार ही नहीं करती. रांझणा ने तीन दिनों में ही अच्छी कमाई कर ली है. फिल्म को दर्शकों का बेइतहां प्यार मिल रहा है. इसकी वजह यही है कि इस फिल्म से हर आम लड़के, हर आम जिंदगी खुद को कनेक्ट कर पा रहे हैं. कुंदन सिर्फ रांझणा का कुंदन नहीं है. बल्कि वह उन तमाम छोटे शहरों की गलियों में रहनेवाले प्यार को इबादत समझने वालों का प्रतिनिधित्व करता है. छोटे शहरों में प्यार यूं ही गलियों में पनपता है. लेकिन कई बार अंत वही होता है. जो कुंदन के साथ हुआ.फिल्म में एक जगह जोया कहती है कि मैं क्या कुंदन जैसे जाहिल गवार से शादी कर लूं. उससे प्यार कर लूं? जोया की यह बातें दर्शाती हैं कि भले ही लोग लंबी लंबी बातें करें कि प्यार कोई उम्र कोई हैसियत नहीं देखता. लेकिन हकीकत तो यही है कि प्यार हैसियत का भी मोहताज होता है. खासतौर से छोटे शहरों में कई कुंदन का प्यार यूं ही अधूरा रह जाता है. चूंकि या तो उनकी हैसियत नहीं होती. चूंकि प्राय: लड़की के परिवार लड़के का दिल नहीं, उसका बैंक बैलेंस देखते हैं. उन्हें अपनी बेटी के प्यार में पागल लड़का नहीं, बल्कि सरकारी कर्मचारी वाला दामाद ही चाहिए. दरअसल, रांझणा के माध्यम से इस सोच को बखूबी परदे पर दर्शाया गया है और वह प्रासंगिक भी है. यही वजह है कि छोटे शहर में यह फिल्म और पसंद की जा रही है. हिंदी सिनेमा में पहले भी रांझणों पर फिल्म बनती रही है. लेकिन यह रांझणा सबसे जुदा है क्योंकि यह सबके बीच का है.
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