20130629

मैं भी कॉलेज के दिनों में था फुकरे :


आपकी आनेवाली फिल्म फुकरे के बारे में बताएं?
फुकरे कहानी चार ऐसे लड़कों की कहानी है  जो कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए बहुत बेचैन हैं. वे चारों फुकरे हैं यानी निकम्मे हैं, इसलिए उन्हें कॉलेज में  दाखिला बेने में काफी तकलीफ होती है. लेकिन एडमिशन लेने के लिए वे शॉर्टकट अपनाते हैं और फिर कैसे उनके पैंतरे उनपर ही भारी पड़ते हैं, इसी के आसपास फिल्म की कहानी घूमती है.

त्फरहान इससे पहले आपने दिल चाहता है भी बनाई थी.फिर फुकरे भी दोस्तों के इर्द गिर्द ही घूम रही है. रॉक आॅन भी आपके प्रोडक् शन की ही फिल्म थी. दोस्ती पर फिल्में बनाने की कोई खास वजह?
 इसके पीछे कोई सोची समझी वजह नहीं  ये इत्तेफाक है कि हमारी फिल्में दोस्ती पर आधारित है लेकिन वो सिर्फ इसलिए क्योंकि हमें ये कहानियां पसंद आयी हैं. हमने कभी ये सोचकर फिल्में नहीं बनाई है कि ये दोस्ती के ऊपर कहानी है इसलिए हम यही बनायेंगे. ये कहानी इस योग्य थी कि इस पर फिल्म बनाई जाये. मैं और मेरे दोस्त रितेश भी अपने कॉलेज के दिनों में कुछ इसी तरह जीते थे. सो, यह कहानी मुझे खुद से कनेक्टिंग लगी और लगा कि दर्शक भी कनेक्ट कर पायेंगे.हमारी फिल्में भले ही दोस्ती पर आधारित होती हैं लेकिन ये सभी फिल्मों की कहानी का आधार एक-दूसरे से पूरी तरह से अलग होते हैं. हर कहानी में नयापन लाने की कोशिश करते हैं जिसे दर्शक पसंद करें.

त्रइस फिल्म में सिर्फ नये चेहरे नजर आ रहे हैं. कुछ खास वजह?
 हर स्क्रिप्ट की अपनी डिमांड होती है. इस फिल्म की कहानी के अनुसार हमें नये चेहरों की जरूरत थी. फिल्म में हर अभिनेता अपने किरदार को पूरी तरह से जंच रहा है और सभी ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. मैं भी एक समय पर नया था तो हर अभिनेता को पहला मौका मिलता है उसके बाद ही वो एक स्टार बन पाता है. और ये कलाकार जो फिल्म में हैं ये सभी काफी प्रतिभाशाली अभिनेता हैं और इसलिए इन्हें मौका मिला है.

त्रआपको लगता है कि इस फिल्म से दर्शक खुद को कनेक्ट कर पायेंगे?
अमूमन लोग इस फिल्म से खुद को जोड़ पायेंगे क्योंकि हर इंसान के जीवन में एक न एक दिन ऐसा जरूर आता है जब उन्हें लगता है कि वो किसी लायक नहीं हैं या अपनी मंजिल को वो नहीं पहचान पाते हैं और उसकी खोज में लग जाते हैं. मैं खुद भी ऐसे दौर से गुजर चुका हूं. मेरे हिसाब से हर स्कूल या कॉलेज में जाने वाले युवा इस फिल्म से खुद को जोड़ पायेंगे.

त्रफिल्म का शीर्षक फुकरे अजीबोगरीब है. आधे लोग तो इसके मायने समझते भी नहीं होंगे. कोई खास वजह ऐसा शीर्षक चुनने की?
मुझे नहीं लगता कि लोग इसे नहीं समझ पायेंगे. दिल्ली के लिए आम शब्द है और आज भारत की आधे से ज्यादा आबादी के छात्र तो दिल्ली में पढ़ते ही हैं और अगर दूर भी हैं तो नेटवर्किंग साइट्स की वजह से सभी इस तरह के शब्द से वाकिफ होंगे. वैसे भी ऐसा तो कहीं नहीं लिखा  कि फिल्म का शीर्षक असामान्य नहीं होना चाहिए. बल्कि मुझे ऐसा लगता है कि दर्शकों के अंदर ऐसे शीर्षक ही जिज्ञासा पैदा करते हैं. उन्हें भी तो मजा आना चाहिए कि आखिर इस शब्द का मतलब क्या है और फिर वो अपनी ओर से भी थोड़ी कोशिश करें जानने की. नये शब्द और नयी चीजें हर कोई सीखना चाहता है. 'फुकरे' शब्द फिल्म को परिभाषित करता है. दबंग फिल्म के रिलीज होने के पहले कितने लोगों ने इस शब्द को सुना था. जब फिल्म रिलीज हुई उसके बाद लोगों ने इस शब्द का मतलब समझा और हर बात में इसका इस्तेमाल भी करने लगे.

त्रआप फिल्म के निर्माता हैं तो शूटिंग के दौरान आपका कितना हस्तक्षेप रहा?
 मैं इस फिल्म का निमार्ता हूं और बतौर निमार्ता मुझे जितना योगदान करना चाहिए था वो मैंने किया है. मैंने मृग जो कि हमारे निर्देशक हैं उनसे पहले ही बोल दिया था कि मैं सेट पर नहीं आऊंगा. मैं नहीं चाहता था कि उन्हें किसी प्रकार का कोई दबाव महसूस हो मेरे वहां मौजूद होने पर.  एक निर्देशक को आजादी देना और उन पर भरोसा करना बहुत जरूरी है. मैं खुद निर्देशक हूं तो इस बात को अच्छी तरह समझ सकता हूं.

त्रआपकी आनेवाली फिल्में?
विद्या बालन के साथ आप जल्द ही मुझे अभिनय करते देखेंगे. इसके अलावा हमारे बैनर से और भी युथफुल फिल्में दर्शकों को देखने मिलेंगी. 

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