20130629

फिल्म को रोमांचित बनाती है एडिटिंग


त्रशॉटकर्ट रोमियो से जुड़ने का संयोग कैसे बना?
आशुतोष ग्वारिकर जैसे परफेक् शनिष्ट निर्देशक की फिल्म खेले हम जी जान से के एडिटर रह चुके दिलीप देव 21 जून को रिलीज हो रही फिल्म शॉटकर्ट रोमियो के भी फिल्म एडिटर हैं. दिलीप देव झारखंड से हैं. खेले हम...के अलावा उन्होंने वांटेड फिल्म का भी संपादन किया था.  शॉटकर्ट रोमियो के बहाने दिलीप देव ने फिल्म एडिटिंग के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं व बारीकियों के बारे में बातचीत की.
मेरे एक्जीक्यूटिव प्रोडयूसर लॉरेंस डिसूजाने मेरी फिल्म के निर्देशक सुशी गणेशन से मेरी मुलाकात करायी थी और मुलाकात होने के बाद ही हम दोनों की समझ काफी मिलने लगी थी. जब हमने काम शुरू किया तो काम करने में और भी मजा आया. शॉटकर्ट रोमियो उन फिल्मों में से एक है, जिनमें आपको एडिटिंग के कई पैटर्न नजर आयेंगे. इस फिल्म में सिर्फ स्टोरी टेलिंग नहीं है.

त्रशॉटकर्ट रोमियो की एडिटिंग की क्या खास बातें रहीं?
सबसे खास बात तो यह रही कि फिल्म में बेहद खूबसूरत लोकेशन को फिल्माया गया है. इस फिल्म की शूटिंग केन्या में भी हुई है. मुंबई को हाल के दिनों में जितनी खूबसूरती से इस फिल्म में कैप्चर किया गया है. वह अदभुत है. आप फिल्म देखेंगी तो खुद अनुमान लगा सकती हैं.सुशी ने बेहतरीन काम किया है और चूंकि उन्होंने खूबसूरती से कैप्चर किया है तो उन्हें हमें एडिटिंग के दौरान परदे पर दर्शाने में मजा आया है. शॉटकर्ट रोमियो एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो शॉर्टकर्ट रास्ता अपना कर कैसे सबकुछ हासिल करना चाहता है. कहानी कई जगहों पर घूमती है तो एडिटिंग के लिए फिल्म में काफी आॅप्शन थे. एक्सपेरिमेंट करने के लिए.
त्र इन दिनों जिस तरह की फिल्में आ रही हैं. इसमें एडिटिंग की क्या भूमिका है?
इन दिनों जो भी फिल्में आ रही हैं, वे पूरी तरह व्यवसायिक है. और पहले फिल्मों का मतलब होता था कि बस कहानी कहना है. लेकिन अब ऐसा नहीं है. आप सबकुछ नहीं दिखा सकते. आपको वही दिखाना है जो दर्शक को बोर न करे. ऐसे में एडिटिंग की अहमियत बहुत बढ़ जाती है. चूंकि एडिटिंग के माध्यम से ही आप कई बेकार की चीजों को फिल्म से अलग करके. दर्शकों को रोचक चीजें प्रस्तुत करें. फिल्मों में रोमांच को बरकरार रखने का काम एडिटिंग ही कर सकती है. फिल्म के पेस को बरकरार रखना. उसका ट्रीटमेंट ये सारी चीजें एडिटिंग पर ही होती है. फिल्मों की शूटिंग तो कई घंटों की होती है. लेकिन उसे ढाई घंटे की एक रोचक फिल्म बनाना. और साथ ही जर्क न लगने देने के काम एडिटर का होता है.

त्रहाल के दिनों की कुछ फिल्मों की बात करें, तो किन फिल्मों की एडिटिंग बेहतरीन रही है?
मुझे डेविड धवन की फिल्म चश्मे बद्दूर काफी पसंद आयी. एडिटिंग के लिहाज से. इस फिल्म में कहानी बहुत छोटी है. सो, कहीं भी बोर होने का मौका नहीं दिया है डेविड धवन ने. वे खुद भी एडिटर रहे हैं तो उन्हें इस बात का अनुमान रहता है कि दर्शकों को कैसे बोरियत से बचाया जाये. आप फिल्म देखें तो फिल्म के गाने, कहानी कहीं भी आपको बोर नहीं करते. हॉलीवुड फिल्मों की बात करें. तो वे जबरदस्त काम कर रहे हैं एडिटिंग के लिहाज से. आयरम मैन 3 जैसी फिल्में एडिटिंग से ही बड़ी फिल्म बन जाती है.स्काईफॉल में भी कमाल की एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है
त्रहिंदी फिल्मों में इन दिनों एडिटिंग की कौन सी नयी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है?
इन दिनों हिंदी फिल्मों में सीजीआइ का बोलबाला है और आगे भी रहेगा. फिल्में क्रोमा में शूट होती हैं ज्यादातर. फिर उसे सीजीआइ तकनीक से इनहांस किया जाता है. लेकिन दर्शक उसे देख कर यह अनुमान नहीं लगा पाते कि वास्तविकता में वह किसी लोकेशन पर शूट नहीं हुई है. यह सीजीआइ का कमाल है और आनेवाले समय में इसका  प्रभाव और बढ़ेगा.
त्रआपने आशुतोष ग्वारिकर के साथ खेल हम जी जान से में काम किया है. कैसा रहा था आपका एडिटर व निर्देशक वाला संबंध
निर्देशक किसी फिल्म का हसबैंड होता है तो एडिटर उसकी व्हाइफ़ जितनी खूबसूरती से निर्देशक फिल्म के शॉट्स लाता है उसे बखूबी पकाने का नाम एडिटर का होता है. आशु सर के साथ काम करने में बहुत मजा आया. सबसे खास बात यह थी कि इन दिनों बाजार से प्रभावित होकर कहानी के साथ कांप्रमाइज किया जाता है. लेकिन उनके साथ ऐसा नहीं था. वे कहानी के साथ कांप्रमाइज नहीं करते थे. किसी बाजार के दबाव में नहीं रहते थे. इसलिए मुझे वहां प्रयोग करने के आॅप्शन ज्यादा मिले. मैं किसी बंदिश में रह कर काम नहीं किया करता था. दूसरी बात वे अपने काम को लेकर स्पष्ट होते थे कि उन्हें क्या चाहिए क्या नहीं और एक एडिटर के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि उसे क्या चाहिए और क्या फिल्म में नहीं लेना है. 

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