20130629

दर्शकों को एंटरटेन करना मुख्य मकसद : श्रूति हसन


श्रूति हसन दक्षिण फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान स्थापित कर चुकी हैं. वे बेहतरीन अभिनय के साथ साथ अपनी गायिकी को लेकर भी हमेशा गंभीर रही हैं और पार्श्व गायन में हमेशा योगदान करती रही हैं. हिंदी फिल्मों में इन दिनों वे लगातार नजर आ रही हैं. इस बार वह प्रेम कहानी में दर्शकों के सामने होंगी.

श्रूति, आाप हिंदी सिनेमा में भी लगातार नजर आ रहंी हैं और दक्षिण भी आपने फिल्में करना कायम रखा है.तो कोई खास योजना बना रखी है. क्या कभी पूरी तरह बॉलीवुड शिफ्ट होने का ख्याल आया है?
बिल्कुल नहीं, आइ लव साउथ. हां, मगर मैं बॉलीवुड की फिल्मों में काम करना इसलिए पसंद करती हूं क्योंकि यह भी अलग दुनिया है. यहां ग्लैमर है. लोगों तक आपकी पहुंच ज्यादा है. आप अपने तरीके से यहां की जिंदगी जी सकते हो. फिल्में दर्शकों को पसंद आती है तो अपने फैन तक पहुंचने का जरिया है बॉलीवुड . लेकिन मैं दक्षिण कभी नहीं छोड़ूंगी.

 दक्षिण सिनेमा इंडस्ट्री में और बॉलीवुड में आपको क्या विभिन्नताएं नजर आती हैं?
मेरे लिए फिल्मों में काम करने का मतलब उसकी भाषा से नहीं है. ईस्ट हो या वेस्ट हो या नॉर्थ या साउथ. विभिन्नता फिल्म इंडस्ट्री में नहीं होती. बल्कि मुझे लगता है कि हर फिल्म एक दूसरे से अलग होती है. हर फिल्म का सेटअप एक दूसरे से अलग होता है. हर प्रोडक् शन हाउस की फिल्म एक दूसरे से अलग होती है. हर फिल्म मेकर का अप्रोच अलग होता है. तो मैं मानती हूं कि डिफरेंस तो फिल्म के बदलते ही आ जाते हैं. ऐसे में स्टेट उतना मायने नहीं रखता.

गों का मानना है कि साउथ फिल्म इंडस्ट्री के लोग अधिक प्रोफेशनल होते हैं. इस बात में कितनी सच्चाई है?
जैसा कि मैंने कहा कि बांबे हो या तेलुगु इंडस्ट्री हो या फिर तमिल. फिल्मों की सोच, फिल्मों में काम करने का तरीका, उसके प्रोडक् शन हाउस पर निर्भर करता है. और मुझे लगता है कि साउथ में लोगों की दुनिया पूरी तरह से सिर्फ सिनेमा नहीं है. इसलिए वे लोग अपना काम जल्द से जल्द पूरा करते हैं ताकि वे बाकी काम में भी वक्त दें. अब आप इस प्रोफेशनलिज्म का नाम दे सकती हैं.लेकिन हकीकत में हर सिनेमा इंडस्ट्री में प्रोफेशनल अन प्रोफेशनल लोग होते ही हैं.
आप किसी हिंदी फिल्म में लगभगं दो सालों के बाद  नजर आ रही हैं, तो इस दौरान क्या किसी फिल्म का आॅफर नहीं मिला या फिर आपने किन्हीं कारणों की वजह से वे फिल्में नहीं की.
एग्जैक्टली, मुझे फिल्में मिल रही थीं. लेकिन जिस तरह की स्क्रिप्ट आ रही थी. मुझे पसंद नहीं आ रही थी.इसके अलावा इन दो सालों में साउथ में मेरे कई कमिटमेंट्स थे, जिन्हें मुझे पूरा करना था.

श्रूति, आपका पूरा परिवार हिंदी सिनेमा से जुड़ा रहा है. तो आपके फिल्मों के चुनाव में उनकी क्या भूमिका रहती है?
सच कहूं तो बिल्कुल नहीं. मेरे माता पिता की दखल या उनका रोल तब तक ज्यादा था जब मैं ग्रोइंग एज में थी.  लेकिन अब मैं अपने डिसीजन खुद लेती हूं.  मैं अब पूरी तरह से इंडिपेंडेंट हो चुकी हूं और इंडिपेंडेंट रूप से ही अपनी फिल्मों का चुनाव करती हूं. मुझे पता है कि मैं क्या अच्छा काम कर सकती हूं क्या नहीं. सो, मैं खुद अपने किरदारों का चुनाव करती हूं.

आप रम्मैया वस्तावैसा  इस फिल्म में इंडियन लुक में हैं तो कितना अलग रहा आपका अनुभव
मैंने साउथ में काफी इंडियन लुक किया है. वहां की फिल्मों में तो मुझे लगता है कि ज्यादा इंडियन लुक को तवज्जो देते हैं. ये यूं ही यहां की मीडिया में बात फैलाई जा रही है कि मैं पहली बार इंडियन लुक में नजर आ रही हूं. जबकि हकीकत यही है कि मैंने पहले भी ऐसे कई लुक में काम किया.

गिरीश कुमार की यह पहली फिल्म है वह तो न्यू कमर हैं. तो ऐसे में जबकि आप इस फिल्म की अभिनेत्री हैं तो आप पर अधिक जिम्मेदारी है फिल्म को सफल कराने को लेकर?
मुझे लगता है कि एक फिल्म की पूरी जिम्मेदारी उसके निर्देशक की होती है. उसके कैसे कैरेक्टर्स होते हैं. उन्हें किस तरह प्रेजेंट करना है. यह सब देखना उनका मामला है. हमारी जिम्मेदारी बतौर कलाकार बस इतनी ही होती है कि हम एक् श्न और कट के बीच में 100 पर्सेंट अपनी मेहनत दिखा पायें. तो वही मेरी जिम्मेदारी है. और गिरीश न्यूकमर हैं. लेकिन पहली फिल्म में तो हर कोई अधिक मेहनत करता है तो मुझे लगता है कि दर्शक पसंद करेंगे उन्हें. जहां तक बात है फिल्मों के सफल होने की तो वह मेरी जिम्मेदारी नहीं. इसके बारे में निर्माता सोचें. मैं क्यों.
गिरीश फिल्म के निर्माता के बेटे हैं तो कहीं आपको अपने किरदार को लेकर यह बात महसूस हुई कि फिल्म में गिरीश को फोकस करने की कोशिश की जायेगी?
जी मुझे कहीं भी ऐसा नहीं लगा. सच कहूं तो रम्मैया वस्तावैया की पूरी कहानी ही मेरे किरदार सोना के इर्द गिर्द घूमती है. गिरीश का जो कैरेक्टर है. वह एनआरआइ का है. गिरीश भारत आते हैं और फिर सोना से मिलते हैं और उसी की दुनिया में चले जाते हैं. मुझे लगता है कि मैं सेंट्रल कैरेक्टर में हूं. मैं फिल्म में सिंपल सी लड़की का किरदार निभा रही हूं. सिंपल सी दुनिया की लड़की सोना से गिरीश मिलते हैं.

बतौर निर्देशक प्रभुदेवा के साथ आपका अनुभव कैसा रहा?
बतौर निर्देशक प्रभुदेवा बेहतरीन निर्देशक हैं. उन्हें अपने किरदारों के बारे में पता होता है कि उसकी क्या खूबियां हैं और उसका इस्तेमाल वह किस तरह से उनकी खूबियों के साथ साथ कैरेक्टर की खूबियों को जोड़ते हैं.

आप म्यूजिक कंपोजर भी हैं. सिंगर भी हैं और एक्टर भी तो किसमें ज्यादा मजा आता है?
मुझे लोगों को एंटरटेन करने में ज्यादा मजा आता है.फिर चाहे वह डांस हो, संगीत हो या एक्टिंग हो. मैं एंटरटेनमेंट फैमिली से हूं तो मुझे खुशी मिलती है कि मैं लोगों को एंटरटेन करूं.

फिल्म का शीर्षक रम्मैया वस्तवैया है तो यह किस तरह कहानी को सार्थक करता है?
फिल्म में हीरो का नाम राम है. तो इसलिए इस फिल्म का नाम रम्मैया वस्तावैया रखा गया है. सिंपल.

पापा कमल हसन की फिल्मों में अभिनय करने के बारे में कभी नहीं सोचा?
बात पापा की स्क्रिप्ट की नहीं है. जो पापा बनाते हैं. वह मुझे दर्शक के रूप में पसंद है. लेकिन स्क्रिप्ट चुनते वक्त मैं खुद की सुनती हूं. जो कर पाऊंगी हमेशा वही चुनूंगी.

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