20130118

खोते ख्वाब



हर दिन कुछ न कुछ  ख्वाब देखती हूँ 
कुछ अच्छे कुछ बुरे 
बंद आँखों में वे कहीं खो जाते हैं 
किसी कोने में 
लुका छिपी  खेलते ख्वाब 

जानकर भी बनती हूँ अनजान 
खुली आँखों से उन ख्वाबों के खोज में लग जाती हूँ 
कोने कोने में, जर्रे जर्रे में। 

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