20130118

मेरे परिवार में हमेशा महिलाओं की चली है : सुधीर मिश्र


हजारों ख्वाहिशें ऐसी, ये साली जिंदगी जैसी अलग विषयों की फिल्मों के निर्देशन के बाद सुधीर मिश्रा इस बार इनकार लेकर आये हैं. इनकार आॅफिस परिसर में महिलाओं के साथ हो रहे सेक्सुअल हैरेशमेंट के मुद्दे पर आधारित फिल्म है. सुधीर की यह खासियत रही है कि वह फिल्मों से इतर भी सामाजिक मुद्दों से सरोकार रखते हैं. शायद यही वजह है कि उनकी फिल्मों में वह अस्तित्व, वह हकीकत नजर आती है. आखिर एक लखनऊ का सामान्य सा लड़का कैसे मुंबई आया और फिर कैसे फिल्में बनाने लगा, इनकार जैसी फिल्मों के विषय कैसे जेहन में आती हैं... ऐसे तमाम सवालों के जवाब दिये.

सुधीर की फिल्मों की खासियत रही है कि वह अभिनेत्रियों को केवल आयटम के रूप में फिल्मों में इस्तेमाल नहीं करते. 

सुधीर, शुरुआती दौर से ही जब भी आप फिल्में बनाते आये हैं. आपके विषय बिल्कुल आम होते हुए भी आम नहीं होते. तो इनकार जैसे विषय पर फिल्म बनाने की बात कैसे जेहन में आयी.
देखिए, मैं शुरू से जिस माहौल में पला बढ़ा हूं. वहां हमेशा महिलाओं को शीर्ष पर रखा जाता रहा है. फिर चाहे वह मेरी मां हो या मेरी दादी या नानी. ऐसे में जब मैं परिवार के बाहर आकर देखता हूं और जो स्थिति है वर्तमान समाज की देखता हूं तो थोड़ी खोफ्त तो होती ही है. हम महिलाओं को क्यों बराबरी का दर्जा नहीं दे सकते. क्यों उन्हें हीन मानते हैं. दयनीय मानते हैं. जबकि मैं तो मानता हूं कि उनसे स्ट्रांग कोई है ही नहीं. यही वजह है कि मेरी फिल्मों में महिलाओं को अहमियत देता हूं. लेकिन ऐसा मैं कुछ महान काम नहीं करता. ये मेरी नीयत में है. स्वभाव में है और इसमें कुछ बुरा नहीं है. ऐसे में जबकि मैं फिल्मकार हूं तो मेरा दायित्व है कि अपने इस स्वभाव की थोड़ी छवि तो लोगों के सामने प्रस्तुत करूं. इनकार का विषय मेरे पास मेरे खास दोस्त मनोज त्यागी लेकर आये थे. लेकिन उन्होंने सिर्फ ढांचा दिया था. मुझे लगा इस पर विस्तार से काम होना चाहिए तो मैंने उन्हें काम सौंपा. फिर धीरे धीरे कहानी तय हुई.
अर्जुन रामपाल और चित्रांगदा ही जेहन में क्यों आये?
दरअसल, यह कहानी ऐसी है. जिसमें आपको जिस भी महिला को दर्शाना था बतौर अभिनेत्री. वह डरी सहमी सी नहीं दिखनी चाहिए. कांफिडेंट लगनी चाहिए. इंडिपेंडेंट लगनी चाहिए. लेकिन साथ ही उसमें खूबसूरती भी होनी चाहिए. यह सारी क्वालिटीज मुझे चित्रांगदा में नजर आयी. चित्रांगदा जिस तरह की अभिनेत्री हैं, उन्हें लड़कियां भी पसंद करती हैं. वह ग्लैमरस भी हैं और एट द सेम टाइम वह बिल्कुल घर की लड़की की तरह दिखती हैं तो मुझे लगा कि मेरे किरदार माया के लिए वही सबसे परफेक्ट होंगी. अर्जुन को लेने की खास वजह यह थी कि मैं काफी दिनों से उनके साथ कोई फिल्म करना चाहता था. वह मुझे बतौर एक्टर प्रभावित करते हैं. उनकी फिल्में देखी है मैंने. खासतौर से चक्रव्यूह में उन्होंने बेहतरीन काम किया है. वर्सेटाइल लगता है अर्जुन. मेरा जो किरदार है एक सीइओ का. उसमें इगो, इमोशन, बेबसी सबकुछ झलकाना था. अर्जुन में वह बात थी तो मैंने दोनों का साथ लिया.
आॅफिस परिसर में महिलाएं सुरक्षित नहीं क्या आप ऐसा मानते हैं? क्या ऐसा नहीं होता कि कई बार महिलाएं महिला होने का फायदा उठा कर निर्दोर्षों पर भी अपने मतलब के लिए कसूरवार ठहरा देती है.
आॅफिस परिसर में महिलाएं सुरक्षित हैं या नहीं या कितनी सुरक्षित हैं. यह आॅफिस टू आॅफिस निर्भर करता है. मेरी फिल्म इस मुद्दे पर नहीं है कि आॅफिस परिसर में महिलाएं सुरक्षित ही नहीं. बल्कि इस मुद्दे पर है कि उनके साथ होनेवाले सेक्सुअल हैरेशमेंट पर उनका क्या टेक होता है और साथ ही साथ जैसा कि आपने यह सवाल पूछा कि महिलाएं कई बार जानबूझ कर लोगों को फंसा देती है. मेरी फिल्म में वह पहलू भी प्रस्तुत किया जायेगा. हां, लेकिन यह कोशिश जरूर है कि कम से कम इस फिल्म के माध्यम से कई आॅफिस में काम करनेवाली महिलाएं जो इस बात से वाकिफ ही नहीं कि फ्लर्टिंग को लेकर हैरशमेंट को लेकर कानून है और वह उसका इस्तेमाल कर सकती हैं या कैसे इसका गलत इस्तेमाल भी होता है. यह सारी जानकारियां उन्हें जरूर मिलेगी. और साथ ही साथ मैं कहना चाहूंगा कि जो लोग यह दुहाई देते हैं कि महिलाओं को आॅफिस जाना ही नहीं चाहिए काम करना ही नहीं चाहिए, क्योंकि उनके साथ ऐसा हो रहा है तो वह बकवास है. महिलाएं काम करें. और सबके साथ काम करें. एक आॅफिस में वह माहौल होना चाहिए. आपको आश्चर्य होगा जान कर कि हमने जो सर्वेक्षण करवाया, उसमें हमने गौर किया कि सबसे अधिक केस तो एक बड़ी प्रतिष्ठित आइटी कंपनी जिसका मैं नाम नहीं लूंगा उसमें दर्ज है. जो जब वहां ऐसी स्थिति है तो और जगह पर भी होगी और मैं यह बेफिजूल की बातों को बिल्कुल नहीं मानता कि महिलाएं हैरेश होने के लिए या छोटे कपड़े पहनने या आॅफिस में लड़कों से बात करके उन्हें प्रोवोक करने की कोशिश करती है.
वर्तमान में जो भारत में स्थिति है. महिलाओं की सुरक्षा को लेकर. इस पर आपकी क्या राय है?
मेरा मानना है कि यह सारी समस्या इसलिए है कि हम महिलाओं को बराबरी का दर्जा देते नहीं. मानते नहीं. आप खुद गौर करेंगे कि आप जिसे बराबरी का मानते हैं. उनकी इज्जत करेंगे. हम महिलाओं को शुरू से ही खुद से कम आंकते हैं. खाना बनाना है तो महिलाएं बनायें. सारे काम महिलाएं करें. अरे क्यों करें. अपने काम खुद करो. मैं खुशनसीब हूं कि मुझे ऐसा माहौल मिला, जहां महिलाएं हम से अधिक पॉवरफुल भी. घर के सारे  अहम फैसले लेने में वही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं.
आप जिस परिवार से थे. उसमें फिल्मी माहौल तो न था. फिर आप कैसे फिल्मों से जुड़े?
मेरे पापा गणित के प्रोफेसर थे. मैं उनके साथ कई जगहों पर घूमा करता था. मैं यूनिवर्सिटी कैंपस में ही बड़ा हुआ हूं. तो मैं आम जिंदगी से अलग कॉस्मोपोलेटियन माहौल में रहा कैंपस के. तो उस माहौल का असर रहा मुझपर . कॉलेज में थियेटर बहुत किया करता था. वही से मुझे नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा का चस्का लगा तो वहां चला गया. लेकिन वहां जाकर समझ आया कि एक्टर अच्छा नहीं बन पाऊंगा. फिर विनोद चोपड़ा का साथ मिला. मेरी जिंदगी में विनोद नाम के शख्स की खास अहमियत रही है, क्योंकि विधु विनोद चोपड़ा ने फिल्मों से मिलन कराया तो विधु से मिलवाने वाला था विनोद दुआ. उसने मुझे कहा था कि विधु से इंटरव्यू करो. तो मैंने किया और विधु उसी वक्त से काफी इंप्रेस हो गया था. विधु ने कहा चलो मुंबई. आ गया. फिर उसकी फिल्म में एक्टिंग की . लेकिन लगा कि न मैं एक्टर नहीं बन पाऊंगा. धीरे धीरे कुंदन शाह, केतन मेहता, जावेद अख्तर, शेखर कपूर जैसे लोग मिले और फिल्मों से जुड़ाव हो गया.
हमने सुना आपने कभी पॉलिटिक्स की तरफ भी रुख किया था.
वह मेरी सबसे बड़ी गलती थी. मैं पहली बार किसी अखबार से यह बात शेयर कर रहा हूं कि मैंने पॉलिटिक्स में एंट्री ली थी. अपने नानाजी की वजह से. मैंने एक जगह से चुनाव भी लड़ा था. लेकिन सफल नहीं हो पाया. वैसे जब तय था कि यही आना है तो निश्चित तौर पर यही आता.
आपकी फिल्मों को क्रिटिक की तरफ से तो वाहवाही मिलती है. लेकिन कमर्शियल सक्सेस नहीं मिल पायी अब तक? आपकी प्रतिक्रिया?
देखिए मैं अधिक फिल्में नहीं करता. फिर भी लोग सुधीर मिश्रा को जानते  हैं, यही कामयाबी है. मैं चाहता भी नहीं कि मसाला फिल्में बनाऊं. मेरी नजर में क्रिटिक की भूमिका हमेशा अहम रही है. मेरे कई क्रिटिक दोस्त हैं. क्योंकि मुझे वैसे क्रिटिक अच्छे लगते हैं जो मेरे नजरिया को लोगों तक पहुंचायें. वह भी इस बात को समझे कि मैं क्या दिखाना चाहता हूं. वह कमी बताएं मेरी फिल्मों की लेकिन बेबूनियादी स्तर पर नहीं. कर्मशियल सक्सेस जरूरी तो है ही. लेकिन मिलेगी धीरे धीरे.
आपकी आनेवाली फिल्में
मेहरुनिशा करने जा रहा हूं. फिलहाल. इस पर फिर बाद में बात होगी.
चित्रांगदा के साथ आपने पहली फिल्म से लेकर अब तक काम किया है? बतौर एक्ट्रेस कितना निखरी हैं वह?
 बहुत. खास बात यह है कि उसे पता ही नहीं है कि वह क्या है. वह क्या कमाल कर सकती है. उसे अपनी काबिलियत पर घमंड नहीं है. वह काम करने से पहले बहुत बहस करती है और बार बार चीजें पूछती है. पहली फिल्म से लेकर अब तक उसकी भूख जिंदा है. अच्छी फिल्मों में काम करने को लेकर. वह तो बहुत आगे जायेगी. निश्चित तौर पर.

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