अभिनेत्री सोनम कपूर बॉलीवुड में फैशन को लेकर काफी सजग रहनेवाली अभिनेत्री मानी जाती हैं. जाहिर है. उनके वार्डरॉब में दुनिया के सर्वाधिक बड़े ब्रांड के कपड़े व फैशनेबल चीजें होंगी ही. हाल ही में उनकी इस बात की खूब चर्चा हुई कि सोनम ने अपने कई नये कपड़े, जो उन्होंने कभी पहने भी नहीं थे उसमें गरीब बच्चों को दान किया है. सोनम की मम्मी ने उन्हें समझाया भी कि वे अपने नये और महंगे कपड़े क्यों दे रही हैं. लेकिन उन्होंने किसी की एक न मानी. इस बात को लेकर लगातार पब्लिसिटी बटोरने में कायम रहीं. लोगों ने इस बात को तवज्जो दी कि सोनम ने अपने नये कपड़े दान में दिये. कुछ दिनों पहले ही सोशल नेटवर्किंग साइट पर आर्टिस्ट विधा सौम्या ने दो पंक्तियों में एक बेहद संवेदनशील बात की थी, कि जो खाना हमारे लिए बासी है वह नौकरों के लिए ताजा क्यों? कैसे? दरअसल, हकीकत यही है कि हम दान को दया क्यों मान लेते हैं. कई वर्षों पहले जब सुनामी आया था. बिहार के कई इलाकों में बाढ़ के दौरान बाढ़ पीड़ितों को मदद पहुंचाई जा रही थी. लेकिन उन्हें कपड़ों के रूप में लोगों ने अपने फटे पुराने कपड़े भेजे थे. फिल्म ओह माइ गॉड में परेश रावल ने एक दृश्य में बेहतरीन रूप से इसकी व्याख्या की है. एक सीन में परेश कोर्ट में दर्शाते हैं कि हम किस तरह किसी मंदिर में जाकर एक पत्थर पर दूध की नदियां बहा देते हैं. वह दूध बह कर किसी नदी में जाते हैं या नाले में जाते हैं और बर्बाद होते हैं. लेकिन किसी भिखारी को एक वक्त हम भोजन नहीं करा पाते. हम अगर भोजन देते भी हैं तो जूठन या बासी. दरअसल, दान किसी चीज से नहीं, बल्कि आपकी नीयत से व्यतीत होती है. और यह नीयत कम ही लोगों में होती है. बॉलीवुड में कई हस्तियां हैं, जो दान करने में समर्थ हैं. लेकिन दान के नीयत में असमर्थ हैं.
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20130108
दान की नीयत
अभिनेत्री सोनम कपूर बॉलीवुड में फैशन को लेकर काफी सजग रहनेवाली अभिनेत्री मानी जाती हैं. जाहिर है. उनके वार्डरॉब में दुनिया के सर्वाधिक बड़े ब्रांड के कपड़े व फैशनेबल चीजें होंगी ही. हाल ही में उनकी इस बात की खूब चर्चा हुई कि सोनम ने अपने कई नये कपड़े, जो उन्होंने कभी पहने भी नहीं थे उसमें गरीब बच्चों को दान किया है. सोनम की मम्मी ने उन्हें समझाया भी कि वे अपने नये और महंगे कपड़े क्यों दे रही हैं. लेकिन उन्होंने किसी की एक न मानी. इस बात को लेकर लगातार पब्लिसिटी बटोरने में कायम रहीं. लोगों ने इस बात को तवज्जो दी कि सोनम ने अपने नये कपड़े दान में दिये. कुछ दिनों पहले ही सोशल नेटवर्किंग साइट पर आर्टिस्ट विधा सौम्या ने दो पंक्तियों में एक बेहद संवेदनशील बात की थी, कि जो खाना हमारे लिए बासी है वह नौकरों के लिए ताजा क्यों? कैसे? दरअसल, हकीकत यही है कि हम दान को दया क्यों मान लेते हैं. कई वर्षों पहले जब सुनामी आया था. बिहार के कई इलाकों में बाढ़ के दौरान बाढ़ पीड़ितों को मदद पहुंचाई जा रही थी. लेकिन उन्हें कपड़ों के रूप में लोगों ने अपने फटे पुराने कपड़े भेजे थे. फिल्म ओह माइ गॉड में परेश रावल ने एक दृश्य में बेहतरीन रूप से इसकी व्याख्या की है. एक सीन में परेश कोर्ट में दर्शाते हैं कि हम किस तरह किसी मंदिर में जाकर एक पत्थर पर दूध की नदियां बहा देते हैं. वह दूध बह कर किसी नदी में जाते हैं या नाले में जाते हैं और बर्बाद होते हैं. लेकिन किसी भिखारी को एक वक्त हम भोजन नहीं करा पाते. हम अगर भोजन देते भी हैं तो जूठन या बासी. दरअसल, दान किसी चीज से नहीं, बल्कि आपकी नीयत से व्यतीत होती है. और यह नीयत कम ही लोगों में होती है. बॉलीवुड में कई हस्तियां हैं, जो दान करने में समर्थ हैं. लेकिन दान के नीयत में असमर्थ हैं.
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