20120730

मर्यादापुरुषोतम नायक की छवि


कुछ दिनों पहले निर्देशक अनुराग बसु से बातचीत हो रही थी. बातों बातों में शाइनी अहूजा की बात छिड़ी. बतौर अभिनेता शाईनी को अनुराग ने ही अपनी फिल्म गैंगस्टर से लांच किया था. फिर उन्हें लाइफ इन मेट्रो में भी मौका दिया.वास्तविक जिंदगी में बनी अपनी नकारात्मक छवि के कारण इन दिनों बॉलीवुड में मौके नहीं मिल रहे हैं. अनुराग को इस बात का दुख था कि एक अच्छे अभिनेता को काम नहीं मिल रहे हैं. दरअसल, शाईनी बेहतरीन होते हुए भी अब फिल्मों में एक नायक के रूप में खुद को साबित कर पाने की स्थिति में नहीं हैं. चूंकि भारत में विशेष कर हिंदी सिनेमा के दर्शक अपने फिल्मों के नायक में भी पुरुषोत्तम श्री राम को तलाशते हैं.वे जिस तरह से उन्हें परदे पर देखते हैं. वे चाहते हैं और भारत की आधी आबादी यही सोचती भी है कि फिल्मों में सकारात्मक दिखने और इंसाफ न्याय के लिए लड़नेवाला उनका नायक वास्तविक जिंदगी में भी ऐसा ही होगा. यही वजह है कि अगर इसके विपरीत उन्हें वास्तविक जिंदगी में अपने नायक की नकारात्मक छवि देखने को मिलती है तो वे जिस तरह नायक को पलकों पर बिठाते हैं पलक झपकाते ही उन्हें उतार भी देते हैं. यही वजह है कि अभिनेता अभिनेत्री कभी अपनी गलत छवि लोगों के सामने प्रस्तुत नहीं करना चाहते. विवेक ओबरॉय दो फिल्मों के बाद ही कामयाब हो गये थे. लेकिन उनपर स्टारडम का भूत चढ़ गया था. वे अपने सीनियर के साथ भी बदतमीजी-मारपीट करते थे. आज आलम यह है कि उन्हें न तो मीडिया पसंद करती है न ही दर्शक . एक नायक की परदे से इतर वास्तविक छवि ही होती है कि वह मरने के बाद भी वे उसी रूप में याद किये जाते हैं. दिलीप साहब व कई लीजेंडरी आज सक्रिय नहीं. लेकिन जब भी उनकी बात होती है तो इज्जत से सभी का नाम लिया जाता है. चूंकि अंतत: सम्मान ही  आपकी   सबसे अहम पूंजी होती है.

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