20120709

गांव गलियारों में टैलेंट सर्च



पिछले दिनों मुंबई के एक कॉफी हाउस में दोस्तों के साथ बातचीत के दौरान कैफे के म्यूजिक सिस्टम में बार बार गैंग्स ऑफ वासेपुर के गाने दोहराये जा रहे थे. वहां बैठे अंगरेजीदां युवाओं की डिमांड पर. उस वक्त जेहन में एक बात आयी कि गैंग्स के गीत गंवई होने के बावजूद किस कदर पूरे देश में लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं. इसके गंवईपन के लोकसंगीत की खुशबू किस तरह लोगों के दिलों में घर कर रही है. गैंग्स की संगीतकार स्नेहा खानवेलकर ने इस फिल्म को पूरी तरह से लोक संगीत में रंग दिया है. इसी फिल्म का एक गीत है हमनी के छोड़ के नगरिया हो रामा..यह गीत मुजफ्फरपुर के एक आम लड़के दीपक ने गाया है. जिसकी उम्र अभी बेहद ही कम है. लेकिन इस गीत में उनके आवाज की परिपक्वता नजर आती है. दरअसल, यह लोक संगीत की, व इससे जुड़े लोगों की खासियत है कि वे इसे उस मिठास के साथ गाते हैं कि श्रोता इसे सुनकर मुग्ध हो जाते हैं. वर्तमान के निर्देशकों की सोच की सराहना होनी चाहिए कि वे पूरे देश के दर्शकों को ध्यान में रखते हुए फिल्म बनाने के बावजूद लोक संगीत को प्राथमिकता दे रहे हैं. साथ ही नये आम कलाकारों की भी खोज कर रहे हैं. गैंग्स की खुशबू, रेखा, दीपक ऐसी ही गलियों की खोज है. कुछ इसी तरह नितिन चंद्रा की फिल्म देसवा के गीत चली चली देसवा की ओर गीत को प्रभाकर पांडे नामक कम उम्र के लड़के ने गाया है. प्रभाकर आरा के रहनेवाले हैं. और नितिन ने उनकी आवाज एक कार्यक्रम के दौरान सुना था. इसके बाद उन्होंने अपनी फिल्म में उन्हें गाने का मौका दिया. कभी यूटयूब पर आप गीत सुनें. आप खुद मंत्रमुग्ध हो जायेंगे. संगीत की जमीनी खोज के आविष्कार यही नाम हैं, जो किसी रियलिटी शो या किसी खास पहचान के बावजूद अपनी आवाज से गांव गलियारों से निकल कर पूरी दुनिया में गुंजियमान कर रहे हैं.

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