20120719

शिक्षित भी कराते हैं भ्रूण हत्या : नील





फिल्म आइएम कलाम से सराहना बटोर चुके नील माधव पांडा इस बार फिल्म जलपरी लेकर आये हैं. इस फिल्म में भी मुख्य भूमिका में बच्चे हैं. लेकिन मुद्दा चुना गया है कन्या भ्रूण हत्या पर.
फिल्म व इस फिल्म के विषय पर निर्देशक नील ने विशेष बातचीत की.

नील माधव पांडा हमेशा लीक से हटकर विषय सोचने व उन्हें बिना किसी बड़े स्टारकास्ट के फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं. क्यों अहम है कन्या भ्रूण हत्या जैसे विषयों पर पूरी की पूरी फिल्म बनाना. बता रहे हैं नील

जलपरी का ख्याल
जलपरी एक युवा लड़की की कहानी है. एक लड़की की काल्पनिक जिंदगी है. उस जिंदगी में पानी है.तालाब है, नदियां  हैं. पहाड़ हैं. जैसा कहानियों में होता है. लेकिन वास्तविक रूप से उसने कभी वह दुनिया देखी है. वह कभी गांव नहीं गयी. उसे पहली बार गांव जाने का मौका मिलता है. दिल्ली के पास है वह गांव. वह वहां पहुंचती है और उसके सामने एकएक करके सारे हकीकत सामने दिखते हैं. उसे दिखता है कि किसी गांव में कितनी परेशानी होती है. किस तरह से गांव के लोग इसका सामना करते हैं. वहीं उसे कन्या भ्रूण हत्या के बारे में पता चलता है. वह तय करती है कि वह इसके प्रति आवाज उठायेगी. जलपरी बनाने का ख्याल मेरे मन में उस वक्त आया था. जब मैंने लगातार कई अखबारों में इसके बारे में पढ़ा. लोगों से सुना. मुङो इस मुद्दे ने पूरी तरह झकझोर दिया था. मेरा मानना है कि बतौर निर्देशक यह जिम्मेदारी है मेरी कि मैं इस विषय पर बात करूं तो मैंने इस पर काम शुरू किया.
शूटिंग
इस फिल्म की पूरी शूटिंग हरियाणा के छोटे से गांव में हुई है. और मैंने इस जगह का चुनाव इसलिए किया क्योंकि दुर्भाग्यवश यहां का लिंग अनुपात बेहद असंतुलित है. यहां लगभग हर घर में लोग बोलते थे कि बेटी नहीं बेटा चाहिए. तो मैंने तय किया कि मैं यही शूट करूंगा और यहां के लोगों को समझाने की भी कोशिश करूंगा.
चूंकि फिल्म महिला पर आधारित है. मैंने अपनी फिल्म के क्रू में भी अधिकतर महिलाओं को रखा . ताकि वे वहां के लोगों की संवेदनाओं को समझ सकें.
रिसर्च
इस फिल्म के लिए मैंने लगभग 9 सालों तक रिसर्च किया है. मैं उत्तर भारत के कई जिलों में गया. गांव में गया. वहां रहा. वहां की जिंदगी को समझने की कोशिश की. इसके अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, ओड़िशा में रहा. कई लोग मानते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य कारण असाक्षरता है. लेकिन मेरे रिसर्च से पता चला कि एजुकेटेड लोग भी कराते हैं हत्या. मेरा मानना है कि लोगों को सिर्फ किसी टॉक शो में एक हफ्ते इस पर बात करके इस मुद्दे को बंद नहीं कर देना चाहिए. इस पर फिल्में बननी चाहिए.इस हत्या को रोकने की कोशिश करनी ही होगी और वह हम ही कर सकते हैं. ऐसी फिल्में बना कर मैं जिम्मेदारी निभा रहा हूं. यह मानता हूं मैं.

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