20120719

जिंदगी-मौत के अखाड़े में पहलवान



फिल्म बोल बच्चन में अजय देवगन ने  पहलवान पृथ्वीराज रघुवंशी का किरदार निभाया है. हिंदी फिल्मों में अरसे बाद मुख्य किरदार पहलवान के रूप में आये हैं. वरना, प्राय: पहलवानों को खलनायकों की भूमिका में ही दर्शाया जाता रहा है. फिल्मों में. चूंकि पहलवानों की कद काठी कुछ ऐसी होती है, जिससे लोग डरें. सो, पिछले कई सालों से फिल्मों में जब भी हत्थे-कट्ठे विशालकाय व्यक्ति नजर आये यह मान लिया जाता था कि वह खलनायक ही होगा. लेकिन किसी दौर में पहलवान की नकारात्मक छवि को तोड़ा था अभिनेता दारा सिंह ने. दारा सिंह फिल्मों में आये और उन्होंने अभिनेताओं को पहलवानी सिखायी. असर यह हुआ कि कई फिल्मों में अभिनेता भी कुश्ती करते नजर आने लगे. दरअसल, दारा सिंह उन अभिनेताओं में से रहे  जो वाकई हीरोइज्म का मतलब अपनी ताकत को देते थे. उनकी सोच थी कि अगर हम हीरो हैं तो हीरो जैसा कुछ काम भी करें. मसलन जब अभिनेत्री को सुरक्षा की जरूरत हो तो अभिनेता उनके लिए लड़ने को तैयार रहें. सो, अभिनेताओं को प्रभावशाली होना ही चाहिए. दरअसल, एक प्रभावशाली अभिनेता की छवि उन्होंने ही प्रस्तुत की. यही वजह है कि आज भी जब हम किसी पहलवान को देखते हैं तो हम उनकी तूलना फौरन दारा सिंह  से कर देते हैं. चूंकि दारा सिंह पहलवानी के पर्याय बन चुके हैं. (गोविंदा के एक गीत में भी गोविंदा ने व्याख्या की है पहलवानी में दारा सिंह का चेला हूं). ताउम्र दादा सिंह ने खुद को फिट बनाये रखने में मेहनत की. और इसी का नतीजा है कि आज भी जब वह जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं तो लोगों को विश्वास है कि पहलवान जीत ही जायेगा. चूंकि पहलवानों की कल्पना किसी बीमार व्यक्ति के रूप में नहीं की जा सकती. वे शारीरिक और मानसिक रूप दोनों रूपों से मजबूत माने जाते हैं. दुआ है दादा सिंह भी इस बीमारी को अपनी क्षमता से हरा देंगे.

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