फिल्म गट्टू को अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई महोत्सवों में खास पहचान मिल चुकी है. सपने संजोनेवाले गली मोहल्ले के एक लड़के की कहानी पर आधारित है गट्ट. निर्देशक राजन खोसा इसे अपनी जिंदगी की सबसे अहम फिल्म मानते हैं. गट्टू की परिकल्पना व इसके निर्माण के रोमांचक सफर के बारे में उन्होंने अनुप्रिया अनंत से बातचीत की.20 जुलाई को गट्टू पूरे भारत में रिलीज हो रही है.
राजन खोसा को शॉट फिल्म विशडम के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. राजन खोसा ने बतौर लेखक, निर्देशक, निर्माता यूके, यूरोप के लिए काम किया है. डांस ऑफ द विंड उनकी सबसे चर्चित फिल्म रही है. राजन ने मुंबई में स्लम के बच्चों को देख कर गट्टू की परिकल्पना की थी.
गट्टू की परिकल्पना
मैं मुंबई में कई वर्षो से रहा हूं और मैं यहां के बच्चों को देखता रहता था. स्लम के बच्चों को. एक दिन ऑटो रिक् शा में मैं कहीं जा रहा था. तो इन्हीं बच्चों के बारे में सोच रहा था कि ये बच्चे स्लम में रहते हुए भी कितने स्मार्ट होते हैं. उनके पास कई चीजें करनी की सोच होती है. या यूं कहें तरकीब होती है. तो मुङो लगा कि ऐसे बच्चों पर फिल्म बनानी चाहिए. फिर मैंने इस पर काम करना शुरू किया. इसी क्रम में पता चला कि नंदिता दास भी सीएफएसआइ यानी चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया के तहत कुछ ऐसी ही फिल्मों पर काम करना चाहती हैं तो मैंने उनसे इस बारे में चर्चा की. वे तैयार हो गयीं और हमने काम शुरू किया.
गट्टू की खोज
मैं अपनी फिल्म में एक ऐसे बच्चे की तलाश कर रहा था जो बिल्कुल स्लम का नजर आये लेकिन हो स्मार्ट अपनी सोच से. और इस तरह शुरू हुई गट्ट की खोज़. हमने शुरुआत मुंबई के स्लम से की. लेकिन अफसोस हुआ यह देख कर कि वहां के बच्चे यह सोच रहे थे कि फिल्म में हीरो की तरह काम करना है तो सभी सलमान और शाहरुख की नकल उतार रहे हैं और उनके पेरेंट्स कतार में खड़े रह कर यह सब देखते थे. उन्हें लगता था कि उनके बच्चों को काम मिल जायेगा तो उनका भी भला हो जायेगा. बुरा लगा था यह सब देख कर लेकिन मेरी खोज वहां पूरी हो ही नहीं पायी.
रुड़की आ पहुंचे
फिर फिल्म के लेखक अंकुर तिवारी जो रुड़की में रह चुके हैं. उन्होंने आइडिया दिया कि हमें रुड़की में जाकर ऑडिशन करना चाहिए.चूंकि वे रुड़की में रहे हैं तो उन्हें वहां की पूरी जानकारी थी. दूसरी बात यह थी कि रुड़की छोटी जगह है तो वहां बनावटीपन बिल्कुल नहीं है. चूंकि मैं खुद दिल्ली में रहा हूं और हिमाचल घर है मेरा. तो मैं जानता हूं कि छोटे जगह के लोग कैसे होते हैं. सो, हमारी टीम पहुंची वहां. हमने वहां के बेहद छोटे से स्कूलों को चुना.वहां हमने 12 स्कूलों से फिल्म के लिए चार मुख्य कलाकारों का चयन किया. मोहम्मद समद भी उनमें से एक है. हमने फिल्म की शूटिंग भी रुड़की में ही की. चूंकि कहानी के अनुसार हमें बच्चों को कहीं ले जाने की जरूरत भी नहीं पड़ी और छोटे शहर होने की वजह से हमने बिना किसी शोर शराबे की फिल्म की शूटिंग भी पूरी कर ली.
गट्ट की कहानी
गट्ट की कहानी एक ऐसे बच्चे की कहानी है. जो स्ट्रीट ब्वॉय है. लेकिन उसे पतंग उड़ाना पसंद है. उसका सपना है कि वह दुनिया में सबसे तेज पतंग उड़ानेवाला बन जाये. उसे पता चलता है कि एक स्कूल के छत पर से पतंग उड़ाने में आसानी होगी. एक पतंग है जो सबसे बड़ी पतंग है. उस पतंग का नाम काली है और काली को कांटने का सपना है गट्ट का. तो उस स्कूल की छत तक पहुंचने के लिए स्मार्टली गट्ट जानबूझ कर स्कूल में पढ़ने आता है. वह बहुत सारे झूठ बोलता है. लेकिन स्कूल में एक जगह सत्यमेव जयते का बोर्ड टंगा है. वह उसे देखता है तो सबसे पूछता है इसका मतलब क्या है. सब बताते हैं कि सत्य की जीत होती है. तो उसे भी एहसास होता है और वह अपनी गलती स्वीकारता है. फिल्म में एक आम बच्चे के सपने को पूरा करने के उसके मासूम तरीके को दर्शाया गया है.
बच्चों से एक्टिंग कराना सबसे आसान
मैं मानता हूं कि बच्चों से एक्टिंग कराना सबसे आसान होता है.क्योंकि उनमें कोई भी स्टारी टैंट्रम नहीं होता. उन्हें जैसे बता दो. वे उसे खेल की तरह लेते हैं और भी खेलने लग जाते हैं. और हमारे लिए काम आसान हो जाता है. हालांकि फिल्म की शूटिंग दौरान कई बार रात की शूटिंग वे सो जाते थे. लेकिन फिर भी मुङो बच्चों के साथ बहुत मजा आया. ऑफ स्क्रीन उनकी मासूम सी बातें और शरारतें देख कर आप अलग सी एक फिल्म बना सकते हैं.
भारत में बच्चों की फिल्मों के स्कोप
मैंने अपनी फिल्म गट्ट को राजकोट और अहमदाबाद में दिखाया.वहां के बच्चों से जब प्रतिक्रिया ली तो उन्होंने कहा कि यह पहली फिल्म होगी जो हमें लग रहा है. हमारे लिए बनाई गयी है. वरना हमें राउड़ी राठौर जैसी फिल्में जो बड़ों की फिल्में हैं. पेरेंट्स के साथ उनकी वजह से देखने जानी पड़ती है. उनका कहना था कि चिल्लर पार्टी, गट्ट जैसी फिल्में बननी चाहिए,जो उनके लिए हो. यह सच है कि भारत में विषय बहुत हैं. लेकिन बच्चों के लिए फिल्में कम बनती है. इसके लिए फंड जुटाने में बहुत वक्त लग जाता है. और जब तक किसी बड़े स्टार का साथ न हो. आपको परेशानी होती ही है. लेकिन इसी बीच से रास्ता तो निकालना ही होगा.
नंदिता से जुड़ाव
नंदिता ने हमारा साथ दिया. मैं उन्हें अपनी पहले की फिल्मों में ही लेना चाहता था. उस दौरान से ही उनसे बातचीत होती थी. उस वक्त तो बात नहीं बनी. लेकिन अभी हम गट्ट के माध्यम से साथ काम कर पाये. नंदिता जैसे लोगों की जरूरत है जो बच्चों के लिए ऐसे विषयों पर सोचें और ऐसे विषयों को बढ़ावा दें.
सपने देखनेवाले बच्चों को पसंद आयेगी गट्ट
फिल्म गट्ट सपने देख कर उन्हें पूरा करने के जज्बे रखनेवाले बच्चों को बेहद पसंद आयेगी. उम्मीदन बड़े भी इसे पसंद करेंगे.
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