फिल्म कॉकटेल की डायना पेंटी ने दीपिका पादुकोण से अधिक लोकप्रियता हासिल की. फिल्म बर्फी में प्रियंका चोपड़ा के साथ साथ इलेना को भी कहानी में खास जगह मिली है. स्नेहा खानवेलकर का संगीत धूम मचा रहा है तो गीता शिंदे और बेला सेहगल अपनी अलग सोच की फिल्मों के साथ तैयार हैं. विकी डोनर हिट हुई तो शूजीत ने इस सफलता का सेहरा अपनी महिला लेखिका जूही चतुव्रेदी के सिर पर बांधा. फिल्म शांघाई में जितनी सोच दिबाकर की थी. उतनी ही मेहनत और एंगल कहानी में उर्मि जुवेकर ने भी दिया है. स्पष्ट तौर पर नजर आ रहा है कि बॉलीवुड में अब महिलाओं की एक नयी फौज तैयार हो रही है और यह फौज कुछ लीक से हट कर करने में यकीन कर रही है. सितारों की इस दुनिया में ये महिलाएं अलग तरीके से अपनी पहचान स्थापित कर रही हैं और लोगों द्वारा इनकी सराहना हो रही है. फिर चाहे वह अभिनय के क्षेत्र में हो, संगीत के क्षेत्र में या फिर लेखन या निर्देशन के क्षेत्र में.बॉलीवुड की इस नयी महिला ब्रिगेड पर अनुप्रिया अनंत की रिपोर्ट
अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा अभी भी मानती हैं कि बॉलीवुड इंडस्ट्री पर हमेशा पुरुष वर्ग हावी रहेगा. यह बहुत हद तक सही भी है. चूंकि पिछले कई सालों से इस इंडस्ट्री में जितनी जल्दी पहचान स्थापित करने में पुरुष कामयाब होते हैं. उतनी जल्दी लड़कियां नहीं और अगर लड़कियां पहचान स्थापित कर भी लेती हैं तो उनको लेकर कई तरह की बातें बनाई जाती हैं. ऐसे में कुछेक महिलाएं ही होती हैं जो अपनी पहचान स्थापित कर लेती हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से यह दौर बदल रहा है. विशेष कर वर्ष 2012 की बात करें तो हर क्षेत्र में महिलाएं एक अलग ही रूप प्रस्तुत कर रही हैं. बिल्कुल आम दिखनेवाली महिला या बिल्कुल अपरिचित महिला अचानक अपने काम से लोकप्रिय हो जा रही हैं. प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण की श्रेणी में आकर डायना लोगों को चौंकाती हैं तो संगीत पर पुरुषाधिकार को ठेंगा दिखाती स्नेहा खानवलकर सबको दरकिनार कर आगे बढ़ती हैं. जब बुद्धिजीवी होने की बात आती है तो दिबाकर के साथ साथ उनकी लेखिका उर्मि का भी नाम आता है. यह साफ तौर पर तसवीर खींचती है कि अब बॉलीवुड में नये दौर में अलग तरीके से महिलाएं प्रतिनिधित्व कर रही हैं. ग्लैमर, फिल्मी खानदान न होने के बावजूद वे लगातार अपनी पहचान स्थापित कर रही हैं. ऐसा नहीं है कि महिलाएं पहले से सभी क्षेत्रों में सक्रिय नहीं हैं. लेकिन इस वर्ष अचानक से कई महिलाओं को उनके अनछुए क्रेडिट भी मिल रहे हैं. जिसकी वह हकदार हैं. उन्हें वह सराहना मिल रही है.
स्नेहा खानवलकर : टुंगटुंग दा साउंड करदा
एमटीवी ट्रिफिन पर कुछ दिनों पहले से स्नेहा खानवलकर एक कार्यक्रम आ रहा है. इसमें स्नेहा अपने संगीत के सफर को वाकई सफर में तलाशती हैं और गांव गांव जाकर अलग अलग तरह की चीजों को लेकर संगीत बना रही हैं. नये लोगों को तलाश रही हैं. उनके ट्रिफिन का गीत टुंगटुंग दा साउंड करदा बेहद लोकप्रिय हो रहा है. दरअसल, स्नेहा खुद भी टुंगटुंग सी ही हैं. मतलब वे थोड़ी अनसुलझी सी हैं. जो बिल्कुल समझ से परे हैं. लेकिन उनका संगीत आज पूरे भारत में लोकप्रिय हैं. हाल ही में रिलीज हुई फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर 1- और जल्द ही रिलीज होने जा रही फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर 2 के गीत लगातार लोकप्रिय हो रहे हैं. इस फिल्म के संगीत को खास बनाना का श्रेय उन्हें ही जाता है. भारत में लड़कियां संगीत के क्षेत्र में नहीं आतीं. हिंदी सिनेमा जगत में जद्दनबाई, उषा खन्ना जैसे कुछेक नामों को छोड़ दें तो एक स्थापित म्यूजिक निर्देशक के रूप में स्नेहा ने अपनी पहचान स्थापित कर ली है.प्राय: लोगों का मानना होता है कि लड़कियां इनोवेटिव नहीं होतीं. जबकि स्नेहा ने तो इनोवेशन की सारी सीमाएं ही तोड़ दी है. उन्होंने एक राह चुन ली है. स्नेहा शुरुआती दौर से ही गाने की शौकीन रहीं. वे कविताएं भी धुन पर याद करती थीं. स्नेहा के चेहरे पर एक अलग तेज हैं. वह ऐसी बेफिक्र और बोल्ड लड़की हैं कि गाने की रिकॉर्डिग के वक्त जरूरत पड़ने पर वे किसी पुरुष से भी भीड़ गयीं. वे लड़की हैं लेकिन फिर भी ऐसे स्थानों पर जाती हैं जहां वह असुरक्षित हैं. लेकिन वे कहती हैं कि उन्हें पता है कि वे परेशानियों को हैंडल कर सकती हैं.स्नेहा का बनाया गीत वुमनिया. वाकई उन पर सबसे सटीक बैठता है. वह वाकई खास वुमनिया हैं बॉलीवुड की आनेवाली पीढ़ी की.
जूही चतुव्रेदी : विकी डोनर की मां
जी हां, यहां जूही चतुव्रेदी को विकी डोनर की मां इसलिए कहना उचित होगा. चूंकि जूही चतुव्रेदी ने विकी डोनर की फिल्म की कहानी को जन्म दिया है. इस फिल्म से इन्हें इतनी लोकप्रियता मिली है कि शेखर कपूर जैसे निर्देशक ने उन्हें अपने साथ फिल्म लिखने का अवसर दिया है. जूही चतुव्रेदी ने कभी विकी डोनर की कहानी अपने पहले बॉस पीयुष पांडे को दिखाई थी और कहा था कि यह फिल्म नहीं बन सकती यह तो एक विज्ञापन की कहानी है. लेकिन उसी वक्त शूजीत को कुछ ऐसी ही कहानी की जरूरत थी. उस वक्त जूही ने शूजीत से मुलाकात की. और शूजीत को यह नया आइडिया बेहद पसंद आया. फिर दोनों साथ बैठे और लगातार काम किया. इसी क्रम में नयी कहानियां जुड़ती गयीं. और फिर इस कहानी ने फिल्म का रूप लिया. जूही शूजीत की एक और फिल्म जिसमें अमिताभ अभिनय कर रहे हैं. उसे लिखने में व्यस्त हैं. जूही ने फिल्म की दो महिला विकी की दादी और मम्मी को काफी अलग दिखाया है. यह दर्शाता है कि जूही चतुव्रेदी जैसी महिलाएं किरदारों में भी महिलाओं की छवि को बदल रही हैं.
उर्मि जुवेकर : शांघाई का स्तंभ
उर्मि जुवेकर ने दिबाकर बनर्जी के साथ मिल कर शांघाई लिखी है. दिबाकर मानते हैं कि शांघाई उर्मि और उनके दोनों की सोच के सौंजन्य से बनी. उर्मि और दिबाकर ने मिल कर शांघाई के लिए कई ड्राफ्ट लिखे. फिल्म ओये लकी के बाद दिबाकर ने उर्मि से कहा कि वह जी जैसी एक पॉलिटिकल फिल्म बनाना चाहता हैं. उर्मि चाहती थीं कि वह जी की तरह कोई फिल्म लिखे. सो, उन्होंने दिबाकर को कहा. फिर तय हुआ दोनों ने साथ सोचना शुरू किया और मिल कर शांघाई बनी. उर्मि जुवेकर ने इससे पहले ओये लकी लकी ओये, रुल्स और आइएम भी बतौर स्क्रीन राइटर लिख चुकी हैं.
ऐलियाना डिक्रूज : बर्फी -सी मीठी
ऐलियाना डिक्रूज अनुराग बसु की फिल्म बर्फी में प्रियंका चोपड़ा व रणबीर कपूर के साथ नजर आ रही हैं. यह बॉलीवुड में उनकी पारी की शुरुआत है और अभी फिलवक्त फिल्म के केवल प्रोमो जारी किये गये हैं. लेकिन फिल्म के ट्रेलर में ही ऐलियाना प्रियंका को टक्कर देती नजर आ रही हैं. यह दर्शाता है कि हिंदी फिल्मों में अब धीरे धीरे दो अभिनेत्रियोंवाली फिल्मों में भी कोई नया चेहरा अपने शानदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान खींच सकता है. इस फिल्म में प्रियंका से अधिक ऐलियाना को लेकर दर्शकों में रुचि है. ऐलियाना तेलुगु फिल्मों में काम कर चुकी हैं. वे मुंबई से ही हैं. उन्हें तेलुगु फिल्मों में सराहना मिलती रही है. अनुराग खुद मानते हैं कि ऐलियाना काफी मैच्योर अभिनेत्री हैं. वे वर्सेटाइल हैं. हिंदी फिल्मों में उनका भविष्य उज्जवल है.
डायना पेंटी : कॉकटेल की मीरा
डायना पेंटी ने फिल्म कॉकटेल से शुरुआत की है और फिल्म की रिलीज से पहले से ही उन्होंने खासी लोकप्रियता हासिल कर ली थी. फिल्म देखने के बाद दर्शकों को वह भा गयी हैं. वे फिल्म में दीपिका को टक्कर देती नजर आयी हैं. और दर्शकों को उनका सीधा साधा अंदाज बेहद पसंद आया है. हिंदी फिल्मों में अभिनय के लिए उन्हें इस फिल्म के बाद से कई ऑफर मिल रहे हैं. फिल्म कॉकटेल में उन्होंने अपने अभिनय को ही नहीं अपनी डांसिंग स्कील को भी दर्शाया है.
गौरी शिंदे : इंग्लिश विंग्लिश
गौरी शिंदे आर बाल्की की पत् नी है. फिलहाल लोग उन्हें भले ही आर बाल्की की पत् नी के रूप में जानें. लेकिन फिल्म की रिलीज होने की देरी है. वे फिल्म इंग्लिश विंग्लिश से अपने निर्देशन करियर की शुरुआत कर रही हैं. और इसी फिल्म से वे श्रीदेवी की वापसी स्क्रीन पर करवा रही हैं. फिल्म के प्रोमो ने जिस तरह दर्शकों की सराहना बटोरी है और गौरी ने जिस तरह से अलग तरीके से फिल्म का सेंसर सर्टिफिकेट का इस्तेमाल करके बिल्कुल अद्वितीय प्रोमो बनाया है. वह दर्शाता है कि फिल्म कितनी अलग है. और श्रीदेवी की वही ताजगी फिर से स्क्रीन पर नजर आ रही है. यह एक निर्देशिका की अलग सोच को दर्शाती है. निस्संदेह गौरी आनेवाले समय में महत्वपूर्ण महिला निर्देशकों में से एक होंगी जो लीक से हट कर फिल्में बनाती नजर आयेंगी.
बेला सेहगल : शीरी फरहाद की लव गुरु
बेला सेहगल जैसी महिला निर्देशिका जिन्होंने अभिनेत्री के रूप में किसी प्रचलित अभिनेत्री की बजाय किरदार की डिमांड को देखते हुए फराह खान को चुना है. जो कि एक कोरियोग्राफर हैं और निर्देशिका हैं. दो ढलती उम्र के लोगों को लेकर फिल्म की कहानी सोचनेवाली बेला दर्शाती हैं कि वे सोच के विपरीत, ट्रैक के विपरीत काम करनेवालों में से हैं. इसके बावजूद कि आज स्टार का बोल बाला है. वे बिल्कुल विपरीत सोच के साथ रिस्क ले रही हैं. आनेवाले समय में महिला निर्देशकों में अलग तरह की सोच रखनेवालों में वे भी महत्वपूर्ण रूप से शामिल होंगी.
ऋचा-हुमा कुरेशी : वासेपुर की खोज
ऋचा चड्डा ने भले ही फिल्म ओये लकी लकी ओये में अभिनय किया है. लेकिन उन्हें पहचान मिली फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर से. फिल्म में मनोज बाजपेयी की पत् नी का महत्वपूर्ण और सशक्त किरदार निभा कर उन्होंने साबित कर दिया है कि वे फिल्मी खानदान से न होते हुए भी खास पहचान स्थापित कर सकती हैं. अपने अभिनय के दम पर. इसी फिल्म से प्रभावित होकर उन्हें मीरा नायर की फिल्म में भी काम करने का मौका मिल रहा है. फिल्म गैंग्स में ही नयी अदाकारा के रूप में नजर आनेवाली प्यारी सी हुमा कुरेशी भी आनेवाले समय में अभिनेत्रियों को चेहरा बनेंगी. दोनों ही भागों में उनके किरदार से दर्शक प्रभावित नजर आ रहे हैं. हूमा की मासूमियत और खूबसूरती का कॉकटेल उन्हें बॉलीवुड की खास अभिनेत्रियों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देगा.
ये तो लोगो का गलत नजरिया है माँ ही बेटा जनती है हर जगह नारी है .फिर उसके अस्तित्व से इंकार क्यूँ ?
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