लीजेंडरी वहीदा रहमान ने हाल ही में एक अखबार और टीवी को दिये एक
इंटरव्यू में कहा है कि यह अभिनेत्रियों के लिए सबसे बहेतरीन दौर है.आज
विद्या बालन जैसी अभिनेत्रियों को ध्यान में रख कर डर्टी पिर बनाई जाती
है. लेकिन जिस दौर में वे काम किया करती थीं. उस दौर में अभिनेत्रियों के
पास ऐसे किरदार नहीं आते थे. जिस दौर में उन्होंने गाइड फिल्म में काम
करने की ठानी थी.कई लोगों ने उन्हें मना किया था. चूंकि समाज उस दौर में
यह नहीं स्वीकार पाता कि कोई लड़की शादी के बाद भी किसी दूसरे पुरुष के
साथ प्यार कर रही हो. उस दौर में वहीदा के लिए यह चैलेंजिंग किरदार था.
हाल ही में एक और इंटरव्यू में अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने कहा है कि
वर्तमान में अभिनेत्रियों के लिए काम करने के अवसर बढ़ गये हैं. अब महिला
प्रधान फिल्में बनने लगी हैं. सिर्फ मेकअप और खेत में गाने से आगे बढ़
गयी हैं फिल्मों में अभिनेत्रियों की उपस्थिति. वहीदा और माधुरी की बातों
से साफ जाहिर होता है कि हर कलाकार भले ही कितना भी ग्लैमर की चाशनी में
डूबा रहे. उसे असली स्वाद अभिनय से ही मिलता है. निश्चित तौर पर माधुरी व
वहीदा की तरह उस दौर की अभिनेत्रियों को इस बात का अफसोस रहेगा कि
उन्होंने अपनी फिल्मों में उपस्थिति मात्र दर्ज की. माधुरी की मुस्कान के
लोग कायल थे और आज भी हैं. वहीदा, बैजयंतीमाला की खूबसूरती पर लोग जान
छिड़कते हैं. लेकिन अभिनय की बात आती है तो हमेशा ही स्मिता पाटिल, शबाना
आजिमी जैसी अभिनेत्रियों का नाम सामने आता है. स्पष्ट है कि एक कलाकार को
अभिनय की हमेशा भूख होती है. विद्या बालन और नये जमाने में जिस तरह से
दौर बदल रहा है.एक फिल्मों में दो अभिनेत्रियों को लेकर फिल्में बनाई जा
रही हैं. स्पष्ट है कि अभिनेत्री किरदार का वक्त लौट रहा है.
इंटरव्यू में कहा है कि यह अभिनेत्रियों के लिए सबसे बहेतरीन दौर है.आज
विद्या बालन जैसी अभिनेत्रियों को ध्यान में रख कर डर्टी पिर बनाई जाती
है. लेकिन जिस दौर में वे काम किया करती थीं. उस दौर में अभिनेत्रियों के
पास ऐसे किरदार नहीं आते थे. जिस दौर में उन्होंने गाइड फिल्म में काम
करने की ठानी थी.कई लोगों ने उन्हें मना किया था. चूंकि समाज उस दौर में
यह नहीं स्वीकार पाता कि कोई लड़की शादी के बाद भी किसी दूसरे पुरुष के
साथ प्यार कर रही हो. उस दौर में वहीदा के लिए यह चैलेंजिंग किरदार था.
हाल ही में एक और इंटरव्यू में अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने कहा है कि
वर्तमान में अभिनेत्रियों के लिए काम करने के अवसर बढ़ गये हैं. अब महिला
प्रधान फिल्में बनने लगी हैं. सिर्फ मेकअप और खेत में गाने से आगे बढ़
गयी हैं फिल्मों में अभिनेत्रियों की उपस्थिति. वहीदा और माधुरी की बातों
से साफ जाहिर होता है कि हर कलाकार भले ही कितना भी ग्लैमर की चाशनी में
डूबा रहे. उसे असली स्वाद अभिनय से ही मिलता है. निश्चित तौर पर माधुरी व
वहीदा की तरह उस दौर की अभिनेत्रियों को इस बात का अफसोस रहेगा कि
उन्होंने अपनी फिल्मों में उपस्थिति मात्र दर्ज की. माधुरी की मुस्कान के
लोग कायल थे और आज भी हैं. वहीदा, बैजयंतीमाला की खूबसूरती पर लोग जान
छिड़कते हैं. लेकिन अभिनय की बात आती है तो हमेशा ही स्मिता पाटिल, शबाना
आजिमी जैसी अभिनेत्रियों का नाम सामने आता है. स्पष्ट है कि एक कलाकार को
अभिनय की हमेशा भूख होती है. विद्या बालन और नये जमाने में जिस तरह से
दौर बदल रहा है.एक फिल्मों में दो अभिनेत्रियों को लेकर फिल्में बनाई जा
रही हैं. स्पष्ट है कि अभिनेत्री किरदार का वक्त लौट रहा है.
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