20120724

अरविंद स्वामी का पोस्टर चाहिए ?? -गिफ्ट मांग रही हो कि टास्क दे रही हो



शुक्रिया ड्रीम बॉय मेरे सपने से हकीकत में मुझसे रूबरू होने के लिए :)






मेरे पहले ड्रीम हीरो
मेरा पहला फिल्मी ड्रीम
हाँ हाँ वही ...वहीं रोजा वाले अरविंद स्वामी


मुंबई में मैं ढाई साल पुरानी हो चुकी हूं और फिल्मी दुनिया के
इर्द-गिर्द घूमते हुए भी.लेकिन फिल्मों का चस्का लगे न जाने कितने बरस
बीत गये. मम्मी पापा के फिल्मी शौक ने हम तीन बहनों पर भी ऐसा प्रभाव
डाला कि हम तीनों भी यूं फिल्मों से प्रेम कर बैठे कि तीनों के सपनों में
आये दिन फिल्मी हस्तियां आने लगें. नेहा दीदी के सपनों में आमिर, खुशबू
दीदी के सपनों पर सलमान खान और मेरे सपनों पर अरविंद स्वामी का राज चलता
था उन दिनों. जी हां, मेरे फेवरिट हीरो के बारे में सुनकर इस वक्त जिस
तरह आपके चेहरे के भाव बदल रहे हैं. मेरे दोस्तों के चेहरे के भाव भी यूं
ही बदल जाया करते थे. मेरी दोस्तों और मेरी बहनों को विश्वास नहीं होता
था कि मैं शाहरुख, सलमान. आमिर की नहीं. अरविंद स्वामी की फैन हूं.लेकिन
जो सच है वह सच है. उस वक्त अरविंद स्वामी की सिर्फ रोजा देखी थी मैंने
और उस वक्त से वह मेरे सपनों में आने लगे थे. मैं उन्हें इस कदर पसंद
करने लगी थी कि दुकानों पर उस वक्त फिल्मों के छोटे छोटे कैलेंडर मिला
करते थे. उनमें मैंने छांट कर अरविंद स्वामी की सारी तसवीरें एकत्रित की
थी. और एक डायरी भी बनाई थी. मेरे एक दोस्त जिसने  मुझे   मेरे बर्थ डे का
तोहफा मांगने को कहा तो मैंने उनसे अरविंद स्वामी की पोस्टर ढूंढ कर लाने
को कह दिया. उनके चेहरे पर ढेर सारे क्योशन मार्क्‍स थे. उन्होंने मुझसे
कहा कि भई, तोहफा मांग रही हो या टास्क दे रही है. अब ये अरविंद स्वामी
है कौन पहले तो ये बताओ. और इन्हें क्यों पसंद करती हो. उस वक्त मैं
फिल्मों के बारे में या इसके ग्रामर कोई जानकारी नहीं रखती थी. सो, मुङो
इसका जवाब किसी फिल्मी विश्लेषण के आधार पर  नहीं पता था. (शायद वर्तमान दौर
में उनकी फिल्में रिलीज होतीं और वे अब के हीरो होते तो मैं उनमें काबिल
फिल्मी पत्रकार बन कर उनमें कई मीन मेख  निकालती, अच्छा हुआ वे आज के दौर
के अभिनेता नहीं थे)   मैंने उन्हें बस यही जवाब दिया था कि रोजा फिल्म
देखो, कितने प्यारे से दिखते हैं वह. 
गलती मेरे दोस्त की भी नहीं थी कि वह अरविंद स्वामी को नहीं पहचानते थे. चूंकि अरविंद स्वामी कभी बेहद
लोकप्रिय सितारा या सुपरसितारा नहीं रहे. उन्होंने हिंदी में चुनिंदा
फिल्में ही की. लेकिन उनकी उस चुनिंदा अंदाज, मासूम से चेहरे, फिल्म रोजा
में उनकी शरारत भरी अदा, बांबे में उनकी स्माइल और फिर दर्द को उन्होंने
जिस तरह परदे पर उतारा था. उनके चुलबुले अंदाज ने विशेष कर मुझे   उनका
कायल बना दिया था. रोजा देखने के बाद से ही न जाने क्यों हर दिन मेरी
सपने में उनसे मुलाकात होती थी. सपना लेकिन फिल्मी अंदाज में नहीं हुआ
करता था. अरविंद सपने में मेरे परिवार के किसी सदस्य के रूप में नजर आते
थे.जिनका मैं बहुत ख्याल रखती थी. 
बहरहाल मेरे दोस्त ने दोस्ती नभायी. और पोस्टर न जाने कहां से मगर ढूंढ कर लाकर दी. मुङो याद है. एक दिन मैं अरविंद की सारी तसवीरें और पोस्टर्स सजा रही थी अपनी डायरी में.

एक दिन पढाई के दौरान मेरे अरविन्द प्रेम ने छोटे पापा से  डांट  खिला दी थी  
पढ़ाई का वक्त था वह. मेरे छोटे पापा ने आकर पीछे से कान पकड़ कर बोला कि
हेमा मालिनी के नानी के नाम याद रही. बाकी अभी गणित के कौनो इक्वेशन पूछब
त नइखे पता होई.. याद है. मैंने उन्हें क्या जवाब दिया था. कि छोटे
पापा, हेमा मालिनी की नानी का भी नाम याद नहीं हैं. हां, अरविंद स्वामी
के बारे में पूछेंगे तो पूरा डिटेल दे दूंगी. उस दिन वे भी हैरत में पड़
गये थे. इ के ह हो..अरविंद स्वामी . तो मैंने उन्हें भी बताया. पापा रोजा
वाला हीरो..वे भी हंसते हुए बाहर चले गये. पापा से जाकर कहा सुन ह भईया
नीशू के कौनो साउथ इंडियन हीरो पसंद बा. एकर बिहाह में अइसने लड़का
ढ़ूंढे के पड़ी. .यकीन मानिए, जब भी मैं अरविंद स्वामी का जिक्र करती.
मुङो पीएसपीओ पंखे के विज्ञापन याद आ जाता. कि अरे यह अरविंद स्वामी को
नहीं जानते. लेकिन मुझे खुशी होती कि अच्छा है मेरी पसंद औरों की नहीं
तो. अरविंद बिल्कुल सेफ हैं मेरे ड्रीम ब्वॉय के रूप में. मैंने हिंदी
में उनकी सारी फिल्में देखी हैं. और सिर्फ अरविंद स्वामी के  लिए ही देखी
है. रोजा, सपने,बांबे, सात रंग के सपने सभी.सपने का गीत आवारा भंवरे..जो
हौले हौले गाये..आज भी अरविंद और काजोल की वजह से मेरा पसंदीदा गीत है.
सपने फिल्म इसलिए भी पसंद है. क्योंकि इसमें मेरे दोनों पसंदीदा कलाकार
थे. उन दिनों इंटरनेट उतना विकसित नहीं था. और अखबारों में भी उस वक्त भी
सुपरसितारा कलाकारों को ही आज की तरह जगह मिलती थी. लेकिन फिर भी अरविंद
की एक छोटी सी तसवीर भी दिखती. तो उसे मैं सहेज कर रखती. 

कुछ दिनों बाद सुना कि अरविंद स्वामी ने फिल्में छोड़ कर अपना बिजनेस शुरू कर दिया है.
वे फिल्मों से तो गये. लेकिन मेरे सपनों से नहीं. बोकारो से रांची प्रवास
के कई सालों के बाद भी वे  मेरे सपनों में आते रहे.फिर न जाने क्या हुआ
अचानक उन्होंने फिल्मों की तरह मेरे सपनों में भी आना बंद कर दिया. रांची
जाने के कुछ सालों बाद ही मेरे सपनों पर हिंदी फिल्मों के निर्देशकों का
राज हो गया. आशुतोष ग्वारिकर, इम्तियाज अली, संजय लीला भंसाली, अनुराग
बसु, अनुराग कश्यप से मैं आज भी सपनों में मिलती रहती हूं.( शायद रांची
में मास कम्यूनिकेशन व फिल्म मेकिंग के कोर्स व  फिल्मी पत्रकारिता का
असर है ये).अरविंद ने मेरे सपनों में आना भले ही बंद कर दिया. लेकिन आज
भी अगर मुझसे कोई पूछता है कि मेरे पसंदीदा हीरो कौन हैं मैं उन्हें
अरविंद का नाम ही बताती हूं.  


हाल ही में जब बोकारो घर पर गयी थी. पापा
ने कहा कि पुराने बक्से में जो भी फेंखना है. उसे हटाओ. बेकार की कई
चीजें होंगी. मैंने जब वह बक्सा खोला तो अचानक अरविंद स्वामी के फ्लैशबैक
में चली गयी. उनकी तसवीरें. पोस्टर्स और उनकी फिल्मों के कैसेट के कवर आज
भी मेरे पास सुरक्षित हैं. कुछ दिनों पहले ही खबर पढ़ी कि वे फिल्मों में
वापसी कर सकते हैं और वे अपने मेकओवर के साथ आ रहे हैं. तो फिर से मेरे
दिल का वही फैन जाग उठा. जब मैं मिुंबई आ रही थी तो मेरी बचपन की व सबसे
करीबी दोस्त सिम्मी ने मुझसे यही सवाल किया था कि नीशू अब तो तू पक्का
अपने ड्रीम ब्वॉय अरविंद से मिल ही लेगी. इन ढाई सालों में तो अब तक उनसे
मिलने का संयोग नहीं बना. लेकिन यह खबर पढ़ कर कि वे हिंदी फिल्मों में
वापसी कर सकते हैं. अरविंद स्वामी क े लिए बचपन का वही प्यार जाग उठता
है. उम्मीदन अपने ड्रीम हीरो से मिलने का ड्रीम कभी तो पूरा होगा.
बेसब्री से आपकी वापसी का इंतजार है अरविंद

1 comment:

  1. इतने सालो के इंतज़ार के बाद वही का वही प्यार ,शुभकामनाये-मुलाकात सपनों की तरह रूबरू भी हो एक बार

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