20140802

काबुलीवाला का लौटना


फ्रेंच पटकथा लेखक जीन क्लोडे कैरीइरे ने प्रोडयूसर सुनील ढोशी, अनुराग कश्यप, शर्मिला टैगोर और एड मेकर पीयूष पांडे के संयोजन में निर्णय लिया है कि वे पुरानी लघुकथाओं को कहानियों का रूप देंगे. जीन का मानना है कि अगर शेक्सपीयर के काम को बार बार एडॉप्ट किया जा सकता है और बार बार उन पर नयी फिल्में बन सकती हैं तो फिर टैगोर की कहानियों को हम नया रूप क्यों नहीं दे सकते. जीन ने तय किया है कि रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी काबुलीवाला को वह परदे पर जीवित रूप प्रदान करेंगे. और इसी तरह वे और भी कहानियों को बड़े परदे पर उतारेंगे. निस्संदेह यह बेहतरीन शुरुआत है. अच्छी बात यह है कि जैसे हिंदी फिल्ममेकर शेख्सपीयर से बहुत ज्यादा प्रभावित रहते हैं. भारत से बाहर भारतीय लेखकों को पसंद किया जाता है. जीन ने टैगोर की कहानियों की अहमियत को समझा है. यह शुुरुआत एक अच्छी शुुरुआत है. चूंकि ऐसी कई कहानियां हैं, जो हमसे अछूती हैं. उन्हें इस माध्यम से हम तक पहुंचाया जायेगा. यूटयूब पर इन दिनों कबीर के दोहे, वाणी को नीरज पांडे कबीर कैफे के रूप में एक नया रूप दे रहे हैं. इसे म्यूजिकल रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है और यह भी बेहद रोचक है. भारत में ऐसे सृजनात्मक पहल की जरूरत है. चूंकि यह बेहद जरूरी है कि हम पुरानी बातों, किस्से कहानियों को याद करें. भले ही उसके नये कलेवर में प्रस्तुत किया जाये. लेकिन मूल बातें वही रहें.कुछ सालों पहले रीमिक्स गानों का चलन शुरू हुआ था. इससे वे गाने भी लोकप्रिय हुए, जिनके ओरिजनल गीत लोगों ने देखे सुने ही नहीं थे. कुछ लिहाज में भले ही रीमिक्स ने संगीत की दुनिया को हानि पहुंचायी. लेकिन अगर इस लिहाज से देखें तो उन्होंने पुरानी यादों को तरोताजा किया. इन दिनों तो प्रासंगिकता को बरकरार रखते हुए नये कलेवर में अच्छी चीजें परोसी जा रहीं.

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